हत्या की जांच में जांच अधिकारी द्वारा जब्त सामग्री को फोरेंसिक जांच के लिए न भेजना और फिर उसके निष्कर्षों को मान लेना अपरिपक्व दृष्टिकोण: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-10-18 07:12 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने हत्या के आरोपी व्यक्ति को कथित अपराध से जोड़ने वाले परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा अन्य सामग्री की कमी के कारण जमानत देते हुए जांच अधिकारी द्वारा जांच में अपनाए गए अपरिपक्व दृष्टिकोण पर असंतोष व्यक्त किया।

जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने अपने आदेश में राज्य की दलील पर गौर किया कि मामले में एकत्र किए गए साक्ष्य, जब्त की गई बीयर की बोतलें - उंगलियों के निशान पर रिपोर्ट के लिए फोरेंसिक साइंस लैब में नहीं भेजी गईं, क्योंकि घटना 24 मार्च को हुई थी जबकि बोतलें 17 जून को ही जब्त की गईं।

इसके बाद अदालत ने कहा,

"बोतलों को खुले में पड़े हुए तीन महीने से अधिक हो चुके थे। इसलिए जांच अधिकारी ने सोचा और अनुमान लगाया कि मौसम के कारण बोतलों पर उंगलियों के निशान नहीं रह गए होंगे, क्योंकि वे खुले स्थान पर पड़ी थीं। इस न्यायालय की सुविचारित राय में उपरोक्त स्पष्टीकरण फिर से पूरी तरह से अस्वीकार्य और समझ से परे है, क्योंकि जांच अधिकारी को यह अनुमान लगाना नहीं है कि फोरेंसिक जांच में क्या मिलेगा और क्या नहीं मिलेगा। यह उनका कर्तव्य था कि वे बोतलें भेजकर देखें कि क्या अभियुक्त और मृतक के उंगलियों के निशान अभी भी बोतलों पर मौजूद हैं। यह केवल जांच अधिकारी द्वारा अपनाए गए अपरिपक्व और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।”

यह आदेश याचिकाकर्ता गमर सिंह की जमानत याचिका पर पारित किया गया, जिस पर राजेश डावर की कथित हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत मामला दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता 17 जून से हिरासत में था।

प्रस्तुतियों पर विचार करने और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों को देखने के बाद अदालत ने कहा कि यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मामला था। अंतिम बार एक साथ देखे गए गवाहों के बयानों को छोड़कर रिकॉर्ड पर कोई अन्य जोड़ने वाली सामग्री उपलब्ध नहीं है, जिसे 31 मार्च को दर्ज किया गया, जबकि घटना की तारीख 24 मार्च बताई गई। यह देखते हुए कि बीयर की बोतलें तीन महीने बाद जब्त की गईं और उन्हें फिंगरप्रिंट जांच के लिए FSL को नहीं भेजा गया। हाईकोर्ट ने कहा कि वह जमानत याचिका स्वीकार करने के लिए इच्छुक है।

न्यायालय ने एम.सी.आर.सी. नंबर 28712/2024 में न्यायालय के पहले के आदेश का भी हवाला दिया, जिसमें सुस्त और लापरवाह जांच की प्रथा को रोकने के लिए पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि राज्य के प्रत्येक जिले में गंभीर अपराधों में प्रत्येक जांच की निगरानी दो सदस्यों की टीम द्वारा की जाए, जिसका नेतृत्व एक वरिष्ठ स्तर के पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाए, जो किसी अनुभवी IPS अधिकारी के पद से नीचे का न हो और पुलिस विभाग का कोई अन्य अधिकारी जो पुलिस उपनिरीक्षक के पद से नीचे का न हो, जिसे उक्त IPS अधिकारी द्वारा चुना जा सकता है।

इसके बाद याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए जस्टिस अभ्यंकर ने कहा,

"इस आदेश की कॉपी एम.सी.आर.सी. नंबर 28712/2024 दिनांक 22.08.2024 में पारित आदेश के अनुपालन के लिए पुलिस महानिदेशक को भी भेजी जाए। उपरोक्त निर्देशों और टिप्पणियों के साथ MCRC को अनुमति दी जाती है और उसका निपटारा किया जाता है।”

केस टाइटल: गमर सिंह @ गमरिया बनाम मध्य प्रदेश राज्य

Tags:    

Similar News