राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धाराओं 27, 28 और 29: समय-सीमा, कोर्ट फीस और अधिनियम की प्रधानता

Update: 2025-04-17 15:21 GMT
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धाराओं 27, 28 और 29: समय-सीमा, कोर्ट फीस और अधिनियम की प्रधानता

धारा 27 – समय-सीमा (Limitation)

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 27 यह स्पष्ट करती है कि इस अधिनियम के अंतर्गत किरायादाता (Tenant) और मकान मालिक (Landlord) के बीच Rent Tribunal या Appellate Rent Tribunal में जो भी आवेदन (Application), याचिका (Petition), अपील (Appeal) या अन्य कार्यवाही की जाएगी, उन पर लिमिटेशन एक्ट, 1963 (Limitation Act, 1963) की व्यवस्था लागू होगी।

इसका अर्थ यह है कि अगर किसी व्यक्ति को Rent Tribunal के सामने कोई याचिका या अपील दाखिल करनी है, तो उसे निर्धारित समय-सीमा के भीतर ही करना होगा। अगर वह व्यक्ति समय पर कार्यवाही नहीं करता, तो उसकी याचिका खारिज भी हो सकती है।

उदाहरण:

मालिक ने मकान खाली करवाने के लिए किरायादार को नोटिस दिया। किरायादार ने Rent Tribunal में अपील करनी चाही, लेकिन अगर उसने लिमिटेशन एक्ट में निर्धारित समय के बाद अपील की, तो Tribunal यह कह सकता है कि अपील समयबद्ध नहीं है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि विवादों का निपटारा समय पर हो और पक्षकार अनुशासित ढंग से कानून का पालन करें।

धारा 28 – कोर्ट फीस (Court Fees)

धारा 28 यह बताती है कि Rajasthan Rent Control Act के अंतर्गत Rent Tribunal और Appellate Rent Tribunal में दाखिल होने वाली याचिकाओं, आवेदनों और अपीलों पर कितना कोर्ट फीस लगेगा।

उप-धारा (1): सामान्य स्थिति में कोर्ट फीस

यदि किसी याचिका, आवेदन या अपील में इस अधिनियम के अंतर्गत ऐसा कोई राहत माँगा जा रहा है, जो सामान्यतः सिविल कोर्ट (Civil Court) में माँगा जाता, तो वही Court Fee लगेगा, जैसा कि सिविल कोर्ट में लगता।

उप-धारा (2): धारा 8 से संबंधित याचिकाओं पर कोर्ट फीस

यदि कोई किरायादाता और मकान मालिक एक साथ मिलकर Limited Period Tenancy के लिए आवेदन करते हैं (धारा 8 के अंतर्गत), तो ऐसी स्थिति में Court Fee किराए की राशि के आधार पर लगेगी। इसके लिए राजस्थान कोर्ट फीस एवं वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suit Valuation Act, 1961) के अनुसार फीस तय की जाएगी।

उदाहरण:

अगर किराए की वार्षिक राशि ₹60,000 है और किरायादाता और मालिक लिमिटेड समय की अवधि के लिए संयुक्त याचिका दाखिल करते हैं, तो फीस इसी ₹60,000 के आधार पर तय होगी, भले ही किराया सिर्फ 6 महीने के लिए तय हुआ हो।

उप-धारा (3): कुछ विशेष याचिकाओं पर निश्चित शुल्क

धारा 22-E (Rent Authority द्वारा किराया संशोधित करना), धारा 23 (सुविधाओं की बहाली) और धारा 24 (आवश्यक मरम्मत) के अंतर्गत दायर याचिकाओं पर मात्र ₹100 की निश्चित Court Fee लगेगी। यह प्रावधान आम आदमी के लिए राहत देने वाला है।

उप-धारा (4): किराया संशोधन की याचिकाओं पर शुल्क

धारा 6 और 7 के अंतर्गत यदि किराया बढ़ाने या संशोधित करने की याचिका दाखिल की जाती है, तो ₹250 की निश्चित कोर्ट फीस देनी होगी।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि मामूली विवादों के लिए किरायादार या मकान मालिक को अधिक फीस न देनी पड़े और न्याय सुलभ बना रहे।

धारा 29 – अधिनियम की प्रधानता (Overriding Effect of the Act)

धारा 29 इस अधिनियम को सर्वोच्च बनाती है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई अन्य कानून या दस्तावेज इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान से टकराता है या विरोध करता है, तो राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की व्यवस्था ही लागू होगी।

यह व्यवस्था इसलिए जरूरी है ताकि किराया संबंधी विवादों में कोई भ्रम या दोहराव न हो। अगर कोई पुराना समझौता, पट्टा या स्थानीय कानून इस अधिनियम की भावना के विपरीत कुछ कहता है, तो उसकी जगह इस अधिनियम के नियम ही मान्य होंगे।

उदाहरण:

अगर किसी किरायादार और मकान मालिक के बीच पूर्व में एक एग्रीमेंट हुआ था, जिसमें यह कहा गया था कि मकान मालिक को बिना कारण मकान खाली करवाने का अधिकार है, लेकिन वर्तमान अधिनियम में ऐसा प्रावधान नहीं है, तो Rent Tribunal उस पुराने एग्रीमेंट को मान्यता नहीं देगा।

पूर्व धाराओं का संदर्भ

इस अधिनियम की धाराएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। जैसे:

• धारा 5 किराया भुगतान की प्रक्रिया बताती है, और यदि मकान मालिक किराया स्वीकार न करे, तो धारा 22-G के तहत किराया Rent Authority के पास जमा किया जा सकता है।

• यदि कोई किरायादार धारा 23 या 24 के अंतर्गत याचिका दायर करता है, तो उसे धारा 28(3) के अनुसार ₹100 की निश्चित कोर्ट फीस देनी होती है।

• धारा 22-D किराया संशोधन से संबंधित है और उसकी पुष्टि हेतु धारा 22-E Rent Authority को अधिकार देती है।

इन्हीं संदर्भों से यह भी स्पष्ट होता है कि यह अधिनियम पूर्ण रूप से एक समेकित (Integrated) कानून है जो किरायादार और मकान मालिक दोनों के हितों की रक्षा करता है।

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धाराएं 27, 28 और 29 किराया विवादों में न्याय प्राप्ति की प्रक्रिया को सरल, समयबद्ध और न्यायसंगत बनाती हैं। समयसीमा (Limitation), कोर्ट फीस (Court Fee) और अधिनियम की प्रधानता (Overriding Effect) जैसे विषय केवल तकनीकी नहीं हैं, बल्कि आम नागरिकों के कानूनी अधिकारों से सीधे जुड़ी हुई हैं।

इन धाराओं के प्रभाव से यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने कानून को साधारण जनता के लिए सुलभ, न्यायपूर्ण और व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया है।

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