भीमा कोरेगांव मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हनी बाबू की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

Amir Ahmad

3 Oct 2025 3:26 PM IST

  • भीमा कोरेगांव मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हनी बाबू की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू की ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

    बाबू पर एल्गार परिषद भीमा कोरेगांव मामले में कथित भूमिका के लिए मामला दर्ज किया गया।

    जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस रंजीत सिंह भोंसले की खंडपीठ ने बाबू द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

    जस्टिस गडकरी ने मामले को फैसले के लिए बंद करते हुए कहा,

    "हमें आदेश सुनाने में कुछ समय लग सकता है।"

    गौरतलब है कि स्पेशल कोर्ट के आदेश के खिलाफ बाबू की प्रारंभिक अपील हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी और 19 सितंबर, 2022 को पारित एक आदेश में उन्हें ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया था।

    उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी लेकिन परिस्थितियों में बदलाव का हवाला देते हुए 3 मई, 2024 को इसे वापस ले लिया था। परिस्थितियों में यह बदलाव इस तथ्य के कारण था कि मामले के आठ अभियुक्तों को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने ज़मानत दी थी।

    बाबू ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि उन्होंने बिना किसी सुनवाई के 5 साल और 2 महीने से ज़्यादा समय जेल में बिताया है और स्पेशल कोर्ट में भी सुनवाई में देरी हो रही है।

    इस तर्क का विरोध करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) अनिल सिंह ने तर्क दिया कि बाबू ने रोना विल्सन और सुधीर धावड़े की तरह जेल में पर्याप्त समय नहीं बिताया, इसलिए उन्हें केवल लंबी कैद के आधार पर ज़मानत नहीं दी जा सकती।

    वर्तमान आवेदन केवल लंबी कैद के बिंदु तक सीमित है। गुण-दोष के आधार पर नहीं।

    प्रोफ़ेसर बाबू को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने 28 जुलाई, 2020 को भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किया और तब से जेल में हैं। उन पर रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF) और CPI (माओवादी) के साथ गहरी संलिप्तता का आरोप है। उन पर वामपंथी किताब सीक्रेसी हैंडबुक का भी पालन करने का आरोप है, जो कथित तौर पर बाबू से बरामद हुई। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि अगर एक साथी को गिरफ्तार किया जाता है तो अन्य साथियों को मदद के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, कानूनी प्रतिनिधित्व, प्रचार और विरोध प्रदर्शन आयोजित करके।

    यह मामला विशेष रूप से बाबू की अपने सहकर्मी प्रोफेसर जीएन साईबाबा की मदद करने में कथित भूमिका के संबंध में है, जिनका भी इस मामले में नाम है।

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