HDFC CEO की FIR रद्द करने की याचिका पर सुनवाई से अलग हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के तीन जज

Amir Ahmad

27 Jun 2025 11:33 AM IST

  • HDFC CEO की FIR रद्द करने की याचिका पर सुनवाई से अलग हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के तीन जज

    एक दिलचस्प घटनाक्रम में बॉम्बे हाईकोर्ट के कम-से-कम तीन जजों ने पिछले एक सप्ताह के भीतर HDFC Bank के CEO शशिधर जगदीशन द्वारा दायर उस याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है, जिसमें उन्होंने लीलावती किर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट की ओर से दर्ज FIR रद्द करने की मांग की।

    गौरतलब है कि शिकायतकर्ता ट्रस्ट मुंबई के प्रसिद्ध लीलावती अस्पताल का संचालन करता है।

    अपनी FIR में ट्रस्ट ने आरोप लगाया कि जगदीशन ने पूर्व ट्रस्टी चेतन मेहता से 2.05 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी ताकि उन्हें वित्तीय सलाह दी जा सके और ट्रस्ट की प्रबंधन समिति पर उनका नियंत्रण बनाए रखा जा सके। इसके अलावा उन पर HDFC Bank के प्रमुख पद का दुरुपयोग कर ट्रस्ट के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का भी आरोप लगाया गया।

    शुरुआत में जगदीशन की याचिका 18 जून को जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस राजेश पाटिल की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी। यह खंडपीठ आमतौर पर FIR रद्द करने की याचिकाओं की सुनवाई करती है। हालांकि जस्टिस पाटिल ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

    इसके बाद जगदीशन की कानूनी टीम ने सीनियर एडवोकेट अमित देसाई के नेतृत्व में याचिका को जस्टिस सारंग कोतवाल और जस्टिस श्याम चंदक की खंडपीठ के समक्ष उल्लेखित किया। परंतु जस्टिस कोतवाल ने भी सुनवाई से अलग होने का निर्णय लिया।

    बाद में मामला जस्टिस महेश सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ के समक्ष पेश हुआ।

    जस्टिस जैन ने सुनवाई पर सहमति जताई लेकिन यह खुलासा किया कि उनके पास HDFC Bank के शेयर हैं।

    बावजूद इसके किसी ने आपत्ति नहीं की और मामला 26 जून को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।

    लेकिन 26 जून को सुनवाई के समय प्रतिवादी प्रशांत किशोर मेहता के वकील नितिन प्रधान ने पीठ की सुनवाई पर आपत्ति जताई।

    इस पर जस्टिस जैन ने पूछा,

    “क्या यह इसलिए कि मेरे पास HDFC के शेयर हैं? क्या मैंने यह कल ही नहीं बताया था?”

    अंततः अदालत ने आदेश में दर्ज किया कि कल (25 जून) जब यह मामला हमारे समक्ष रखा गया तब जस्टिस जैन ने HDFC Bank में अपने शेयर होने की जानकारी दी थी। आज प्रतिवादी नंबर 3 के वकील ने इस पीठ से सुनवाई पर असहमति जताई, इसलिए यह मामला अब उस पीठ के समक्ष नहीं जाएगा, जिसमें जस्टिस जैन शामिल हों।

    सीनियर एडवोकेट अमित देसाई ने इस पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि सिर्फ शेयर होने के आधार पर जज का अलग होना उचित नहीं है और प्रतिवादियों पर मंच चयन (फोरम शॉपिंग) का आरोप लगाया।

    सुनवाई के दौरान पीठ के समक्ष चीफ जस्टिस आलोक अराधे द्वारा पारित प्रशासनिक आदेश भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें छह जजों के नाम थे, जिन्होंने पहले से ही किसी न किसी कारणवश लीलावती अस्पताल से जुड़े मामलों की सुनवाई से खुद को अलग किया है। इनमें शामिल हैं:

    1. जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे।

    2. जस्टिस गिरीश कुलकर्णी।

    3. जस्टिस बरगेस कोलाबावाला।

    4. जस्टिस रियाज छागला।

    5. जस्टिस शर्मिला देशमुख।

    6. जस्टिस आरिफ डॉक्टर।

    जानकारी के अनुसार यह सूची जगदीशन की कानूनी टीम ने चीफ जस्टिस को दी थी ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि ये जज इस मामले की सुनवाई नहीं करेंगे।

    अब संभावना है कि यह याचिका 30 जून को जस्टिस रविंद्र घुगे और जस्टिस मिलिंद साथाये की खंडपीठ के समक्ष उल्लेखित की जाएगी, क्योंकि यह इस मामले की सुनवाई के लिए निर्धारित वैकल्पिक अदालत है।

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