सरकारी कर्मचारियों द्वारा सेवा अभिलेखों में जन्मतिथि बदलने के लिए उचित समय से परे किए गए अनुरोधों पर विचार नहीं किया जाना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
5 Feb 2025 12:45 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में पुणे के पुलिस इंस्पेक्टर को कोई राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा सेवा अभिलेखों में जन्मतिथि बदलने के लिए उचित समय से परे किए गए किसी भी अनुरोध को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
जस्टिस अतुल चंदुरकर और मिलिंद सथाये की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में ज्यादातर सरकारी कर्मचारी सेवा में 'काफी समय' बिताने के बाद या रिटायरमेंट के करीब आने पर ही ऐसे बदलाव चाहते हैं।
जजों ने 22 जनवरी को पारित आदेश में कहा,
"जहां कोई सरकारी कर्मचारी काफी समय तक सेवा में रहने के बाद या अपनी रिटायरमेंट के करीब पहुंचने पर सेवा रिकॉर्ड में अपनी जन्मतिथि बदलने की मांग करता है, जहां जन्मतिथि को स्थगित करने के लिए कहा जाता है, यह स्पष्ट है कि अगर अनुमति दी जाए तो इसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है। यदि कोई सरकारी कर्मचारी जन्मतिथि में बदलाव के लिए यह चाहता है कि उसका जन्म उसकी सेवा पुस्तिका में दर्ज जन्मतिथि की तुलना में बाद की तारीख में हुआ है तो इसका मतलब है कि उसकी नियुक्ति की तारीख पर उसकी आयु किसी खास उम्र की नहीं थी और वह सेवा में प्रवेश के समय अपने दावे से कम उम्र का था।"
इसके अलावा जजों ने स्पष्ट किया कि किसी दिए गए मामले में यह (जन्मतिथि में बदलाव) पात्रता के मुद्दे पर ही असर डाल सकता है। साथ ही जब कोई सरकारी कर्मचारी दावा करता है कि उसका जन्म बाद की तारीख में हुआ है तो जाहिर है कि नियुक्ति के समय वरिष्ठता पर इसका असर पड़ता है।
जजों ने रेखांकित किया,
"किसी मामले में जहां कर्मचारियों के एक बैच की नियुक्ति एक ही तिथि पर की जाती है, वरिष्ठता बदल सकती है और सेवा पुस्तिका में ऐसा परिवर्तन अन्य सह-कर्मचारियों की वरिष्ठता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है। साथ ही संबंधित सरकार द्वारा उसे सेवा में प्रवेश के समय अपेक्षित अवधि से अधिक समय तक वेतन देने के पहलू पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यदि कोई सरकारी कर्मचारी अपने कार्यकाल के दौरान कम उम्र का था, तो उसे कुछ लाभों के लिए विचार नहीं किया जा सकता है, जो किसी दिए गए मामले में पहले से ही प्राप्त और आनंदित हो सकते हैं।"
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि ये कुछ स्थितियां और प्रभाव हैं, जो उसकी राय में प्रासंगिक हैं, जब कोई सरकारी कर्मचारी कहता है कि उसका जन्म उसकी सेवा पुस्तिका में दर्ज जन्म तिथि से बाद में हुआ है।
खंडपीठ ने कहा,
"हमारी राय में ऐसी स्थितियों से बचना चाहिए। इसलिए उचित समय से परे जन्म तिथि में परिवर्तन के अनुरोध की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वर्तमान मामले में लागू नियम के तहत यह 5 वर्ष है।"
जजों के समक्ष ज्ञानेश्वर काटकर नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर विचार किया गया, जो 15 सितंबर, 1993 को पुलिस उपनिरीक्षक के रूप में पुलिस बल में शामिल हुआ। प्रशिक्षण के बाद उसकी नियुक्ति नियमित कर दी गई और उसकी सेवा पुस्तिका में उसकी जन्मतिथि 1 जून, 1966 दर्ज थी, जो उसके स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र के अनुसार थी। 23 मई, 1995 को काटकर के पिता ने अधिकारियों के समक्ष हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि उसकी वास्तविक जन्मतिथि 24 दिसंबर, 1968 है, न कि 1 जून 1966। इसलिए याचिकाकर्ता ने 25 मई, 1995 को संबंधित अतिरिक्त पुलिस आयुक्त को आवेदन दिया, जिसमें सेवा रिकॉर्ड में जन्मतिथि बदलने का अनुरोध किया गया।
याचिकाकर्ता ने 8 जनवरी, 1996 और 19 नवंबर, 1996 को अनुस्मारक भेजे। हालांकि, उनके अनुरोधों का जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने 19 जनवरी, 2022 को घोडनाडी के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट से अपने गांव के संबंधित अधिकारियों को अपनी जन्मतिथि 24 दिसंबर, 1968 में बदलने का आदेश प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने 27 जुलाई, 2023 को अपनी जन्मतिथि में परिवर्तन के बारे में सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किया। फिर जनवरी 2024 में महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (MAT) के समक्ष एक आवेदन दायर किया, जिसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को लागू करने के लिए राज्य अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई जिन्होंने जनवरी 2022 में उनकी जन्मतिथि में परिवर्तन का आदेश दिया था।
राज्य ने उक्त आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि महाराष्ट्र सिविल सेवा (सामान्य शर्तें) नियम, 1981 के प्रावधानों के अनुसार, परिवर्तन केवल तभी किया जा सकता है, जब सरकारी विभाग की ओर से सही तिथि दर्ज करने में कोई लिपिकीय त्रुटि हो और ऐसा तभी किया जा सकता है जब किसी व्यक्ति के शामिल होने के 5 साल के भीतर अनुरोध किया गया हो।
खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी नियुक्ति के 5 साल के भीतर ऐसा आवेदन करने में विफल रहा। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: ज्ञानेश्वर काटकर बनाम पुलिस महानिदेशक और महानिरीक्षक (रिट याचिका 6847/2024)