प्राथमिक न्यायालय ज़िला परिषद और पंचायत समितियों अधिनियम के तहत अधिकारियों के विरुद्ध वाद दायर करने की नोटिस अवधि को माफ नहीं कर सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
6 Aug 2025 11:38 AM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि महाराष्ट्र ज़िला परिषद और पंचायत समितियां अधिनियम की धारा 280 तथा महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 180 के तहत वाद दायर करने से पूर्व अनिवार्य नोटिस देने की जो शर्त है, उसे प्राथमिक न्यायालय माफ नहीं कर सकता। यह स्थिति दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 80(2) से अलग है, जो सीमित विवेकाधिकार प्रदान करती है। कोर्ट ने कहा कि इन प्रावधानों का अनुपालन न होने की स्थिति में वाद सुनवाई योग्य नहीं माना जाएगा।
जस्टिस शैलेश पी. ब्रह्मे ने यह टिप्पणी उस सिविल पुनरावलोकन याचिका की सुनवाई करते हुए की, जिसे ज़िला परिषद पंचायत समिति और ग्राम पंचायत अधिकारियों ने दायर किया था। वह उस आदेश को चुनौती दे रहे थे, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने Order VII Rule 11 CPC के तहत उनकी याचिका खारिज कर दी थी। मामला एक दुकान लाइसेंसधारी द्वारा दायर वाद से संबंधित है, जिसमें उसने बेदखली के खिलाफ घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की।
वादकर्ता को 15 जुलाई 2024 को बेदखली का नोटिस जारी किया गया। उसने केवल नौ दिन बाद 30 जुलाई, 2024 को वाद दायर कर दिया।
वादकर्ता की ओर से कहा गया कि प्रशासन ने मनमाने ढंग से और बिना सुनवाई का अवसर दिए उन्हें बेदखल करने की प्रक्रिया शुरू की। उसने 24 जुलाई, 2024 को एक नोटिस भेजने का हवाला देते हुए इसे पर्याप्त बताया और कहा कि यह CPC की धारा 80 के अंतर्गत पर्याप्त अनुपालन है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने यह माना कि भले ही नोटिस 24 जुलाई को भेजा गया हो, ज़िला परिषद अधिनियम और ग्राम पंचायत अधिनियम की अनिवार्य तीन माह की नोटिस अवधि का पालन नहीं किया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन अधिनियमों में CPC की धारा 80(2) की तरह कोई छूट या माफी का प्रावधान नहीं है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिका में किसी प्रकार की आपात स्थिति या नोटिस अवधि से छूट के लिए कोई याचना नहीं की गई और जब याचिका खारिज हो चुकी थी, तभी इसके बाद छूट की याचिका दायर की गई।
कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की,
“CPC की धारा 80(2) के विपरीत, ज़िला परिषद अधिनियम और ग्राम पंचायत अधिनियम के अंतर्गत ट्रायल कोर्ट के पास नोटिस अवधि से छूट देने का कोई विवेकाधिकार नहीं है। यानी, ट्रायल कोर्ट के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह नोटिस अवधि को दरकिनार कर वाद की सुनवाई कर सके।”
इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने पुनरावलोकन याचिका को मंजूरी दी और ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।
टाइटल: Zilla Parishad, Ahmednagar & Ors. बनाम Sandip Madhav Khase & Ors.

