न्यायालय कानून में त्रुटियों को पूर्वव्यापी प्रभाव से सुधारने का आदेश नहीं दे सकते: बॉम्बे हाईकोर्ट

Amir Ahmad

14 July 2025 10:49 AM

  • न्यायालय कानून में त्रुटियों को पूर्वव्यापी प्रभाव से सुधारने का आदेश नहीं दे सकते: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायालय विधायिका को अधिनियमित कानूनों में कथित लिपिकीय त्रुटियों को सुधारने या विधायी परिवर्तनों को पूर्वव्यापी प्रभाव देने का निर्देश देने वाली रिट जारी नहीं कर सकते। न्यायालय ने कहा कि भले ही सीमा शुल्क में किसी परिवर्तन को सुधारात्मक या स्पष्टीकरणात्मक माना जाता हो, ऐसे परिवर्तनों को पूर्वव्यापी प्रभाव देना पूरी तरह से विधायी क्षेत्राधिकार में आता है।

    जस्टिस एम.एस. सोनक और जितेंद्र जैन की खंडपीठ आरती ड्रग्स लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुना रही थी, जिसमें वित्त अधिनियम, 2022 की तीसरी अनुसूची से सीमा शुल्क टैरिफ के अध्याय 29 के उप-शीर्षक 293359 के अंतर्गत टैरिफ मदों को हटाने को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता ने 1 मई, 2022 से मूल सीमा शुल्क (BCD) की दर को 10% से संशोधित कर 7.5% करने का निर्देश देने की मांग की थी।

    टैरिफ विसंगति को बाद में भविष्य के लिए ठीक कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह चूक एक लिपिकीय त्रुटि थी और इसे पूर्वव्यापी रूप से ठीक किया जाना चाहिए।

    प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा,

    “यह न्यायालय का काम नहीं है कि वह याचिकाकर्ता द्वारा विधायी दस्तावेज़ में वर्णित त्रुटियों, स्पष्ट त्रुटियों या लिपिकीय त्रुटियों पर निर्णय दे। न्यायालय विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या करते हैं। यदि कोई मामला बनता है तो वे किसी कानून को रद्द कर सकते हैं, यदि वह संविधान के विरुद्ध है। लेकिन वे विधायिका को कोई कानून बनाने या ऐसे बनाए गए कानून में जो त्रुटियां उनके अनुसार हो सकती हैं, उन्हें सुधारने का निर्देश देकर उसके अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करते।”

    न्यायालय ने आगे कहा कि केवल इसलिए कि विधायिका ने भविष्य में हस्तक्षेप किया और कानून में परिवर्तन किए, न्यायालय यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि विधायिका ने इस स्थिति को स्वीकार कर लिया कि असंशोधित कानून में त्रुटियां थीं। चूंकि परिवर्तनों को भविष्य में प्रभाव दिया गया, इसलिए न्यायालय यह निर्देश नहीं दे सकता कि ऐसे परिवर्तनों को पूर्वव्यापी प्रभाव दिया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "न्यायालय द्वारा सामान्यतः विधायिका को किसी विधायी उपाय को पूर्वव्यापी प्रभाव देने का निर्देश देने हेतु कोई राहत नहीं दी जा सकती। यह सब हमारे संविधान द्वारा विधायिका के लिए मुख्य रूप से आरक्षित अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण होगा।"

    याचिकाकर्ता की वैकल्पिक प्रार्थना, जिसमें 23 मार्च, 2024 के लंबित अभ्यावेदन पर निर्णय लेने हेतु केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया, उसके संबंध में अदालत ने परमादेश रिट जारी करने से इनकार कर दिया लेकिन अनुरोध किया कि प्रतिवादी अभ्यावेदन और आगामी पूरक अभ्यावेदन पर उचित समय के भीतर विचार करें।

    तदनुसार, याचिका का निपटारा बिना किसी खर्चे के कर दिया गया।

    केस टाइटल: आरती ड्रग्स लिमिटेड बनाम भारत संघ एवं अन्य [रिट याचिका (एल) संख्या 31254/2024]

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