बॉम्बे हाईकोर्ट ने युवा वकीलों को स्टाइपेंड देने के अधिकार पर उठाया सवाल, पूछा- फंड कहां से आएगा
Amir Ahmad
25 Jun 2025 1:05 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार 25 जून को याचिका पर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया कि क्या युवा वकीलों को महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल (BCMG) से स्टाइपेंड पाने का कोई वैधानिक अधिकार है।
चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस संदीप मर्ने की खंडपीठ ने कहा कि भले ही वे व्यक्तिगत रूप से इस विचार से सहमत हैं कि युवा वकीलों को स्टाइपेंड मिलना चाहिए, खासकर मुंबई जैसे शहर में, जहां 45,000 तक की जरूरत हो सकती है लेकिन उन्होंने यह भी पूछा कि ऐसी आर्थिक सहायता के लिए कौन-सा कानूनी आधार है।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं से सवाल किया,
"व्यक्तिगत रूप से हम आपके साथ हैं। हम सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं लेकिन कानूनी आधार क्या है? हम यह कैसे दे सकते हैं? बार काउंसिल के पास फंड नहीं है, आप पैसा देंगे?"
यह टिप्पणी जनहित याचिका (PIL) पर हुई सुनवाई के दौरान आई, जिसे अजीत विजय देशपांडे ने दायर किया था। वह 2021 में कानून की पढ़ाई कर रहे थे और उन्होंने महाराष्ट्र भर के युवा वकीलों को 5,000 मासिक स्टाइपेंड देने के लिए BCMG को निर्देश देने की मांग की थी।
कोर्ट ने प्रारंभिक टिप्पणी में कहा कि इस याचिका में कोई “जनहित” दिखाई नहीं देता, क्योंकि यह केवल वकीलों से संबंधित मामला है।
कोर्ट ने कहा,
"जनता को वकीलों को मिलने वाले स्टाइपेंड से क्या लेना-देना? यह केवल वकीलों का मामला है, जनता का नहीं... हम इस प्रयास की सराहना करते हैं, लेकिन पैसा कहां से आएगा? हम कहते हैं 5,000 नहीं, आपको 25,000 मिलना चाहिए... लेकिन आप जिस अधिकार की मांग कर रहे हैं, वह कानूनी रूप से कैसे जायज़ है?"
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को जूनियर वकीलों को न्यूनतम स्टाइपेंड देने को लेकर निर्देश जारी किए। जब कोर्ट ने पूछा कि बार काउंसिल ने इस पर क्या किया, तो उन्हें बताया गया कि शहरी क्षेत्रों में 20,000 और ग्रामीण क्षेत्रों में 15,000 की सिफारिश की गई है।
चीफ जस्टिस अराधे ने कहा कि मुंबई जैसे शहर में युवा वकीलों को 45,000 तक की जरूरत हो सकती है। लेकिन उन्होंने दोबारा यह पूछा कि क्या वास्तव में वकीलों को स्टाइपेंड मांगने का कोई वैधानिक अधिकार है और बार काउंसिल पर यह जिम्मेदारी कैसे डाली जा सकती है?
बार काउंसिल की ओर से एडवोकेट उदय वरुंजीकर ने अदालत को बताया कि कुछ राज्यों में स्थानीय सरकारों ने स्टाइपेंड योजनाओं को वित्तीय सहायता दी है लेकिन महाराष्ट्र में सरकार ने इसके लिए फंड देने से इनकार कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि वकीलों की रजिस्ट्रेशन फीस को 15,000 से घटाकर 600 कर दिया गया है, जिससे फंड में काफी कमी आई है।
सुनवाई के बाद अदालत ने याचिकाकर्ताओं से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या कोई कानूनी या संवैधानिक प्रावधान युवा वकीलों को स्टाइपेंड का दावा करने की अनुमति देता है और बार काउंसिल पर ऐसी वित्तीय ज़िम्मेदारी कैसे डाली जा सकती है।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की।

