बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवाब मलिक के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई के लिए समीर वानखेड़े के पिता की याचिका खारिज की

Amir Ahmad

28 July 2025 3:36 PM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवाब मलिक के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई के लिए समीर वानखेड़े के पिता की याचिका खारिज की

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और सीनियर एनसीपी नेता नवाब मलिक के खिलाफ पूर्व एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े और उनके परिवार के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक बयान देने के आरोप में अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से इनकार किया।

    जस्टिस महेश सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने समीर के पिता ध्यानदेव द्वारा दायर अवमानना याचिका खारिज करते हुए मौखिक रूप से कहा,

    "हमारे कंधे बहुत चौड़े हैं, आपके भी कंधे चौड़े हो सकते हैं या आपके पास मानहानि का मुकदमा दायर करने का विकल्प है।"

    खंडपीठ ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि 10 दिसंबर, 2021 को मलिक ने हलफनामा दायर किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह मीडिया द्वारा पूछे जाने पर भी वानखेड़े परिवार पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।

    ध्यानदेव ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि मलिक ने इस वचनबद्धता का उल्लंघन किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर एक ट्वीट पोस्ट किया, जिसमें समीर वानखेड़े को 'समीर ध्यानदेव वानखेड़े' के बजाय 'समीर दाऊद वानखेड़े' कहा गया।

    जजों ने कहा कि विचाराधीन बयान मलिक के खिलाफ ध्यानदेव द्वारा दायर मुकदमे के बाद दिए गए, जिसे कार्यालयीन आपत्तियों का समाधान न होने के कारण खारिज कर दिया गया।

    खंडपीठ ने कहा,

    "ट्वीट की जांच करने पर हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि ऐसा बयान वचनबद्धता का उल्लंघन है। आरोप मुख्य रूप से मुकदमे के निपटारे के बाद की अवधि से संबंधित हैं।"

    इसके अलावा, खंडपीठ ने कहा कि अवमानना का मामला अवमाननाकर्ता और न्यायालय के बीच का है और याचिकाकर्ता की भूमिका केवल न्यायालय के समक्ष परिस्थितियों को प्रस्तुत करने की है।

    खंडपीठ ने 11 जुलाई को पारित आदेश में कहा,

    "परिस्थितियों पर समग्र रूप से विचार करते हुए हम इस मामले में अपने अवमानना अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना उचित नहीं समझते। तदनुसार, अवमानना याचिका खारिज की जाती है। याचिकाकर्ता के लिए मुकदमे की बहाली सुनिश्चित करने और मुकदमे में राहत प्राप्त करने के लिए कोई अन्य उपाय अपनाने का विकल्प खुला छोड़ दिया गया।"

    अतः खंडपीठ ने अवमानना याचिका खारिज कर दी।

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