संदिग्ध को जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, राज्य और न्यायालयों का दायित्व है कि इसका उल्लंघन न हो: बॉम्बे हाईकोर्ट

Amir Ahmad

12 July 2025 12:25 PM IST

  • संदिग्ध को जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, राज्य और न्यायालयों का दायित्व है कि इसका उल्लंघन न हो: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने शुक्रवार को कहा कि किसी संदिग्ध व्यक्ति को जिसे जांच में आरोपी बनाया जाना है, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी से वंचित नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित करना राज्य और न्यायालयों का दायित्व है कि इस अक्षम्य अधिकार का उल्लंघन न हो।

    जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के की एकल पीठ ने सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार की गई महिला को ज़मानत देते हुए कहा कि पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों का पालन करना चाहिए, जो बताता है कि किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से किस प्रकार और किस सीमा तक वंचित किया जा सकता है।

    जज ने कहा,

    "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इस देश के नागरिकों को प्राप्त 'जीवन और स्वतंत्रता' की गारंटी से हिरासत में बंद किसी अभियुक्त को भी वंचित नहीं किया जा सकता। निश्चित रूप से उस संदिग्ध को भी नहीं, जिसे जांच के दौरान अभियुक्त और फिर अभियुक्त से मुक़दमे के दौरान दोषी बनाने की कोशिश की जा रही हो। राज्य और न्यायालय दोनों का यह दायित्व है कि वे यह सुनिश्चित करें कि नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता के अपूरणीय अधिकार का उल्लंघन न हो, जिससे उसे क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना वंचित नहीं किया जा सकता। CrPC में यह बताया गया कि किसी व्यक्ति को किस प्रकार और किस सीमा तक उसकी स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है। इसलिए इसका कड़ाई से पालन किया जाना आवश्यक है। इसलिए गिरफ़्तारी के मामले में निर्धारित प्रक्रिया का कोई भी उल्लंघन अवैध घोषित किया जा सकता है।"

    अभियोजन पक्ष के अनुसार आवेदक महिला यवतमाल ज़िले में बाबाजी दाते महिला सहकारी बैंक लिमिटेड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्यरत थी। इस पद पर नियुक्त होने से पहले वह उक्त बैंक में क्लर्क और शाखा प्रबंधक के पद पर कार्यरत थीं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने पति और रिश्तेदारों को 1.80 करोड़ रुपये के कई लोन स्वीकृत किए और बैंक को भारी नुकसान पहुँचाया, क्योंकि ये लोन उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना स्वीकृत किए गए थे।

    ज़मानत की मांग करते हुए महिला ने बताया कि उसे सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार किया गया था और अभियोजन पक्ष भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और CrPC के प्रावधानों का पालन करने में भी विफल रहा, जो पुलिस को अभियुक्त को लिखित रूप में गिरफ़्तारी के आधार बताने का आदेश देते हैं।

    आवेदक ने बताया कि पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के बाद केवल उसके रिश्तेदार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में सूचित किया लेकिन गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए।

    जस्टिस जोशी-फाल्के ने कहा कि CrPC की धारा 50ए को शामिल करने का उद्देश्य जिसके तहत गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति के लिए गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा नामित मित्रों रिश्तेदारों या व्यक्तियों को गिरफ्तारी के बारे में सूचित करना अनिवार्य है, यह सुनिश्चित करना है कि वे कानून के तहत अनुमत गिरफ्तार व्यक्ति की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए तत्काल और त्वरित कार्रवाई कर सकें।

    पीठ ने कहा,

    "गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी हिरासत के कारण रिहाई सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रक्रिया तक तत्काल और आसान पहुँच नहीं मिल सकती, जो उसके मित्रों और रिश्तेदारों को उपलब्ध होती। संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अनुसार, ऐसी गिरफ्तारी अवैध हो सकती है।"

    पीठ ने आगे कहा,

    "रिकॉर्ड से पता चलता है कि वर्तमान आवेदक की गिरफ्तारी सूर्यास्त के बाद हुई, जो अवैध है। गिरफ्तारी के कारणों के बारे में आवेदक के मित्रों/रिश्तेदारों को भी नहीं बताया गया, इसलिए ऐसी गिरफ्तारी अवैध है। उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों के आलोक में आवेदक ने जमानत देने का मामला बनाया।"

    इन टिप्पणियों के साथ न्यायाधीश ने आरोपी को जमानत दी।

    केस टाइटल: सुजाता विलास महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य

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