फॉरेंसिक ऑडिट में गंभीर खामियां: बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिल अंबानी के खिलाफ फ्रॉड कार्यवाही पर लगाई रोक
Amir Ahmad
24 Dec 2025 4:58 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिलायंस समूह के संस्थापक और चेयरमैन अनिल अंबानी को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ भारतीय ओवरसीज बैंक, IDBI बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा शुरू की गई फ्रॉड वर्गीकरण की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाई।
अदालत ने प्रथम दृष्टया पाया कि जिस फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर यह कार्यवाही शुरू की गई, वह कानूनी और वैधानिक मानकों पर खरी नहीं उतरती।
जस्टिस मिलिंद एन. जाधव की एकल पीठ ने कहा कि 15 अक्टूबर 2020 को BDO LLP द्वारा तैयार की गई फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट RBI की फ्रॉड से संबंधित मास्टर डायरेक्शंस, 2016 के अनुरूप नहीं है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि BDO LLP की फॉरेंसिक ऑडिटर के रूप में नियुक्ति कंपनी अधिनियम के तहत निर्धारित योग्यता मानकों के अनुरूप नहीं थी।
कोर्ट ने कहा कि RBI की 2016 की मास्टर डायरेक्शंस के तहत भी आंतरिक या बाहरी ऑडिटर की नियुक्ति संबंधित वैधानिक कानूनों का पालन करते हुए ही की जा सकती है। यदि ऐसा न किया जाए तो यह एक गंभीर और विनाशकारी स्थिति को जन्म दे सकता है, जहां बैंक अपने विवेक से किसी भी अयोग्य व्यक्ति को फॉरेंसिक ऑडिटर नियुक्त कर सकते हैं, जो स्वीकार्य नहीं है।
यह मामला वर्ष 2024 में तीनों बैंकों द्वारा जारी कारण बताओ नोटिसों से जुड़ा है, जिनमें अनिल अंबानी को RBI की फ्रॉड मास्टर डायरेक्शंस के तहत फ्रॉड घोषित करने का प्रस्ताव रखा गया।
ये नोटिस रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड, रिलायंस टेलीकॉम लिमिटेड और रिलायंस इन्फ्राटेल लिमिटेड के वर्ष 2013 से 2017 के बीच के वित्तीय लेनदेन से संबंधित फॉरेंसिक ऑडिट पर आधारित थे।
यह ऑडिट SBI के नेतृत्व वाले बैंकों के कंसोर्टियम द्वारा तब कराया गया, जब RCom समूह की कंपनियां दिवाला प्रक्रिया में चली गई।
अनिल अंबानी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि फॉरेंसिक ऑडिट ऐसे व्यक्ति द्वारा साइन किया गया, जो चार्टर्ड अकाउंटेंट नहीं था और ऑडिट रिपोर्ट में स्वयं यह निष्कर्ष नहीं निकाला गया कि उन्होंने कोई फ्रॉड किया।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि फ्रॉड ढांचे को लागू करने में लगभग चार वर्षों की देरी की गई, जो पूरी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में लाती है।
वहीं बैंकों की ओर से कहा गया कि ऑडिट RBI की मास्टर डायरेक्शंस के तहत कराया गया था और बाद में आए योग्यता संबंधी प्रावधानों को पूर्व प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता।
हालांकि, अदालत ने इस दलील से सहमति नहीं जताई और कहा कि RBI के निर्देशों के तहत कराए गए फॉरेंसिक ऑडिट भी वैधानिक ऑडिट मानकों और कानूनों के अधीन होते हैं।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि बैंकों के पास जमा धन जनता का पैसा होता है, इसलिए लेखा और ऑडिट मानकों का सख्ती से पालन किया जाना अनिवार्य है।
कोर्ट ने सवाल उठाया कि ऐसी स्थिति में बैंकिंग प्रणाली और संबंधित बैंक आखिर किसके प्रति जवाबदेह हैं।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति को फ्रॉड घोषित किए जाने के परिणाम अत्यंत गंभीर होते हैं, जिनमें ब्लैकलिस्टिंग, वर्षों तक बैंक ऋण से वंचित होना, आपराधिक एफआईआर, प्रतिष्ठा को नुकसान और वित्तीय अधिकारों पर गंभीर प्रभाव शामिल हैं।
अदालत ने बैंकों की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि न्यायिक हस्तक्षेप से पूरी प्रक्रिया बाधित हो जाएगी, यह कहते हुए कि यदि पूरी कार्यवाही ही संदिग्ध आधार पर खड़ी हो तो उस पर आगे बढ़ना उचित नहीं है।
इन टिप्पणियों के साथ बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिल अंबानी के खिलाफ चल रही फ्रॉड वर्गीकरण की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाई।
मामले में आगे की सुनवाई अभी लंबित है।

