बच्चे की कस्टडी में धर्म एक विचार हो सकता है लेकिन बच्चे का कल्याण सर्वोपरि: बॉम्बे हाईकोर्ट

Amir Ahmad

29 April 2025 12:04 PM IST

  • बच्चे की कस्टडी में धर्म एक विचार हो सकता है लेकिन बच्चे का कल्याण सर्वोपरि: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मशहूर फैशन उद्यमी और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर पर्निया कुरैशी के दूसरे पति द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपनी तीन साल की बेटी की कस्टडी मांगी थी।

    जस्टिस सरंग कोटवाल और जस्टिस श्रीराम मोडक की खंडपीठ ने दोहराया कि भले ही बच्चे की कस्टडी के मामलों में धर्म एक विचार हो सकता है लेकिन बच्चे का कल्याण हमेशा सर्वोपरि होता है।

    खंडपीठ ने विभिन्न सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि सामान्यतः लगभग 7 वर्ष की उम्र की लड़की की कस्टडी मां के पास ही रहनी चाहिए, जब तक कि ऐसे हालात न हों जो लड़की के मां के पास रहने को हानिकारक साबित करें।

    खंडपीठ ने उल्लेख किया,

    "वर्तमान मामले में बच्ची की उम्र केवल 3 वर्ष है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय अदालतें नाबालिगों की कस्टडी के मामलों में गार्डियन्स एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के प्रावधानों से ही संचालित होती हैं।"

    पर्निया और उनके पति मार्केटिंग पेशेवर साहिल गिलानी ने 2019 में विवाह किया था। पर्निया मूलतः पाकिस्तानी नागरिक थीं, जिन्होंने 1995 में भारतीय नागरिकता प्राप्त की और बाद में 2007 में अमेरिकी नागरिक बन गईं। वर्तमान में वह भारत में अमेरिकी पासपोर्ट और पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन (PIO) कार्ड के माध्यम से रह रही हैं।

    खंडपीठ ने साहिल गिलानी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि दोनों मुस्लिम हैं, इसलिए गार्डियन्स एंड वार्ड्स एक्ट 1890' लागू नहीं होता।

    कोर्ट ने कहा,

    "नाबालिग के कल्याण के संदर्भ में कोर्ट को नाबालिग की उम्र, जेंडर, धर्म, प्रस्तावित संरक्षक का चरित्र और क्षमता तथा नजदीकी रिश्ते को ध्यान में रखना होता है। धर्म सिर्फ एक कारक है न कि अंतिम निर्णय का आधार।"

    कोर्ट ने यह भी कहा,

    "हमारे विचार में तीन साल की बच्ची के लिए उसकी मां के पास रहना उसके कल्याण के लिए सर्वोत्तम है। मां की आय पर्याप्त है, जिससे वह अपने और अपनी बेटी के भरण-पोषण का ध्यान रख सकती है।"

    जजों ने आगे कहा कि यदि किसी पक्ष के पास अधिकारिक उपाय उपलब्ध हो तो वह गार्डियन्स एंड वार्ड्स एक्ट 1890 के तहत उपयुक्त अदालत में जाकर अपना दावा कर सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। इसलिए जहां कोई विवादित तथ्य हों, जिनके लिए साक्ष्य की आवश्यकता हो, वहां उपयुक्त उपाय के लिए पक्ष को निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।”

    इन टिप्पणियों के साथ पीठ ने पति की याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: साहिल गिलानी बनाम महाराष्ट्र राज्य

    Next Story