गिरफ्तारी अपमान लाती है, स्थायी दाग छोड़ती है: अवैध गिरफ्तारी पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार पर 1 लाख का जुर्माना लगाया
Amir Ahmad
4 Oct 2025 4:02 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार पर 1 लाख का जुर्माना लगाते हुए कहा कि एक कर्नाटक निवासी व्यक्ति को गलत धाराओं में फंसाकर अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया और 20 दिनों तक जेल में रखा गया, जो कानून का गंभीर दुरुपयोग है।
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस संदीश पाटिल की खंडपीठ ने पाया कि बांद्रा पुलिस थाने के इंस्पेक्टर प्रदीप केरकर और उपनिरीक्षक कपिल शिरसाठ ने अपने सीनियर अधिकारियों से अनुमति लिए बिना ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) जोड़ दी जबकि उन्हें केवल धाराएं 420, 406, 465, 477A और 34 लगाने की अनुमति थी।
सीनियर अधिकारियों को इस बदलाव की जानकारी दिए बिना दोनों पुलिसकर्मियों ने गिरफ्तारी की अनुमति मांगी और आरोपी वसंथा नायक को 23 अक्टूबर 2024 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जहां वह करीब 20 दिन तक हिरासत में रहा।
अदालत ने पाया कि पुलिस अधिकारियों ने जानबूझकर CrPC की धारा 41A के तहत नोटिस देने की प्रक्रिया से बचने के लिए गैर-जमानती IPC की धारा 409 लगाई, ताकि सीधे गिरफ्तारी की जा सके।
अदालत की तीखी टिप्पणी
अदालत ने आदेश में कहा,
“मामले के तथ्यों से पुलिस की मनमानी झलकती है। आरोपी को IPC की धारा 409 जैसी गैर-जमानती धारा जोड़कर गिरफ्तार किया गया, जिसकी सज़ा आजीवन कारावास तक हो सकती है, जबकि इस धारा के तहत FIR दर्ज करने का कोई निर्देश नहीं था। यह कानून का घोर दुरुपयोग है, जिसके चलते व्यक्ति को 20 दिन तक अवैध रूप से जेल में रहना पड़ा। हम संवैधानिक न्यायालय के रूप में इस पर मौन नहीं रह सकते।”
अदालत ने आगे कहा,
“किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी एक गंभीर विषय है। गिरफ्तारी अपमान लाती है, स्वतंत्रता छीनती है और स्थायी घाव छोड़ जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार अनावश्यक गिरफ्तारियों पर निंदा की है। भले ही अपराध गैर-जमानती क्यों न हो।”
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया,
“राज्य सरकार छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को 1,00,000 मुआवज़ा अदा करे। मुंबई पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया जाता है कि वे उप-आयुक्त स्तर के अधिकारी से संबंधित पुलिसकर्मियों पर विभागीय जांच कराएं। जांच आठ सप्ताह में पूरी की जाए और मुआवज़े की राशि दोषी अधिकारियों के वेतन से वसूल की जाए।”
पूरा मामला
वसंथा नायक और उनके रिश्तेदारों ने साझेदारी फर्म बनाई, जिससे बाद में नायक ने दस्तावेज़ के माध्यम से अपना नाम वापस ले लिया। इसके बावजूद शिकायत दर्ज की गई, जिस पर केरकर और शिरसाठ ने पहले कुछ धाराओं के तहत FIR दर्ज करने की अनुमति मांगी। हालांकि, बाद में उन्होंने जानबूझकर IPC की धारा 409 जोड़कर नायक को गिरफ्तार किया, जिससे गिरफ्तारी गैरकानूनी बन गई।
अदालत ने अपने फैसले में कहा,
“हम यह घोषित करते हैं कि 23 अक्टूबर, 2024 को की गई गिरफ्तारी अवैध थी और विधिक अधिकार के बिना की गई।”
इन टिप्पणियों के साथ हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए राज्य सरकार को मुआवज़ा देने और जिम्मेदार अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

