मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने केस डायरी में हेराफेरी करने और क्लोजर रिपोर्ट खारिज होने के बाद जांच में देरी करने के लिए IO और SHO को फटकार लगाई
मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने बालाघाट जिले के विभिन्न रैंक के पुलिस अधिकारियों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा क्लोजर रिपोर्ट खारिज किए जाने के बाद भी 4 साल से अधिक समय तक मामले की जांच न करने के लिए फटकार लगाई।
इसमें कहा गया कि यदि अन्य लोगों की संलिप्तता पाई जाती है तो उन्हें भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) के तहत जांच अधिकारी और तत्कालीन थाना प्रभारी (कोतवाली) के साथ अपराध के लिए आरोपी बनाया जा सकता है।
अदालत ने अनुमान लगाया कि पुलिस विनियमन के पैराग्राफ 642 के अनुसार जांच अधिकारी को उस तारीख को केस डायरी में कार्यवाही दर्ज करनी चाहिए, जिस दिन जांच की गई, लेकिन वर्तमान मामले में ऐसा नहीं किया गया।
अदालत ने यह भी नोट किया कि SHO और IO ने प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध किया। इसमें कहा गया कि DGP को संशोधन से पहले अधिनियम की धारा 13(1)(डी) के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज करने का निर्देश दिया गया।
जब DGP स्वप्निल गांगुली की ओर से पेश वकील ने अदालत से अनुरोध किया कि जांच का प्रभार महानिरीक्षक जैसे किसी अन्य उच्च पदस्थ अधिकारी को सौंप दिया जाए तो अदालत ने वकील को याद दिलाया कि जब 12.03.2024 को पुलिस अधीक्षक (बालाघाट) से अदालत द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब देने के लिए कहा गया, तो क्या हुआ।
इसमें कहा गया कि बालाघाट एसपी विस्तृत जवाब दाखिल करने में अनिच्छुक थे और उन्होंने उक्त जिम्मेदारी अतिरिक्त एसपी पर डाल दी। दोनों परिदृश्यों को आपस में जोड़ते हुए अदालत ने अनुरोध अस्वीकार कर दिया और आदेश में नीचे उल्लेख किया,
“यदि पुलिस अधिकारी अदालत के आदेशों को गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं हैं और यदि वे अपने स्वयं के विभाग द्वारा की जा रही गलतियों को महसूस करने के लिए तैयार नहीं हैं तो इस अदालत के पास पुलिस महानिदेशक को स्वयं जांच करने का निर्देश देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं हैं।”
अदालत ने रेखांकित किया कि डीजीपी के लिए यह महसूस करना आवश्यक होगा कि उनके अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई नागरिकों के अधिकारों को खतरे में डाल रही है।
न्यायालय के अनुसार जांच अधिकारी पूरे समय मामले को लेकर सोता रहा और एसएचओ (कोतवाली) या बालाघाट के पुलिस अधीक्षक द्वारा कोई सार्थक पर्यवेक्षण नहीं किया गया। न्यायालय ने एसपी और एडिशनल एसपी को दोषी अधीनस्थ अधिकारियों को बचाने के लिए फटकार लगाते हुए कोई कसर नहीं छोड़ी, जिन्हें मामले की जांच सौंपी गई। एसपी ने पहले प्रस्तुत किया कि मासिक अपराध नियंत्रण बैठक के दौरान मामले की जांच लंबित होने की जानकारी उन्हें नहीं दी गई।
जस्टिस अहलूवालिया ने जोर दिया,
“यह वास्तव में आश्चर्यजनक है कि पूरा विवाद तीन दस्तावेजों में घूमता है; जरायम रजिस्टर, रोजनामचा सनहा और पुलिस केस डायरी। फिर भी, बालाघाट के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चार दिनों की अवधि के भीतर जांच पूरी करने की स्थिति में नहीं थे, जबकि इस न्यायालय ने तीनों दस्तावेजों को देखने के बाद दो मिनट के भीतर सभी अवैधताओं का पता लगा लिया था।”
पृष्ठभूमि और अन्य अवलोकन
यह रिट याचिका मूल शिकायतकर्ता अतुल मंडलेकर द्वारा दायर की गई, जिसमें पुलिस अधीक्षक और एसएचओ को अपराध नंबर/131/14 में जांच को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश देने के लिए परमादेश की रिट की मांग की गई, जो आईपीसी की धारा 448, 452, 294, 427 और 506 के तहत दर्ज अपराधों के लिए दर्ज किया गया। रिट में राजेंद्र सिंह पवार बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य (2021) में मध्य प्रदेश पुलिस विनियमन अधिनियम के नियम 634 [सामान्य डायरी] का उल्लंघन करके अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी जांच की मांग की गई।
बालाघाट जिले के पुलिस विभाग की 'खेदजनक स्थिति' के बारे में आगे टिप्पणी करते हुए अदालत ने बताया कि केस डायरी में 2017 में क्लोजर रिपोर्ट खारिज करने के बाद की गई आगे की जांच के बारे में पर्याप्त विवरण नहीं है। एसएचओ के बयान के अनुसार भी 2021 में कुछ गवाहों के बयान लेने के अलावा आगे कुछ नहीं किया गया। अदालत ने आगे कहा कि बयान दर्ज होने के बाद भी 2.5 साल से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इसमें कहा गया कि डायरी में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि गवाहों को उनके बयान दर्ज करने से पहले नोटिस जारी किए गए, या उन्हें उस उद्देश्य के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया गया।
जस्टिस अहलूवालिया ने कहा,
चूंकि जांच अधिकारी ने पूरी तरह से झूठे दस्तावेजों पर भरोसा किया होगा, इसलिए यह कारण हो सकता है कि ये सभी कार्यवाही जरायम रजिस्टर में कोई जगह नहीं पाती है।
बालाघाट सीएसपी के अनुसार, क्लोजर रिपोर्ट एक बार फिर दायर की गई, जो सीजेएम के विचार के लिए लंबित है। जब कोर्ट ने मामले के बारे में सवाल पूछा तो सीएसपी ने जवाब दिया कि उन्होंने हाल ही में ज्वाइन किया। इस दलील के बारे में कोर्ट ने कहा कि यह वास्तव में आश्चर्यजनक है कि 'एक साल और 11 महीने बिताने के बाद भी सीएसपी बालाघाट का मानना है कि उन्होंने हाल ही में ज्वाइन किया।'
तदनुसार, इसने मामले को DGP द्वारा अनुपालन के लिए स्थगित किया।
केस टाइटल- अतुल मंडलेकर बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।