कर्ज के दबाव में आकर आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के लिए लेनदार को उकसाने वाला मानना, उचित तरीके से पैसे मांगने वाले व्यक्ति के वैध हितों को नुकसान पहुंचा सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने व्यक्ति के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दर्ज एफआईआर खारिज की, जो कथित तौर पर मृतक पर उधार दिए गए पैसे वापस करने के लिए दबाव बना रहा था।
एफआईआर खारिज करते हुए जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा,
"जहां कोई व्यक्ति अपने कर्ज के दबाव में आकर आत्महत्या करने के लिए उकसाता है और लेनदार को उसके आत्महत्या के लिए उकसाने वाला माना जाता है, ऐसे हर मामले में उचित तरीके से अपना पैसा मांगने वाले व्यक्ति के वैध हितों को नुकसान पहुंचेगा।"
अदालत सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हरियाणा के रेवाड़ी जिले में धारा 306 और 34 आईपीसी के तहत दर्ज एफआईआर और धारा 173 सीआरपीसी के तहत दर्ज रिपोर्ट रद्द करने के लिए याचिका दायर की गई।
यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने उसे उधार में दिए गए पैसे वापस करने के लिए दबाव डाला और धमकी दी इस हद तक कि मृतक ने अपनी जान दे दी।
मृतक व्यक्ति की पत्नी ने धारा 161 सीआरपीसी के तहत प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उससे अपने पैसे मांगने के कारण उसका पति तनाव में रहता था।
उसने कहा कि घटना की तारीख को भी वह मानसिक तनाव में था और उसकी अनुपस्थिति में उसने पंखे पर रस्सी से लटक कर आत्महत्या कर ली।
वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि मृतक उनसे कर्ज लेता था, जिसे वह समय-समय पर चुकाता था, लेकिन हाल ही में मृतक द्वारा लिए गए कर्ज को चुकाया नहीं गया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार याचिकाकर्ता बार-बार उनसे पैसे वापस करने के लिए कह रहे थे और उन पर दबाव बनाने के लिए गालियां दे रहे थे, जिसके कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली और उसके सुसाइड नोट में उनका नाम भी शामिल है।
बयानों को सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि धारा 107 आईपीसी और 306 आईपीसी तथा हरभजन संधू बनाम पंजाब राज्य और अन्य तथा अन्य हाइकोर्ट के निर्णय के अनुसार,
"उत्प्रेरण का गठन करने के लिए घटना और उसके बाद की आत्महत्या के बीच निकट और जीवंत संबंध होना चाहिए, क्योंकि अभियुक्त द्वारा उकसाया जाना या अवैध कार्य करना ही एकमात्र कारक होना चाहिए, जिसके कारण बाद में मृतक ने आत्महत्या की।"
न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या में नाम होना ही अपने आप में अभियुक्त की दोषसिद्धि को स्थापित नहीं करता जब तक कि अपराध के तत्व सिद्ध न हो जाएं।
जस्टिस बेदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि धारा 306 आईपीसी के तहत एफआईआर रद्द करने की याचिका पर विचार करते समय न्यायालय को उत्पीड़न की घटनाओं का सामना करने पर सामान्य विवेक वाले सामान्य व्यक्ति की प्रतिक्रिया का परीक्षण करना चाहिए।
न्यायाधीश ने आगे स्पष्ट किया कि यदि न्यायालय को लगता है कि उत्पीड़न का स्तर ऐसा था कि सामान्य व्यवहार और प्रतिक्रियाओं वाला सामान्य विवेक वाला व्यक्ति भी आत्महत्या करने जैसा चरम कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाएगा तो न्यायालय कार्यवाही रद्द न करके अच्छा करेगा।
न्यायाधीश ने कहा,
"दूसरी ओर यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि उत्पीड़न के प्रति सामान्य प्रतिक्रिया वाला सामान्य व्यक्ति आत्महत्या नहीं करेगा, लेकिन मृतक ने अपने अतिसंवेदनशील स्वभाव या अन्य योगदान देने वाले कारकों के कारण ऐसा किया तो न्यायालय को कार्यवाही रद्द करने में संकोच नहीं करना चाहिए।"
वर्तमान मामले में न्यायालय ने कहा कि एफआईआर धारा 161 सीआरपीसी के तहत बयानों का अवलोकन और सुसाइड नोट में गंभीर उत्पीड़न की कोई विशेष घटना का खुलासा नहीं किया गया, जिससे मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया जा सके। वास्तव में याचिकाकर्ताओं की ओर से मृतक को आत्महत्या करने के लिए सहायता या उकसाने के लिए कोई सकारात्मक कार्य नहीं किया गया।
न्यायालय ने कहा,
"आरोपों और रिकॉर्ड से यह स्थापित नहीं हुआ कि याचिकाकर्ताओं का मृतक को ऐसी स्थिति में धकेलने का इरादा था कि वह अंततः आत्महत्या कर ले।”
न्यायालय ने कहा,
"सबसे अच्छी बात यह कही जा सकती है कि मृतक पर याचिकाकर्ताओं से प्राप्त लोन राशि को वापस करने के लिए दबाव डाला गया और इससे अधिक कुछ नहीं। इसलिए जाहिर है, सामान्य विवेक वाला व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में आत्महत्या नहीं करता, लेकिन मृतक ने अपने अतिसंवेदनशील स्वभाव के कारण ऐसा किया।”
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने धारा 173(2) सीआरपीसी और 173(8) सीआरपीसी के तहत दर्ज एफआईआर और रिपोर्ट रद्द कर दी।
केस टाइटल- सुशील कुमार @ सुशील यादव एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य