POCSO Act के तहत गंभीर अपराधों में जमानत देना कानून की मंशा को कमजोर करता है: बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग बालक के साथ कुकर्म के आरोपी को जमानत देने से किया इनकार

Amir Ahmad

5 July 2025 12:08 PM IST

  • POCSO Act के तहत गंभीर अपराधों में जमानत देना कानून की मंशा को कमजोर करता है: बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग बालक के साथ कुकर्म के आरोपी को जमानत देने से किया इनकार

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने वाले विशेष कानून (POCSO Act) के तहत गंभीर मामलों में अदालतों को जमानत देने में उदार दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए।

    एकल जज जस्टिस अमित बोरकर ने अपने आदेश में कहा कि हर आरोपी को स्वतंत्रता का मूल अधिकार होता है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है।

    जज ने कहा,

    "यह अदालत यह स्पष्ट करती है कि प्रत्येक आरोपी को स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है। इसे न्याय, सार्वजनिक व्यवस्था और विशेष रूप से नाबालिग पीड़ितों की सुरक्षा जैसे बड़े हितों के साथ संतुलित करना आवश्यक है। POCSO Act बच्चों को यौन अपराधों से कड़ी सुरक्षा प्रदान करने की विधायी मंशा को दर्शाता है। अदालतों की यह जिम्मेदारी है कि इस मंशा को ऐसे गंभीर मामलों में जमानत देने की उदार नीति से विफल न होने दें।"

    12 पेज के फैसले में जस्टिस बोरकर ने कहा कि यौन शोषण के मामलों में नाबालिग पीड़ितों को जो मानसिक आघात होता है, वह गंभीर और दीर्घकालिक होता है।

    उन्होंने कहा,

    "आपराधिक न्याय व्यवस्था को उनके दर्द के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे आरोपी के डराने या दबाव से और पीड़ित न हों।"

    यह टिप्पणियां अदालत ने उस समय की जब उसने मयूर वानखेड़े को जमानत देने से इनकार किया, जिस पर मुंबई के जुहू बीच के पास झाड़ियों में 17 वर्षीय किशोर के साथ कुकर्म करने का आरोप है।

    अदालत ने यह तर्क भी खारिज किया कि 17 वर्षीय किशोर ने कोई प्रतिरोध नहीं किया होगा, इसलिए घटना असंभव है।

    आगे कहा गया,

    "यौन अपराधों में अक्सर मानसिक दबाव, भय और आश्चर्य का तत्व होता है, जिससे पीड़ित प्रभावी शारीरिक प्रतिरोध नहीं कर पाता। घटना स्थल (समुद्र तट के पास सुनसान झाड़ियां) और अचानक हमला घटना को अंजाम देने में सहायक हो सकते हैं। केवल उम्र के आधार पर शारीरिक ताकत की तुलना नहीं की जा सकती।"

    कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अपराध न केवल शारीरिक नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि पीड़ित पर गंभीर मानसिक आघात भी छोड़ते हैं।

    अदालत ने यह भी माना कि ऐसे मामलों में आरोपी के जमानत पर बाहर आने से पीड़ित या गवाहों पर दबाव डालने या उन्हें डराने का खतरा रहता है, जिससे मुकदमे की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।

    अदालत ने कहा,

    "आरोपी यदि जमानत पर रिहा होता है तो उसके द्वारा पीड़ित या गवाहों को प्रभावित करने की आशंका है। पीड़ित नाबालिग है और विशेष रूप से भय या दबाव का शिकार हो सकता है।"

    इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने वानखेड़े की जमानत याचिका खारिज कर दी।

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