सभी दस्तावेज़ पहले ही जांचे जा चुके थे: बॉम्बे हाईकोर्ट ने री-असेसमेंट नोटिस रद्द किया, कहा- विचार बदलने से नहीं खुल सकता आकलन'
Amir Ahmad
25 Nov 2025 3:23 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आयकर अधिनियम 1961 (IT Act) की धारा 148 और 148A के तहत पुनर्मूल्यांकन (री-असेसमेंट) की कार्यवाही का उपयोग उन मुद्दों को दोबारा खोलने के लिए नहीं किया जा सकता, जिन्हें मूल आकलन के दौरान पहले ही जांचकर स्वीकार कर लिया गया था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि आकलन अधिकारी का केवल विचार बदल जाना विश्वास का कारण नहीं बन सकता और न ही यह पुनर्मूल्यांकन का आधार हो सकता है।
जस्टिस बी.पी. कोलाबा वाला और जस्टिस अमित एस. जमसंदेकर की खंडपीठ ने ट्रस्ट की याचिका स्वीकार करते हुए एक्ट की धारा 148 के तहत जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस को रद्द कर दिया।
बता दें, नोटिस में आरोप लगाया गया कि ट्रस्ट ने धारा 11(2) के तहत आय संचय (अक्युमुलेशन) के उद्देश्य को फॉर्म 10 में स्पष्ट नहीं किया।
अदालत ने कहा कि मूल आकलन के दौरान आकलन अधिकारी के समक्ष सभी आवश्यक दस्तावेज मौजूद थे। फॉर्म 10 संचय और उपयोग का पिछले 10 वर्षों का विवरण तथा ट्रस्टी बोर्ड का अधिकृत प्रस्ताव। मूल आकलन राष्ट्रीय फेसलेस असेसमेंट सेंटर ने धारा 143(3) के तहत पारित किया था और संचय को स्वीकार कर लिया था।
इसके बाद आकलन अधिकारी ने धारा 148A(b) के तहत नोटिस जारी किया, जिसमें एक आंतरिक ऑडिट आपत्ति का हवाला देते हुए दावा किया गया कि ट्रस्ट ने संचय का उद्देश्य स्पष्ट नहीं किया।
ट्रस्ट जमशेटजी जीजीभॉय चैरिटी फंड ने इस नोटिस को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कोर्ट ने कहा कि धारा 11(2) के तहत तय शर्तें पूरी करने के बाद ट्रस्ट को संचयित आय को कुल आय से बाहर रखने का वैधानिक अधिकार प्राप्त हो जाता है और आकलन अधिकारी इस लाभ से इनकार नहीं कर सकता।
खंडपीठ ने यह भी माना कि पुनर्मूल्यांकन का प्रयास वास्तव में एक रीव्यू जैसा था, जबकि आयकर कानून पुनर्मूल्यांकन को केवल नए तथ्यों या नए साक्ष्य की उपलब्धता तक सीमित रखता है।
अदालत ने टिप्पणी की,
“वर्तमान मामले में पुनर्मूल्यांकन शुरू करने का आदेश न केवल बदलते विचार पर आधारित है बल्कि यह मन के गैर-अनुप्रयोग (नॉन-अप्लिकेशन ऑफ माइंड) को भी दर्शाता है।”
राजस्व विभाग के पास कोई नया तथ्य या नई जानकारी नहीं थी और सभी सामग्री पहले से ही रिकॉर्ड पर थी, इसलिए अदालत ने पुनर्मूल्यांकन को अवैध ठहराते हुए आदेश को रद्द कर दिया।
खंडपीठ ने याचिका को ट्रस्ट के पक्ष में स्वीकार करते हुए पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही समाप्त कर दी।

