सरकारी नौकरियों में ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को आरक्षण देने पर राज्य से 'सकारात्मक निर्णय' की उम्मीद: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

3 Nov 2025 2:21 PM IST

  • सरकारी नौकरियों में ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को आरक्षण देने पर राज्य से सकारात्मक निर्णय की उम्मीद: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से अपेक्षा जताई कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय को सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण देने के संबंध में एक सकारात्मक निर्णय लेकर आएगी।

    जस्टिस बट्टू देवनंद और जस्टिस ए. हरी हरनाध शर्मा की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस समय की, जब अदालत को सूचित किया गया कि कर्नाटक सरकार ने वहां के हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुरूप सार्वजनिक नौकरियों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए विशेष आरक्षण की व्यवस्था की।

    राज्य के एडिशनल एडवोकेट जनरल ने अदालत से समय मांगा ताकि वह इस मुद्दे को राज्य सरकार के समक्ष रख सके और यह जांच की जा सके कि कर्नाटक सरकार के मॉडल को ध्यान में रखते हुए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को विशेष आरक्षण देने की व्यवहारिकता क्या हो सकती है।

    इस पर अदालत ने कहा,

    यह न्यायालय उम्मीद करता है कि राज्य सरकार, कर्नाटक सरकार की नीति का अध्ययन करने के बाद सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को 1% क्षैतिज आरक्षण देने पर सकारात्मक निर्णय जल्द से जल्द लेगी। राज्य सरकार को इस संबंध में अपना रुख प्रस्तुत करने के लिए मामला 24 नवंबर, 2025 को सूचीबद्ध किया जाता है।”

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह मामला एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की अपील से जुड़ा है, जिसने सिंगल जज के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें राज्य सरकार की उस अधिसूचना को वैध ठहराया गया, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सब-इंस्पेक्टर भर्ती प्रक्रिया से बाहर रखती थी।

    अपीलकर्ता ने पहले सिंगल बेंच के समक्ष याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि यह अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करती है तथा यह सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय “NALSA बनाम भारत संघ (2014)” के विपरीत है।

    सुप्रीम कोर्ट ने NALSA मामले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को थर्ड जेंडर के रूप में कानूनी मान्यता दी थी और केंद्र व राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे उन्हें सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) घोषित करते हुए शिक्षा और रोजगार में आरक्षण प्रदान करें।

    सिंगल जज ने अधिसूचना को संवैधानिक मानते हुए कहा कि NALSA के निर्णय में सरकारों को केवल ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को SEBC के रूप में मान्यता देने का निर्देश दिया गया, न कि उनके लिए किसी निश्चित प्रतिशत का आरक्षण निर्धारित करने का।

    अदालत ने यह भी कहा कि Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019 और उसके तहत बनाए गए नियमों में केवल रोजगार तक पहुंच की बात कही गई, लेकिन आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। अतः राज्य की ओर से अब तक आरक्षण न देना अवमानना का विषय हो सकता है, पर इससे अधिसूचना को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।

    इसके खिलाफ अपीलकर्ता ने खंडपीठ में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के NALSA निर्णय की सही व्याख्या नहीं की गई और कर्नाटक सरकार की तरह आंध्र प्रदेश सरकार ने भी अब तक ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

    राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि सिंगल जज के आदेश से पहले ही इस विषय पर नीति तैयार की जा रही थी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।

    अब यह मामला 24 नवंबर, 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया, जब राज्य सरकार से इस विषय पर उसके निर्णय या नीति का विवरण अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने की अपेक्षा की गई।

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