महाराष्ट्र पुलिस महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच को लेकर गंभीर नहीं है, असहाय पीड़ित कहां जाएं? बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी
LiveLaw News Network
12 Sept 2024 4:52 PM IST
अगर महाराष्ट्र में पुलिस महिलाओं के प्रति असंवेदनशील रहेगी और महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच में अपना 'ढीले' रवैये को दिखाएगी, तो गरीब, असहाय महिलाओं को कहां जाना चाहिए? बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित कई मामलों में 'घटिया' जांच की आलोचना करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की।
जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस डॉ नीला गोखले की खंडपीठ ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच के तरीके पर दुख व्यक्त किया, जिसमें कोई संवेदनशीलता और गंभीरता नहीं है, जिसका फायदा आरोपी को मिलता है, जो पुलिस की ओर से अनुचित जांच के कारण बरी हो जाता है।
"हर दिन हमारे पास कम से कम 3 से 5 ऐसे मामले आ रहे हैं, जिनमें जांच ठीक से नहीं की गई है... हम मान सकते हैं कि अगर 100 मामलों में से 5 में ऐसी स्थिति (अनुचित जांच) है। लेकिन अगर 100 मामलों में से 80 में हम अनुचित जांच देखते हैं, तो कुछ भी ठीक नहीं है... फिर हमें पूरी व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत है... आप कृपया हमें बताएं कि बेचारी, असहाय महिला कहां जाए? अगर यही स्थिति है, तो वह पीड़ित है, महिलाएं कहां जाएं?" चिंतित दिख रहे जस्टिस गोखले ने महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ से कहा।
इस पर सराफ, जिन्हें न्यायाधीशों ने 'तत्काल' उनके समक्ष पेश होने के लिए बुलाया था, ने कहा कि बल के उच्च अधिकारी स्थिति को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। सराफ ने कहा, "कुछ मामलों में जो कुछ हुआ है, वह हो चुका है, उच्च अधिकारी समय को पीछे नहीं मोड़ सकते। लेकिन मैं न्यायालय को आश्वस्त कर सकता हूं कि अब उचित कदम उठाए जाएंगे और गलतियों को सुधारा जाएगा।"
हालांकि, इस दलील से असंतुष्ट होकर जस्टिस गोखले ने टिप्पणी की, "श्री एजी, आपकी पूरी व्यवस्था को झकझोरने की जरूरत है... व्यवस्थित तरीके से पतन हो गया है। अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र लड़कियों के लिए सबसे प्रगतिशील और सुरक्षित स्थान माना जाता है।"
पृष्ठभूमि
ये मौखिक टिप्पणियां कम से कम पांच याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिनमें पीठ ने महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में घटिया जांच पाई है।
दो मामले धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) से संबंधित थे, जिसमें पुलिस (एक मामला मुंबई में और दूसरा पुणे में दर्ज किया गया था) ने इन दो मामलों में शिकायतकर्ता महिलाओं के कपड़े जब्त नहीं किए, जबकि स्पष्ट आरोप था कि आरोपियों ने उनके कपड़े फाड़कर उन्हें निर्वस्त्र किया था।
पुलिस ने फटे कपड़े जब्त न करने के अपने निर्णय को यह कहते हुए उचित ठहराया कि पीड़ित महिलाएं बदलने के लिए 'अतिरिक्त कपड़े' नहीं लाई थीं। एक मामला एक मेडिकल छात्रा के साथ उसके पूर्व प्रेमी द्वारा उत्पीड़न और पीछा करने से संबंधित था, जिसने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उसकी आपत्तिजनक तस्वीरें भी अपलोड की थीं।
पीठ ने कहा कि आरोपी ने मुंबई पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के 12 दिन बाद भी लड़की को परेशान करना जारी रखा और आपत्तिजनक तस्वीरें अपलोड करना जारी रखा।
पीठ ने कहा कि पीड़िता द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के 19 दिन बाद ही सोशल मीडिया हैंडल से तस्वीरें हटाई गईं। न्यायाधीशों ने कहा कि पीड़िता इतनी सदमे में है कि वह आज तक अपने घर से बाहर नहीं निकली है, क्योंकि उसे डर है कि कहीं आरोपी कोई गंभीर अपराध न कर दे, क्योंकि पुलिस उसे पकड़ने में विफल रही है और वह लगातार फरार है।
