छह साल से करदाता द्वारा दायर सुधार आवेदन पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया: बॉम्बे हाईकोर्ट ने AO के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश दिया
Amir Ahmad
12 April 2024 9:03 AM

Bombay High Court
बॉम्बे हाईकोर्ट ने AO के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश दिया, क्योंकि करदाता द्वारा दायर सुधार आवेदन पर छह साल से कोई आदेश पारित नहीं किया गया।
जस्टिस के.आर. श्रीराम और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि आयकर सहायक आयुक्त (ACIT) अधिकारी का कर्तव्य है कि वह आवेदन पर आदेश पारित करे, जो लगभग 6 साल से लंबित है, बजाय इसके कि वह जवाब में हलफनामे में निराधार बयान दे।
शायद ACIT को लगता है कि वह इस देश के किसी भी नागरिक के प्रति जवाबदेह नहीं है। इस आदेश की एक कॉपी PCCIT के समक्ष रखी जाएगी, जिससे ACIT के खिलाफ कर्तव्य में लापरवाही के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सके।
याचिकाकर्ता/करदाता ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें आरोप लगाया गया कि आयकर अधिनियम 1961 की धारा 154 के तहत दायर याचिकाकर्ता के आवेदन का निपटारा न करना प्रतिवादी द्वारा उसे दी गई वैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने से अनुचित और गैरकानूनी इनकार है तथा धारा 154 के तहत रिकॉर्ड से स्पष्ट गलतियों के सुधार के लिए आवेदनों पर निर्णय लेने के उसके वैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता द्वारा कई अनुस्मारक जारी किए जाने के बावजूद प्रतिवादी/AO याचिकाकर्ता द्वारा दायर सुधार के आवेदन पर आदेश पारित करने में विफल रहा है।
विभाग ने तर्क दिया कि CBDT द्वारा धारा 119 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने से इनकार करना वास्तविक कठिनाई' की अभिव्यक्ति की पांडित्यपूर्ण और संकीर्ण व्याख्या के आधार पर केवल गंभीर वित्तीय संकट का मामला है जो अनुचित है।
याचिकाकर्ता ने देश के ऐसे राज्य में औद्योगिक उपक्रम स्थापित किया है, जिसे विकसित राज्य नहीं माना जाता है। इसमें लगभग 100 लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इस तरह के उपक्रम में उसने बहुत बड़ा निवेश किया है। इसलिए उसे धारा 80-आईसी के तहत वैधानिक लाभ दिए जाने की वैधानिक उम्मीद है। उक्त उपक्रम में निर्मित उत्पादों के मूल्य निर्धारण सहित व्यावसायिक निर्णय ऐसे वैधानिक लाभों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं।
इसलिए इस आधार पर कि कोई गंभीर वित्तीय संकट का मामला नहीं है, अधिनियम की धारा 119 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने से इनकार करना, जो विधायी इरादे को आगे बढ़ाए न्यायालय द्वारा खारिज किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि विधायिका ने प्रतिवादी विभाग को देरी को माफ करने की शक्ति प्रदान की है, जिससे अधिकारी मामले को उसके गुण-दोष के आधार पर निपटाकर पक्षकारों के साथ न्याय कर सकें। अधिनियम में देरी को माफ करने के प्रावधानों को प्रदान किए जाने के कारणों की सराहना किए बिना नियमित रूप से आदेश पारित करना न्याय के उद्देश्य को पराजित करता है।
न्यायालय ने ACIT को निर्देश दिया कि वह अधिनियम की धारा 154 के तहत लंबित आवेदन का 31 मई, 2024 तक या उससे पहले गुण-दोष के आधार पर निपटारा करे तथा कोई भी आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दे, जिसकी सूचना कम से कम पांच कार्य दिवस पहले दी जाए।
केस टाइटल- पंकज कैलाश अग्रवाल बनाम आयकर सहायक आयुक्त