पक्षकारों को जवाब देने का अवसर दिए बिना रेस जुडिकाटा के आधार पर मुकदमा खारिज नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Amir Ahmad

15 July 2025 6:29 AM

  • पक्षकारों को जवाब देने का अवसर दिए बिना रेस जुडिकाटा के आधार पर मुकदमा खारिज नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 11 के तहत रेस जुडिकाटा के प्रतिबंध को किसी मुद्दे को तय किए बिना या पक्षों को जवाब देने का अवसर दिए बिना अंतिम निर्णय में पहली बार लागू नहीं किया जा सकता। इसने एकल जज का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें बिना किसी पूर्व सूचना के डिक्री चरण में रेस जुडिकाटा का हवाला देते हुए मुकदमा खारिज कर दिया गया था।

    जस्टिस एम.एस. सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ मूल वादी यूनिक इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट एंड मैनेजमेंट कंसल्टेंसीज़ प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 26 सितंबर 2012 के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कंपनी का मुकदमा 1 लाख के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया गया था।

    एकल जज ने फैसला सुनाया था कि मुकदमे में दावे रेस जुडिकाटा द्वारा वर्जित है, क्योंकि उन पर पक्षों के बीच चार पूर्व मध्यस्थता पंचाटों में पहले ही निर्णय हो चुका है। खंडपीठ ने कहा कि लिखित बयान में रेस जुडिकाटा का बचाव नहीं किया गया, मुकदमे में कोई मुद्दा तैयार नहीं किया गया और पक्षकारों को जवाब देने का कोई मौका नहीं दिया गया।

    न्यायालय ने कहा,

    "यद्यपि न्यायालय के पास निस्संदेह अतिरिक्त मुद्दे तैयार करने या मौजूदा मुद्दों को संशोधित या पुनर्गठित करने की शक्ति है, यह भी उतना ही आवश्यक है कि पक्षों को इन नए या परिवर्तित मुद्दों पर विचार करने का पर्याप्त अवसर प्रदान किया जाए।"

    न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि रेस जुडिकाटा से संबंधित कोई अतिरिक्त मुद्दा तैयार करने की आवश्यकता है तो पक्षों को प्रासंगिक साक्ष्य प्रस्तुत करके या यदि वे केवल दस्तावेजों पर निर्भर रहना चुनते हैं तो इस मुद्दे को निर्धारित करने के लिए सभी प्रासंगिक दस्तावेजों का हवाला देकर इस मुद्दे को संबोधित करने का अवसर दिया जाना चाहिए था। उचित मुद्दों को तैयार करना कोई खोखली औपचारिकता नहीं है।

    प्रेम किशोर एवं अन्य बनाम ब्रह्म प्रकाश एवं अन्य 2023 (19) एससीसी 244 का हवाला देते हुए न्यायालय ने दोहराया कि पूर्व-न्यायिकता के प्रश्न को निर्धारित करने की मूल विधि पहले मामले का निर्धारण करना है। फिर यह पता लगाना है कि पूर्व-न्यायिकता के रूप में संचालित निर्णय द्वारा क्या निर्णय लिया गया था।

    पूर्व-न्यायिकता की दलील मूलतः दोनों मुकदमों में वाद-कारण की पहचान पर आधारित है। इसलिए बचाव पक्ष के लिए यह आवश्यक है कि वह पिछले वाद में वाद-कारण स्थापित करे।

    न्यायालय ने टिप्पणी की कि अपीलकर्ता/वादी इस बात से आश्चर्यचकित था कि आक्षेपित निर्णय और डिक्री में ही पूर्व-न्यायिकता को शामिल कर दिया गया, जबकि उसे इस मुद्दे पर विचार करने या यह प्रदर्शित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया गया कि यह दलील वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में लागू नहीं होती।

    न्यायालय ने पाया कि अपनाई गई प्रक्रिया पूरी तरह से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थी।

    तदनुसार न्यायालय ने निर्णय और डिक्री को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से वाद का निर्णय करने के लिए एकल न्यायाधीश के पास वापस भेज दिया। यदि उचित हो तो इसने न्यायिक निर्णय (Res Judicata) का मुद्दा तैयार करने की स्वतंत्रता प्रदान की, लेकिन निर्देश दिया कि दोनों पक्षों को इस पर विचार करने का उचित अवसर अवश्य दिया जाना चाहिए।

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