भूमि अधिग्रहण में प्रतिनिधित्व न होने पर भी मुआवज़ा देय: बॉम्बे हाईकोर्ट अनुच्छेद 300-A के तहत निगम की जिम्मेदारी को बताया बाध्यकारी

Amir Ahmad

10 July 2025 4:44 PM IST

  • भूमि अधिग्रहण में प्रतिनिधित्व न होने पर भी मुआवज़ा देय: बॉम्बे हाईकोर्ट अनुच्छेद 300-A के तहत निगम की जिम्मेदारी को बताया बाध्यकारी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि यदि किसी नगर निगम ने सार्वजनिक परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई भूमि के बदले ज़मीन मालिकों को ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राइट्स (TDR) देने का आश्वासन दिया है तो वह संविधान और क़ानून के तहत उस वादे को निभाने के लिए बाध्य है।

    कोर्ट ने नागपुर नगर निगम द्वारा वर्ष 2024 में TDR देने से इनकार करने का फैसला रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि 2001 में दिए गए आश्वासन के अनुसार TDR जारी किया जाए।

    जस्टिस नितिन डब्ल्यू. सांबरे और जस्टिस सचिन एस. देशमुख की खंडपीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे एक याचिकाकर्ता ने दायर किया था, जिसकी ज़मीन एक 24-मीटर चौड़ी विकास योजना (DP रोड) के कारण प्रभावित हुई थी।

    बता दें, यह सड़क इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IRDP) के तहत प्रस्तावित थी और 5200 वर्ग मीटर भूमि सोसायटी ने बिना किसी मुआवज़े के नगर निगम को सौंप दी, क्योंकि 2 अगस्त, 2001 के एक पत्र में निगम ने TDR देने का आश्वासन दिया था। लेकिन निगम ने 5 दिसंबर, 2024 को TDR देने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि सोसायटी पात्र नहीं है और काफी देरी हो चुकी है।

    कोर्ट ने निगम के इस रुख को खारिज करते हुए कहा,

    “सोसायटी ने निगम के आश्वासन पर भरोसा करते हुए अपनी ज़मीन मुआवज़े के रूप में TDR लेने के लिए सौंपी थी। अब निगम यह नहीं कह सकता कि वह अपने पुराने फैसले से पीछे हट रहा है, क्योंकि यह याचिकाकर्ता-सोसायटी और उसके सदस्यों के हितों के खिलाफ है।”

    कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 300-A और महाराष्ट्र रीजनल एंड टाउन प्लानिंग एक्ट (MRTP Act) की धारा 126(1)(b) का हवाला देते हुए कहा कि संपत्ति का अधिकार, भले ही अब मौलिक अधिकार नहीं रहा, फिर भी यह एक संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है।

    अदालत ने यह भी कहा कि उत्तरदायी नगर निगम को सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिग्रहित ज़मीन के बदले मालिकों को या तो नकद या TDR के रूप में मुआवज़ा देना ही होगा।

    विलंब को लेकर निगम द्वारा दिए गए तर्क को भी कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब संविधान और क़ानून मुआवज़ा देने की अनिवार्यता तय करते हैं तो निगम केवल देरी के आधार पर इससे बच नहीं सकता।

    कोर्ट ने आगे टिप्पणी की,

    “एक बार जब मुआवज़े की प्रकृति TDR के रूप में निर्धारित हो जाती है, जैसा कि इस मामले में हुआ तो वह मुआवज़ा उस स्थिति में भी देय होता है, जब ज़मीन मालिक की ओर से कोई विशेष अनुरोध या प्रतिनिधित्व न भी किया गया हो।”

    अंततः कोर्ट ने कहा कि निगम न तो अपने क़ानूनी और संवैधानिक दायित्वों से बच सकता है और न ही पहले किए गए आश्वासन से पीछे हट सकता है। इसलिए कोर्ट ने निर्देश दिया कि पहले दिए गए वादों और प्रमाणपत्रों के आधार पर TDR तुरंत जारी किया जाए।

    केस टाइटल: Shramik Co-operative Housing Society v. State of Maharashtra & Ors. [Writ Petition No. 1493 of 2025]

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