चुनाव आयोग ने पहले ही कदम उठाएं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'NOTA' के लिए मतदाता जागरूकता पैदा करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

Amir Ahmad

1 April 2024 12:49 PM GMT

  • चुनाव आयोग ने पहले ही कदम उठाएं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने NOTA के लिए मतदाता जागरूकता पैदा करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में जनहित याचिका खारिज कर दिया। उक्त याचिका में भारत के चुनाव आयोग (ECI) को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर इनमें से कोई नहीं (NOTA) विकल्प के बारे में जनता में जागरूकता पैदा करने के निर्देश देने की मांग की गई।

    जस्टिस रवींद्र वी घुगे और जस्टिस आरएम जोशी की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सुहास वानखेड़े ने पहले भी समान जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें अदालत ने इस मुद्दे को पर्याप्त रूप से संबोधित किया।

    कहा गया,

    "हमें पता चला है कि चुनाव आयोग पहले ही व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी (SVEEP) पर मैनुअल लेकर आया, जिसे जुलाई 2020 में प्रकाशित किया गया। SVEEP रणनीति 2022-2025 (4) भी प्रकाशित की गई। उपरोक्त कारकों और भारत के चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदमों और इस तथ्य पर विचार करने के बाद कि इस याचिकाकर्ता ने पहले भी समान याचिका दायर की थी, यह जनहित याचिका खारिज की जाती है।”

    जनहित याचिका में याचिकाकर्ता पीएचडी स्टूडेंट ने मतदाताओं को EVM और नोटा विकल्प के उपयोग के बारे में शिक्षित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में चिंता जताई। याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि चुनाव आयोग को ब्रांड एंबेसडर नियुक्त करना चाहिए और नोटा के लिए अभियान शुरू करना चाहिए।

    याचिकाकर्ता ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज एंड अन्य बनाम भारत संघ और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया।

    अदालत ने उसी याचिकाकर्ता द्वारा दायर पिछली जनहित याचिका का हवाला दिया। पहले के मामले में अदालत ने याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद 14 अक्टूबर 2019 को विस्तृत आदेश पारित किया।

    उस अवसर पर अदालत ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग ने चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार मतदाताओं को नोटा विकल्प के बारे में जागरूक करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता की शिकायत को पिछली जनहित याचिका में संबोधित किया गया। इस प्रकार, अदालत का दरवाजा खटखटाने का उद्देश्य पूरा हो गया।

    नतीजतन पिछली जनहित याचिका का निपटारा किया गया।

    अदालत ने पाया कि मौजूदा याचिका में पहले वाली याचिका के समान ही दलीलें हैं, जिसमें याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन कर रहा है। याचिकाकर्ता ने पहले के मामले में भी उद्धृत उसी फैसले का हवाला दिया।

    इसमें कहा गया कि चुनाव आयोग ने नोटा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने द्वारा की गई विभिन्न पहलों का विवरण दिया। इन पहलों में मोबाइल प्रदर्शन वैन के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम विभिन्न स्थानों पर आयोजित चुनावी साक्षरता कार्यक्रम, प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों में विज्ञापन, मतदाता गाइड का वितरण और उम्मीदवार के नाम वापस लेने के अंतिम दिन के बाद जागरुकता गतिविधियां शामिल हैं।

    अदालत ने चुनाव आयोग से प्राप्त चुनाव का पर्व, देश का गर्व, लोकसभा चुनाव 2024 नामक एक पैम्फलेट की जांच की जो मतदाताओं के लिए गाइड के रूप में काम करता है। पैम्फलेट में मतदान प्रक्रिया के बारे में जानकारी है, जिसमें EVM का उपयोग और नोटा विकल्प शामिल है। अदालत ने कहा कि इसमें मतदाताओं को शिक्षित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदमों पर भी प्रकाश डाला गया और मतदान के महत्व पर जोर दिया गया।

    अदालत ने कहा,

    “यह पैम्फलेट वास्तव में मतदाताओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करने के लिए सचित्र मार्गदर्शिका है। इसकी शुरुआत मतदाता को जागरूक करने से होती है (क) ऑनलाइन और ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया, (ख) विवरण का सत्यापन, (ग) नए मतदाता के रूप में नामांकन, (घ) मतदाता सूची में नाम खोजने की विधि आदि। इसी तरह मतदाता को जागरूक किया जाता है कि मतदान के दिन वोट डालने की सुविधा के लिए छुट्टी घोषित की जाती है। आकर्षक कथन भी दिया जाता है, यह छुट्टी नहीं है यह मतदान का दिन है।”

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही संबोधित कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने ECI को EVM में नोटा विकल्प शामिल करने और लोगों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाने का निर्देश दिया।

    ECI और राज्य चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदमों के साथ-साथ याचिकाकर्ता की पिछली जनहित याचिका ध्यान में रखते हुए अदालत ने मौजूदा जनहित याचिका को खारिज किया।

    Phd स्कॉलर होने के कारण अदालत ने याचिकाकर्ता पर उसी मुद्दे पर दूसरी याचिका दायर करने के लिए जुर्माना लगाने से परहेज किया। हालांकि, अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह भविष्य में उनके द्वारा इसी तरह के मुद्दों पर दायर की गई किसी भी याचिका रजिस्टर्ड करने से पहले उसकी जांच करे।

    केस टाइटल - सुहास मनोहर वानखेड़े बनाम भारत का चुनाव आयोग और अन्य

    Next Story