बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण साक्ष्यों की अनुपस्थिति को नज़रअंदाज़ करने के लिए ट्रायल जज की खिंचाई की, न्यायिक अकादमी से प्रशिक्षण के दौरान ऐसे मुद्दों को संबोधित करने का आग्रह किया

Amir Ahmad

15 April 2024 7:04 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण साक्ष्यों की अनुपस्थिति को नज़रअंदाज़ करने के लिए ट्रायल जज की खिंचाई की, न्यायिक अकादमी से प्रशिक्षण के दौरान ऐसे मुद्दों को संबोधित करने का आग्रह किया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में पोस्टमास्टर को गबन के लिए दोषी ठहराने के लिए ट्रायल कोर्ट की खिंचाई की, जिसमें गबन की पुष्टि करने के लिए डाकघर के रजिस्टर और जर्नल के दस्तावेजी साक्ष्य की अनुपस्थिति को नज़रअंदाज़ किया गया।

    जस्टिस एसएम मोदक ने दोषसिद्धि खारिज करते हुए अभियोजन पक्ष और न्यायपालिका दोनों के उदासीन दृष्टिकोण की आलोचना की और मुकदमे के दौरान प्रासंगिक दस्तावेजी साक्ष्य जब्त करने और पेश करने के महत्व पर जोर दिया।

    उन्होंने कहा,

    “न तो एपीपी प्रभारी और न ही ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश उचित कदम/निर्देश लेने में सतर्क हैं। उन्होंने रजिस्टर के बिना ही मुकदमा चलाया। ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों पर चर्चा की और महत्वपूर्ण साक्ष्यों की अनुपस्थिति को नजरअंदाज करके आवेदक को दोषी करार दिया। यह अजीब है कि अपीलीय न्यायालय ने भी इस तथ्य को नजरअंदाज किया और दोषसिद्धि की पुष्टि की। यह हितधारकों को दी गई जिम्मेदारी की घोर उपेक्षा है।''

    न्यायालय ने इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए इसे महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी (MJA) के संज्ञान में लाने का फैसला किया, क्योंकि यह न्यायाधीशों को प्रशिक्षण प्रदान करता है।

    उन्होंने आगे कहा,

    “मैं पुलिस और जजों के इस उदासीन दृष्टिकोण को संयुक्त निदेशक MJA के समक्ष लाना आवश्यक समझता हूं। जजों को प्रशिक्षण दिया जाता है। वे इस तथ्य को वहां प्रशिक्षित ट्रायल कोर्ट और अपीलीय न्यायालय के जजों के संज्ञान में ला सकते हैं। संयुक्त निदेशक MJA से यह अपेक्षित है कि वे इस न्यायालय को सूचित करें कि इन टिप्पणियों को किस प्रकार प्रभावी बनाया गया। इस निर्णय की प्रति उन्हें भेजी जाए।''

    न्यायालय ने खंबेवाड़ी पोस्ट के दोषी पोस्टमास्टर द्वारा पुनर्विचार आवेदन स्वीकार कर लिया, जिसे जमा राशि को संभालने और रिकॉर्ड बनाए रखने का काम सौंपा गया। यह आरोप लगाया गया कि 20 अगस्त, 2006 और 28 फरवरी, 2007 के बीच अभियुक्त ने पनवेल डाकघर के सहायक अधीक्षक ने दस्तावेजों का निरीक्षण करने के बाद आरोप लगाया कि संबंधित ग्राहकों द्वारा जमा की गई राशि डाक विभाग के खाते में जमा नहीं की गई।

    उन्होंने पाया कि पूरी अवधि के लिए रजिस्टर बनाए नहीं रखे गए। इसीलिए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उस अवधि के लिए पैसे का दुरुपयोग किया गया। उन्होंने कथित तौर पर खाताधारकों से भी इस तथ्य की पुष्टि की। निरीक्षण के बाद वावोशी पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज की गई, जिसके कारण आईपीसी की धारा 409 और 468 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

    खालापुर के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आरोपियों को आईपीसी की धारा 409 के तहत दोषी ठहराया, जबकि धारा 468 के तहत उन्हें आरोप से बरी कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पनवेल ने याचिकाकर्ता की अपील खारिज कर दी और दोषसिद्धि बरकरार रखी। इस प्रकार, उन्होंने हाइकोर्ट के समक्ष वर्तमान पुनर्विचार आवेदन दायर किया।

    मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने खाताधारकों और जांच अधिकारियों सहित सात गवाहों की जांच की। दस्तावेजी साक्ष्य में जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेज शामिल हैं, जिनमें रजिस्टर, पासबुक और दैनिक खाता पत्र शामिल थे।

    हालांकि, एफआईआर में उल्लिखित अवधि से संबंधित प्रासंगिक रजिस्टर जब्त नहीं किए गए और जो जब्त किए गए, उन्हें अदालत में पेश नहीं किया गया और गवाहों को नहीं दिखाया गया।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "यहां तक ​​कि कोई यह भी कह सकता है कि ट्रायल जज ने जब्ती पंचनामा के अनुसार कम से कम जब्त किए गए रजिस्टरों को पेश करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी न करके उदासीन दृष्टिकोण अपनाया है।"

    महत्वपूर्ण दस्तावेजी साक्ष्यों की कमी के बावजूद ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 409 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया, जो लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात से संबंधित है। हाईकोर्ट ने कहा कि यहां तक ​​कि अपीलीय अदालत ने भी अभियोजन पक्ष द्वारा प्रासंगिक रजिस्टर पेश करने में विफलता और इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि जब्त किए गए रजिस्टर एफआईआर में उल्लिखित अवधि से संबंधित नहीं थे।

    हाईकोर्ट ने कहा कि प्रासंगिक रजिस्टरों और पत्रिकाओं को जब्त करने और अदालत में पेश करने में विफलता के कारण अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में कमी आई, क्योंकि गवाहों की मौखिक गवाही को दस्तावेजी साक्ष्यों से पुष्ट नहीं किया जा सका।

    कोर्ट ने गबन के आरोपों को साबित करने में दस्तावेजी साक्ष्य के महत्व पर जोर दिया। प्रासंगिक रजिस्टरों और जर्नलों की अनुपस्थिति को देखते हुए अदालत ने अभियोजन पक्ष और निचली अदालतों दोनों की इस महत्वपूर्ण मुद्दे को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में विफलता को उजागर किया।

    अदालत ने बताया कि इन दस्तावेजों का निरीक्षण किए बिना शिकायतकर्ता गबन का निष्कर्ष नहीं निकाल सकता। हालांकि, जब्त किए गए रजिस्टरों को सबूत के तौर पर पेश नहीं किया गया, जिससे गंभीर कमी पैदा हुई।

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