बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला: गाली-गलौज ही IPC की धारा 294 के तहत अपराध नहीं
Amir Ahmad
9 Oct 2025 4:49 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि केवल अपमानजनक, अश्लील या मानहानिकारक भाषा का उपयोग करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 294 के तहत अपराध नहीं है, जब तक कि वह कार्य अश्लील न हो और किसी सार्वजनिक स्थान पर या उसके पास किसी अन्य व्यक्ति को झुंझलाहट न पहुंचाए।
जस्टिस एम. एम. नेरलिकर ने दोहराया कि अपराध साबित करने के लिए झुंझलाहट और अश्लीलता दोनों ही अनिवार्य तत्व हैं। इन्हें साक्ष्य के माध्यम से विशेष रूप से स्थापित किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता पर सरकारी कॉलेज के प्रिंसिपल के खिलाफ गाली-गलौज करने और कार्यालय की संपत्ति (जैसे कांच और टीवी) को क्षतिग्रस्त करने का आरोप है, जिसके कारण का अनुमानित नुकसान हुआ।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोप पत्र में लगाए गए आरोपों को अक्षरशः भी मान लिया जाए तब भी IPC की धारा 294 के तहत कोई अपराध नहीं बनता।
कोर्ट ने स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता ने संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और प्रिंसिपल के साथ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया लेकिन उसने IPC की धारा 294 के दायरे और तत्वों का विश्लेषण किया।
केवल अभद्र भाषा पर्याप्त नहीं
न्यायालय ने रेखांकित किया कि केवल अपमानजनक, अश्लील, या अमर्यादित भाषा का उपयोग, अपने आप में IPC की धारा 294 के प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
कोर्ट ने पाया कि जांच अधिकारी द्वारा दर्ज किए गए बयानों से यह संकेत नहीं मिलता है कि याचिकाकर्ता के अपशब्दों से किसी व्यक्ति को झुंझलाहट हुई थी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया,
"सिर्फ इसलिए कि उपयोग किए गए शब्द अपमानजनक या मानहानिकारक हो सकते हैं, वे शब्द अपने आप में IPC की धारा 294 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।"
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता ने अपने रिटायरमेंट लाभों के भुगतान न होने से उपजी निराशा के कारण यह कार्य किया था। वह प्रिंसिपल से जनरल प्रोविडेंट फंड (GPF) के लाभ जारी करने को लेकर सवाल कर रहा था।
निर्णय
चूंकि याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका को केवल IPC धारा 294 के लागू होने तक सीमित रखा, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रथम दृष्टया (prima facie) इस धारा के तहत कोई मामला नहीं बनता है। न्यायालय ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 294 के दायरे और तत्वों पर विचार करने में गंभीर त्रुटि की।
तदनुसार, हाईकोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट और सेशन कोर्ट के उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें याचिकाकर्ता को IPC की धारा 294 के तहत आरोपों से मुक्त करने से मना किया गया था।
याचिकाकर्ता के खिलाफ अन्य आरोप (जैसे 427, 504, 506, 352 IPC और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान) बरकरार रखे गए।