एक अन्य मामले में, पीठ ने कहा कि एक व्यक्ति ने आपसी समझौते के आधार पर 498ए मामले को रद्द करने के लिए याचिका दायर की थी।
न्यायाधीशों ने कहा कि व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद से वह डबलिन, आयरलैंड में अपनी नौकरी का हवाला देते हुए जांच में शामिल नहीं हुआ है। पीठ ने आश्चर्य जताया कि पुलिस मामले में आरोपपत्र कैसे दाखिल कर सकती है, जबकि मुख्य आरोपी जांच में शामिल नहीं हुआ है। पीठ ने यह भी कहा कि जांच के पिछले 10 महीनों में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार करने या उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने का एक भी प्रयास नहीं किया।
पीठ के पहले के आदेशों के अनुसार, मुंबई के पुलिस आयुक्त विवेक फनसालकर ने धारा 354 की शिकायत की जांच से संबंधित एक मामले में हलफनामा दायर किया था, जिसमें कपड़े जब्त नहीं किए गए थे। शीर्ष पुलिस अधिकारी ने पीठ को बताया कि मुंबई पुलिस हर अपराध को गंभीरता से ले रही है, खासकर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को।
एक मामले में, महाराष्ट्र राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल चहल ने अपना हलफनामा दायर किया और पीठ को सूचित किया कि राज्य महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की जांच के लिए 'अपनी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को संशोधित करेगा।
अतिरिक्त मुख्य सचिव के हलफनामे पर आपत्ति जताते हुए जस्टिस गडकरी ने कहा, "हमने इस मुद्दे को राज्य के सर्वोच्च कार्यकारी के समक्ष उठाया... उनके (चहल के) हलफनामे में एक भी मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया है... वे भविष्य में क्या करने जा रहे हैं, यह फिलहाल हमारी चिंता का विषय नहीं है। हम कुछ मामलों में चूक और गंभीर चूक पर हैं....हमें इस बात की चिंता नहीं है कि आप उन्हें निलंबित करें या उन्हें कोई वीरता पुरस्कार दें, लेकिन सबूत खत्म हो चुके हैं और इससे आरोपी को फायदा होगा।"
जस्टिस गोखले ने कहा, "या तो यह उपेक्षा है या ईमानदारी की कमी...वरिष्ठ अधिकारी मामले की जांच कांस्टेबलों को सौंप देते हैं...तो या तो अधिकारी अपना काम नहीं करना चाहता या फिर वह सिर्फ आरोपी की मदद करना चाहता है...ऊपर से नीचे तक (उच्च अधिकारियों से लेकर कांस्टेबल स्तर तक) संवेदनशीलता की जरूरत है...राज्य पर्याप्त गंभीर नहीं है...क्या हम यह मान सकते हैं कि राज्य इस मुद्दे को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है।"
पीठ ने लोक अभियोजक हितेन वेनेगावकर और अतिरिक्त लोक अभियोजक आशीष सतपुते की सहायता से एजी सराफ को समझाया कि संकट में फंसे नागरिक का पहला संपर्क पुलिस से होता है और अगर पुलिस असंवेदनशीलता या अक्षमता दिखाती है, तो नागरिक अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए कहीं नहीं जा पाएंगे।
जस्टिस गडकरी ने कहा, "भविष्य में आप क्या करेंगे, भगवान जाने लेकिन इन मामलों का क्या होगा? अभियोजन पक्ष विफल हो जाता है। पुलिस ने उचित साक्ष्य के बिना आरोपपत्र दाखिल किया है, जिसका अंत में आरोपियों को फायदा होगा और आप देख सकते हैं कि उनमें से अधिकांश एफआईआर को रद्द करवाने आए हैं। इसलिए पुलिस की वजह से उन्हें बरी कर दिया गया।"
हालांकि, एजी सराफ के नेतृत्व में राज्य के वकीलों ने पीठ को आश्वासन दिया कि राज्य अपनी क्षमता के अनुसार गलतियों को सुधारेगा। एजी ने यह भी कहा कि वह इन मुद्दों के बारे में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और गृह विभाग के सचिव को सूचित करेंगे ताकि गलतियों को सुधारने के लिए हर संभव कदम उठाए जा सकें। सुनवाई के दूसरे सत्र में धारा 354 के दोनों मामलों में आरोपियों ने अपनी याचिका वापस ले ली।
मेडिकल छात्रा के उत्पीड़न के मामले में पुलिस ने कहा कि वह लड़की को सुरक्षा प्रदान करेगी ताकि वह अपने घर से बाहर निकल सके और परीक्षा दे सके। इसके अलावा, धारा 498ए के मामले में पुलिस ने आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए समय मांगा।