मतदाता सूची में मृत व्यक्तियों के नाम बने रहने का अर्थ यह नहीं कि चुनाव परिणाम को प्रभावित करने के लिए उनका दुरुपयोग हुआ: बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
17 Jun 2025 4:10 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में यह टिप्पणी की कि केवल इसलिए कि मतदाता सूची में मृत व्यक्तियों के नाम अब भी दर्ज हैं, यह मान लेना उचित नहीं होगा कि उनके नाम पर वोट डाले गए। यह कहते हुए न्यायालय ने कांग्रेस सांसद शोभा बच्छाव की लोकसभा क्षेत्र धुले से 18वीं लोकसभा चुनाव में जीत बरकरार रखी।
जस्टिस अरुण पेडणेकर की एकल पीठ ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार डॉ. सुभाष भामरे द्वारा दायर चुनाव याचिका खारिज की, जो बच्छाव से चुनाव हार गए थे।
न्यायाधीश ने कहा,
"ऐसा कोई प्राथमिक साक्ष्य नहीं है, जिससे यह संकेत मिले कि मृत व्यक्तियों के नाम पर वोट डाले गए।"
याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग से फॉर्म 17-ए और 17-सी के तहत रखे गए रजिस्टर की जानकारी तथा सीसीटीवी फुटेज की मांग की थी ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि मृत व्यक्तियों के नाम पर वोट डाले गए या नहीं और किसी व्यक्ति ने कई बूथों पर एक से अधिक बार वोट डाला या नहीं।
न्यायालय ने आगे कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई शपथपत्र मौजूद नहीं है, जिसमें किसी मतदान एजेंट ने यह कहा हो कि उसने मृत व्यक्तियों के नाम पर मतदान होते देखा है या उसने इस पर आपत्ति दर्ज कराई हो। यह भी नहीं कहा गया कि मतदान एजेंटों को संबंधित समय पर मतदाता की मृत्यु की जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने आपत्ति नहीं की।
जस्टिस पेडणेकर ने कहा,
"यह याचिका सिर्फ अटकलों और जांच पर आधारित है। चुनाव याचिकाकर्ता ने मृत व्यक्तियों के नामों की सूची प्रस्तुत की, जो अब भी मतदाता सूची में हैं। कुछ मतदाताओं के नाम एक से अधिक स्थानों पर भी दिखाए। लेकिन यह साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं कि मृत व्यक्तियों के नाम पर मतदान हुआ या किसी मतदाता ने एक से अधिक स्थानों पर मतदान किया। केवल मृत व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची में होने से यह मान लेना कि उनके नाम पर वोट डाले गए, न्यायसंगत नहीं है।"
उन्होंने यह भी कहा कि यदि मतदान केंद्रों पर मौजूद मतदान एजेंटों ने यह शपथपत्र दिया होता कि उन्होंने मृत व्यक्तियों के नाम पर मतदान होते देखा तो इससे यह पुष्टि होती कि ऐसा मतदान हुआ है।
अदालत ने कहा,
"यह डेटा चुनाव याचिकाकर्ता द्वारा चुनाव आयोग से मांगा गया और यदि चुनाव आयोग उपयुक्त डेटा उपलब्ध कराता है तो ही याचिकाकर्ता का दावा पुष्ट या खंडित किया जा सकता है। इसलिए यह न्यायालय मानता है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 100(1)(d)(iv) के अंतर्गत उठाया गया आधार यथोचित सामग्री से समर्थित नहीं है। बिना उपयुक्त दलीलों और साक्ष्यों के यह न्यायालय यह जांच नहीं करेगा कि क्या मृत व्यक्तियों के नाम पर मतदान हुआ या किसी व्यक्ति ने कई बार मतदान किया।"
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस उम्मीदवार शोभा बच्छाव ने अपने शपथपत्र और अनिवार्य फॉर्म 25 में अपने आपराधिक मामलों का उल्लेख जानबूझकर नहीं किया।
इस पर न्यायालय ने कहा,
"यह कहा गया कि बच्छाव को अपने खिलाफ दर्ज अपराध की जानकारी थी लेकिन उन्होंने जानबूझकर इसे शपथपत्र में नहीं दर्शाया। हालांकि, चुनाव याचिका में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि इस जानकारी को छिपाने से मतदाताओं पर कोई अनुचित प्रभाव पड़ा या यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के तहत कोई भ्रष्ट आचरण साबित होता है।"
इन सभी तर्कों को खारिज करते हुए अदालत ने चुनाव याचिका खारिज कर दिया।
केस टाइटल: डॉ. सुभाष रामराव भामरे बनाम भारत का चुनाव आयोग (चुनाव याचिका संख्या 2 / 2024)