गड्ढों से मौत पर 6 लाख मुआवजा: बॉम्बे हाईकोर्ट ने नागरिक निकायों और ठेकेदारों को जवाबदेह ठहराया

Amir Ahmad

14 Oct 2025 12:06 PM IST

  • गड्ढों से मौत पर 6 लाख मुआवजा: बॉम्बे हाईकोर्ट ने नागरिक निकायों और ठेकेदारों को जवाबदेह ठहराया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में सोमवार को यह स्पष्ट किया कि अब से यदि गड्ढों या खराब सड़कों के कारण किसी की मृत्यु होती है तो सड़क निर्माण करने वाले ठेकेदार और संबंधित नागरिक प्राधिकरण उस मौत के लिए जिम्मेदार होंगे और उन्हें पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा देना होगा।

    जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस संदेश पाटिल की खंडपीठ ने जवाबदेही तय करते हुए गड्ढों या खराब सड़कों के कारण मरने वाले व्यक्तियों के परिवारों को 6 लाख और गंभीर रूप से घायल होने वालों को 50 हजार से 2.50 लाख तक मुआवजा देने का आदेश दिया।

    कोर्ट ने अपने आदेश में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि नागरिक निकायों को अब जवाबदेह ठहराने का समय आ गया है। जजों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह स्थापित कर चुका है कि नागरिकों को अच्छी स्थिति वाली और गड्ढा-मुक्त सड़कों का अधिकार है। इस सेवा का कोई भी उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा।

    जजों को सूचित किया गया कि इस वर्ष मुंबई, ठाणे और भिवंडी में गड्ढों के कारण नागरिकों की मौतें हुईं, जिसके बाद दोष मढ़ने का खेल शुरू हो गया, जिसमें हर प्राधिकरण अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ता रहा।

    कोर्ट ने कहा,

    "मृत्यु और गंभीर चोटें गड्ढों और खुले मैनहोल के कारण मानसून के दौरान नियमित विशेषता बन गईं। यह उच्च समय है कि नागरिक अधिकारियों सड़क रखरखाव का जिम्मा संभालने वाले ठेकेदारों के साथ ऐसी मौतों और चोटों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।"

    खंडपीठ ने पाया कि इस बार-बार आने वाली समस्या' को हल करने में अधिकारियों की ओर से कोई गंभीरता नहीं दिखती। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि जब तक नागरिक अधिकारियों को जवाबदेह नहीं ठहराया जाता, यह दुखद परिदृश्य हर साल दोहराता रहेगा।

    जजों ने कहा कि गड्ढों के कारण घायल होने या जान गंवाने वाले अधिकांश व्यक्ति दोपहिया वाहन चालक होते हैं, जो मुख्य रूप से मध्यम और निम्न-आय वर्ग से आते हैं। वे अक्सर अपने परिवारों के एकमात्र कमाने वाले होते हैं और उनकी क्षति से आश्रितों को अपूरणीय वित्तीय और भावनात्मक कठिनाई होती है।

    आदेश में कहा गया,

    "ऐसे पीड़ितों या उनके परिवारों को मुआवजा देना ही संबंधित एजेंसियों के लिए 'जागने की घंटी' (wake-up call) का काम करेगा।"

    खंडपीठ ने अपने 77-पृष्ठ के फैसले में यह भी नोट किया कि करोड़ों रुपये टोल और अन्य राजस्व के रूप में एकत्र किए जाने के बावजूद सड़कों की दयनीय स्थिति घोर नागरिक उदासीनता को दर्शाती है।

    जजों ने कहा,

    "यह स्पष्ट रूप से निर्माण में खराब गुणवत्ता वाली सामग्री और घटिया कारीगरी को इंगित करता है। जब तक गड्ढों से संबंधित मौतों और चोटों के लिए जिम्मेदार लोगों को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह नहीं ठहराया जाता और उन्हें अपनी जेब से मौद्रिक दायित्व वहन करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता, वे इस मुद्दे की गंभीरता को नहीं समझेंगे।"

    कोर्ट ने आदेश दिया कि अधिकारियों और ठेकेदारों पर अब से जवाबदेही तय की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बुनियादी ढांचे के लिए एकत्र किए गए सार्वजनिक राजस्व का प्रभावी ढंग से उपयोग हो। सभी प्राधिकरणों का यह कर्तव्य है कि सड़कें इस तरह से बनाई जाएं और उनका रखरखाव किया जाए कि उन्हें न्यूनतम पांच से दस साल तक मरम्मत की आवश्यकता न पड़े।

    जजों ने इस बात पर जोर दिया कि अच्छी और सुरक्षित सड़कें प्रदान करना नागरिक अधिकारियों और राज्य एजेंसियों की केवल जिम्मेदारी नहीं बल्कि संवैधानिक और कानूनी कर्तव्य है। बॉम्बे (मुंबई) देश की वित्तीय राजधानी होने के नाते राजस्व में बड़ा योगदान देती है और एमसीजीएम एशिया के सबसे धनी निगमों में से एक है।

    जजों ने निष्कर्ष निकाला कि उचित स्थिति में सड़कें होने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है। इस कर्तव्य को निभाने में विफलता नागरिकों के मूल्यवान मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।

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