सोसायटी पुनर्विकास के लिए डेवलपर नियुक्ति हेतु टेंडर अनिवार्य नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने शासकीय प्रस्ताव को निर्देशात्मक बताया
Amir Ahmad
13 Oct 2025 12:41 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि 4 जुलाई, 2019 को जारी शासकीय प्रस्ताव (Government Resolution - GR) जिसमें सोसायटी के पुनर्विकास के लिए डेवलपर को अंतिम रूप देने हेतु टेंडर जारी करना अनिवार्य किया गया, वह अनिवार्य नहीं बल्कि निर्देशात्मक प्रकृति का है।
जस्टिस श्याम सुमन और जस्टिस मंजुषा देशपांडे की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि डेवलपर नियुक्त करने के लिए केवल टेंडर जारी न करना ही यह मतलब नहीं होगा कि किसी कानून के उद्देश्य का उल्लंघन हुआ है।
हाईकोर्ट के इस मुद्दे पर दिए गए विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कहा,
"इस न्यायालय ने यह मत अपनाया है कि 4 जुलाई, 2019 का शासकीय प्रस्ताव अनिवार्य नहीं बल्कि निर्देशात्मक प्रकृति का है। ये दिशानिर्देश निष्पक्ष और पारदर्शी पुनर्विकास प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए। इसलिए हर विचलन और प्रक्रियागत चूक स्वयं में कोई कार्रवाई योग्य गलती नहीं है, जब तक कि यह निर्देशों के उद्देश्य या किसी वैधानिक आवश्यकता का उल्लंघन न करती हो।"
जजों ने आगे दोहराया कि ऐसे मामलों में सोसायटी के बहुमत सदस्यों द्वारा लिया गया निर्णय ही प्रभावी होगा, न कि अल्पसंख्यक सदस्यों का विरोध।
खंडपीठ देवेंद्र कुमार जैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिन्होंने मुंबई के गोरेगांव स्थित रामानुज को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के पुनर्विकास के लिए कुन्नी रियल्टी एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड की नियुक्ति को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता स्वयं सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सोसायटी ने नए अध्यक्ष के तहत 2019 के शासकीय प्रस्ताव का उल्लंघन किया, क्योंकि डेवलपर की नियुक्ति के लिए टेंडर जारी नहीं किया गया। उनका दावा था कि यह निर्णय मनमाना और अवैध था, क्योंकि अनिवार्य शासकीय प्रस्ताव का बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया।
सोसायटी की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकेश वाशी ने तर्क दिया कि उचित प्रक्रिया का पालन किया गया और डेवलपर की नियुक्ति केवल तभी हुई जब बैठक में उपस्थित 77 सदस्यों में से 76 सदस्यों ने अपनी सहमति दी। सोसायटी में कुल 83 सदस्य हैं।
इस पर विचार करते हुए जजों ने कहा,
"उचित रूप से बुलाई गई बैठक में बहुमत का निर्णय ही मान्य होगा। इस प्रकार, इस न्यायालय द्वारा व्यक्त किए गए सुसंगत दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता की मांगें स्वीकार्य नहीं हैं, क्योंकि प्रतिवादी नंबर 4 (डेवलपर) की नियुक्ति का निर्णय बहुमत द्वारा कानून के अनुसार और प्रतिवादी नंबर 2 (उप-पंजीयक) के प्राधिकृत अधिकारी की देखरेख में लिया गया। याचिकाकर्ता द्वारा हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता।"

