बच्चा पैदा न कर पाने पर ताना मारना क्रूरता नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने शादीशुदा ननदों के खिलाफ 498A व दहेज एक्ट के तहत कार्यवाही रद्द की
Amir Ahmad
25 April 2025 6:15 AM

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि यदि पति की शादीशुदा बहनें (ननदें) अपने भाई की पत्नी को बच्चा पैदा न कर पाने को लेकर ताना मारती हैं तो इसे आईपीसी की धारा 498A या दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 के अंतर्गत कार्यवाही जारी रखने के लिए पर्याप्त आधार नहीं माना जा सकता।
जस्टिस हरिनाथ एन की एकल पीठ ने पति (प्रथम आरोपी) की बहनों के खिलाफ कार्यवाही रद्द करते हुए कहा,
“याचिकाकर्ता 3 और 4 अपनी शादी के बाद 1वें आरोपी और तीसरे प्रतिवादी (पत्नी) के वैवाहिक घर से दूर रह रही थीं। शिकायत के अनुसार तीसरे प्रतिवादी ने हैदराबाद में 1वें आरोपी और याचिकाकर्ताओं 2 व 3 के साथ रहना शुरू किया था। याचिकाकर्ता 3 और 4 के खिलाफ केवल इतना कहा गया कि जब भी वे उस घर में आती थीं जहाँ 1वां आरोपी और तीसरा प्रतिवादी रहते थे वे तीसरे प्रतिवादी को बच्चा न होने के कारण ताने देती थीं। इस तरह के अस्पष्ट आरोप बिना किसी विशेष तारीख या घटना के विवरण के कानून की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।”
मामले की पृष्ठभूमि:
यह आपराधिक याचिका उन याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई, जो प्रथम आरोपी (पति) के परिवार के सदस्य हैं, जिन पर IPC की धारा 498A [पत्नी के प्रति क्रूरता] और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 [दहेज देने या लेने पर दंड] और धारा 4 [दहेज मांगने पर दंड] के तहत आरोप लगाए गए।
याचिकाकर्ता 1 और 2 पति के माता-पिता थे और 3 और 4 उनकी बहनें। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उन्होंने पति-पत्नी के वैवाहिक विवादों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। जांच के दौरान भी गवाहों द्वारा याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध कोई ठोस आरोप नहीं लगाए गए फिर भी उन्हें आरोपी बनाया गया।
कोर्ट के निष्कर्ष:
कोर्ट ने पाया कि शिकायत में याचिकाकर्ता 3 और 4 के खिलाफ केवल इतना कहा गया कि उन्होंने पत्नी को बच्चा न होने पर ताने दिए।
कोर्ट ने कहा कि विशेष आरोपों के अभाव में केवल ताना देना धारा 498A या धारा 3 व 4 के तहत अपराध मानने के लिए पर्याप्त नहीं है।
इसके अलावा कोर्ट ने यह भी माना कि यह उन मामलों में से एक है, जहां मुख्य आरोपी (पति) से बदला लेने के लिए उससे असंबंधित रिश्तेदारों को भी फंसाया गया।
जस्टिस ने कहा,
“शिकायत और गवाहों के बयानों से यह स्पष्ट है कि अगर याचिकाकर्ताओं 3 और 4 के खिलाफ आरोपों को सच भी माना जाए तो भी उनके विरुद्ध IPC की धारा 498A या दहेज अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत कोई मामला नहीं बनता।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता 3 और 4 शादी के बाद दंपत्ति के साथ नहीं रहते थे इसलिए वे किसी प्रकार की प्रताड़ना के लिए उत्तरदायी नहीं माने जा सकते।
अंततः कोर्ट ने याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए सिविल जज–कम–प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रीकाकुलम की अदालत में याचिकाकर्ता 3 और 4 के विरुद्ध लंबित मामला रद्द करने का आदेश दिया।
केस टाइटल: बासुरु मणि भूषण राव एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य