आप सीएम नहीं हैं: हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र चुनाव लड़ने के लिए BJP नेता को अंतरिम जमानत देने से किया इनकार, कहा- अरविंद केजरीवाल का आदेश लागू नहीं
Amir Ahmad
25 Oct 2024 12:36 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता दिगंबर अगवाने को आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अंतरिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि चुनाव लड़ने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। आवेदक जेल से ही आगामी चुनाव लड़ सकता है।
एकल जज जस्टिस मनीष पिटाले ने अगवाने की इस दलील को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला उनके मामले पर भी लागू होगा, क्योंकि वह भी आगामी चुनाव लड़ने के लिए अंतरिम जमानत मांग रहे हैं, ठीक उसी तरह जैसे केजरीवाल ने तत्कालीन लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मांगी थी।
जज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से इस तथ्य पर विचार किया कि केजरीवाल समाज के लिए खतरा नहीं हैं और उनका कोई पिछला इतिहास नहीं है।
जस्टिस पिटाले ने मौखिक रूप से कहा,
"मैं योग्यता के आधार पर नहीं सोच रहा हूं। यदि आप चुनाव लड़ना चाहते हैं तो आप नामांकन (जेल के माध्यम से) भर सकते हैं। कोई पिछला इतिहास नहीं, समाज के लिए कोई खतरा नहीं, जांच पूरी हो गई है - ये सुप्रीम कोर्ट के विचार थे। लेकिन आपके मामलों में ये लागू नहीं होंगे। बेशक आप मुख्यमंत्री नहीं हैं और न ही किसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। चुनाव लड़ने का यह अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। यदि आप अभी भी चुनाव लड़ना चाहते हैं तो आप नामांकन दाखिल कर सकते हैं और जेल से लड़ सकते हैं। जम्मू और कश्मीर में एक सज्जन ने तो जेल से संसदीय चुनाव भी जीता था।”
गौरतलब है कि अगवाने को इस साल जनवरी में अपनी फर्जी कंपनियों में निवेश करने के लिए दोगुना रिटर्न का वादा करके कई निवेशकों को ठगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जिसके आधार पर उन्होंने भारी कर्ज हासिल किया।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सतारा के फलटन निर्वाचन क्षेत्र से BJP के कद्दावर नेता के खिलाफ दर्ज 12 से अधिक FIR पर भरोसा करने के बाद ECIR दर्ज किया। उन पर हत्या के प्रयास, जालसाजी, अपहरण जैसे गंभीर अपराधों (12 एफआईआर में) के लिए मामला दर्ज किया गया। साथ ही महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका), महाराष्ट्र जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण (MPID) और महाराष्ट्र धन उधार (विनियमन) अधिनियम (MMLR) 2014 जैसे कड़े कानूनों के तहत भी मामला दर्ज किया गया।
अपने बचाव में अगवाने ने तर्क दिया कि उन्होंने कभी भी 12 करोड़ रुपये का ऋण नहीं लिया, जैसा कि ED ने आरोप लगाया। आरोप लगाया कि उनके प्रतिद्वंद्वी और पूर्व BJP सांसद (एमपी) रंजीतसिंह नाइक निंबालकर के इशारे पर उनके खिलाफ दर्ज इन सभी मामलों में उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सभी मामले निंबालकर द्वारा दर्ज किए गए, जिन्होंने अगवाने को अपना 'राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी' माना था, जिन्होंने तत्कालीन आधिकारिक लेटर हेड (सांसद के रूप में) पर ED सहित विभिन्न अधिकारियों को पत्र लिखकर उनसे विभिन्न मामलों में उनके खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए कहा था।
इसके अलावा, अगवाने ने तर्क दिया कि चुनाव लड़ने का अधिकार उनका अधिकार है, जिसे उनसे नहीं छीना जा सकता। उन्होंने अरविंद केजरीवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री को तत्कालीन आम चुनावों के लिए प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी गई।
उन्होंने जोर देकर कहा कि 2019 के राज्य विधानसभा चुनावों में, हालांकि वे हार गए, लेकिन उन्हें निर्वाचन क्षेत्र में 40 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। विशेष लोक अभियोजक संदेश पाटिल ने एडवोकेट चिंतन शाह की सहायता से इस याचिका का पुरजोर विरोध किया, जिन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अगवाने 12 अपराधों में हिस्ट्रीशीटर है। उस पर कड़े धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत एक अपराध भी दर्ज है।
विशेष अभियोजक ने आगे तर्क दिया कि अगवाने को अंतरिम जमानत पाने के लिए भी PMLA मामले के तहत ट्विन टेस्ट पास करना होगा, खासकर इस शर्त पर कि वह कोई अपराध नहीं करेगा।
पाटिल ने अदालत को बताया,
"5 मामलों में अभी भी जांच चल रही है। हमारा मामला यह है कि वह समाज के लिए खतरा है, क्योंकि उसके खिलाफ कई गंभीर अपराध दर्ज हैं। उसे चुनाव लड़ने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। जहां तक अरविंद केजरीवाल के मामले में फैसले का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उसका कोई पूर्ववृत्त नहीं था। वह दिल्ली के निर्वाचित मुख्यमंत्री थे। लेकिन इस मामले में केजरीवाल का फैसला लागू नहीं हो सकता।”
दलीलें सुनने के बाद जस्टिस पिताले ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि अगावने पर MPID, मकोका और यहां तक कि MMLR Act के तहत गंभीर अपराधों के आरोप हैं।
न्यायाधीश ने अंतरिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए आदेश में कहा,
"इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उनका कोई पूर्ववृत्त नहीं है। इस स्तर पर यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि तत्कालीन सांसद के कहने पर उनके खिलाफ 12 एफआईआर दर्ज की गई। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आवेदक के खिलाफ मकोका, MPID, MMRL Act आदि के अलावा आईपीसी के तहत शारीरिक चोट से संबंधित गंभीर अपराध दर्ज हैं, इस स्तर पर मैं यह निष्कर्ष नहीं दे सकता कि वह समाज के लिए खतरा नहीं हैं। वह निश्चित रूप से मुख्यमंत्री या राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं। यह कहना पर्याप्त है कि चुनाव लड़ना मौलिक अधिकार नहीं है।”