मानव दांत खतरनाक हथियार नहीं, इससे हुई चोट धारा 323 IPC के अंतर्गत आएगी, धारा 324 के तहत नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
10 April 2025 9:43 AM

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मानव दांतों से काटकर चोट पहुंचाना IPC की धारा 324 के बजाय धारा 323 के अंतर्गत स्वेच्छा से चोट पहुंचाना माना जाता है, क्योंकि मानव दांतों को हथियार नहीं माना जा सकता।
जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संजय ए. देशमुख की खंडपीठ आवेदकों की उनके खिलाफ कार्यवाही रद्द करने की याचिका पर विचार कर रही थी।
आवेदकों पर IPC की धारा 324 (स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से चोट पहुंचाना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना), 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया।
संक्षिप्त तथ्य यह है कि सूचना देने वाले और आवेदकों के बीच संपत्ति विवाद था। सूचक ने भूमि, मकान और ईंट भट्टे में बंटवारे का मुकदमा दर्ज कराया था। FIR के अनुसार जब सूचक ने आवेदकों को ईंट भट्टे से ईंटों के परिवहन के लिए सड़क तैयार करते हुए पाया तो उसने आवेदकों से कहा कि वे अदालत के फैसले तक ईंटों का परिवहन न करें।
उसने आरोप लगाया कि आवेदकों ने उसके साथ मारपीट की और आवेदक संख्या 2 ने उसके दाहिने हाथ पर काट लिया जिससे उसे चोट लग गई। यह भी आरोप लगाया गया कि आवेदक संख्या 1 ने उसके भाई के बाएं दाहिने हाथ पर काट लिया जब उसने उसे बचाने की कोशिश की।
आवेदकों ने तर्क दिया कि FIR पिछले विवादों का परिणाम है और यह किसी भी अपराध के होने का खुलासा नहीं करता है। आवेदकों ने आगे तर्क दिया कि मानव दांतों को आईपीसी की धारा 324 के तहत हथियार नहीं कहा जा सकता है।
हाईकोर्ट ने शकील अहमद बनाम दिल्ली राज्य (2004) पर भरोसा किया जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मानव दांतों को IPC की धारा 326 के तहत घातक हथियार के विवरण के अनुसार घातक हथियार नहीं माना जा सकता है।
हाईकोर्ट ने पाया कि धारा 324 और धारा 326 IPC के बीच एकमात्र अंतर क्रमशः चोट और गंभीर चोट है। उन्होंने पाया कि सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष वर्तमान मामले पर भी लागू होते हैं।
“शकील अहमद (सुप्रा) में की गई टिप्पणियां भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत मामले पर भी लागू होती हैं। शकील अहमद (सुप्रा) में चोट गंभीर थी क्योंकि तर्जनी उंगली का पोर कट गया और इसलिए इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 325 के तहत माना गया। यदि हम उसी नियम को लागू करते हैं तो चोट भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के अंतर्गत आ जाएगी जो प्रकृति में गैर संज्ञेय है।”
वर्तमान मामले में न्यायालय ने पाया कि मेडिकल अधिकारी को सूचनाकर्ता और उसके भाई पर कोई दांत के निशान नहीं मिले। मेडिकल अधिकारी के अनुसार, चोट के आयाम यह संकेत नहीं देते थे कि यह मानव दांतों के कारण हुई थी। इस प्रकार न्यायालय ने इस बात पर विश्वास नहीं किया कि चोटें मानव दांतों के कारण हुई थीं।
मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि धारा 324 IPC के तत्व आकर्षित नहीं हुए।
इस प्रकार इसने आवेदकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।
केस टाइटल: तानाजी शिवाजी सोलंकर और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (आपराधिक आवेदन संख्या 5049 वर्ष 2024)