CCI की जांच के खिलाफ एशियन पेंट्स को झटका, बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की
Amir Ahmad
15 Sept 2025 1:01 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी भी पक्ष को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा धारा 26(1) के तहत शुरुआती राय बनाने के चरण में मौखिक या लिखित सुनवाई का अंतर्निहित अधिकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर आदेश प्रशासनिक प्रकृति का होता है और सुनवाई देना या न देना CCI के विवेक पर निर्भर करता है।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ एशियन पेंट्स लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एशियन पेंट्स ने CCI के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें महानिदेशक को ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा लगाए गए एकाधिकार के दुरुपयोग के आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया गया था।
एशियन पेंट्स ने तर्क दिया कि CCI ने पहले 2022 में इसी तरह की शिकायत खारिज की थी, जो JSW पेंट्स और बालाजी ट्रेडर्स द्वारा दायर की गई थी। कंपनी ने दावा किया कि अधिनियम की धारा 26(2-A) के तहत ग्रासिम की नई शिकायत पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। एशियन पेंट्स ने यह भी तर्क दिया कि सुनवाई का अवसर न देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि धारा 26(2-A) CCI को बाद में आने वाली शिकायतों पर विचार करने से नहीं रोकती, खासकर जब वे नए तथ्य या अलग मुद्दे प्रस्तुत करती हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 26(2-A) का उद्देश्य केवल कार्यवाही की पुनरावृत्ति से बचना है न कि जांच शुरू करने से रोकना।
अदालत ने कहा कि धारा 26(1) के तहत आदेश प्रशासनिक है। इसके लिए पहले से सुनवाई की आवश्यकता नहीं होती।
कोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता को शुरुआती राय बनने के चरण में सुनवाई का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है। ऐसी सुनवाई देना है या नहीं, यह CCI का विवेक है, जो प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।"
कोर्ट ने यह भी पाया कि ग्रासिम की शिकायत अलग तथ्यों पर आधारित है। इसकी जांच जरूरी है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि CCI पिछली JSW कार्यवाही से अवगत था, फिर भी उसने ग्रासिम की शिकायत में दम पाया, जिसमें कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
तदनुसार, कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए एशियन पेंट्स के खिलाफ जांच का आदेश बरकरार रखा।

