प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की Powers

Update: 2024-12-14 08:19 GMT

भारत के संविधान में दी गई प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की शक्तियां कुछ भागों में बांटी जा सकती हैं। जैसे कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की कार्यपालिका शक्ति, सैनिक शक्ति, कूटनीतिक शक्ति ,विधायिका शक्ति, न्यायिक शक्ति और आपातकालीन शक्तियां।

संविधान में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया को अनेकों कार्यपालिका शक्ति प्राप्त है। संघ की कार्यपालिका शक्ति प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया में निहित है। वह भारतीय गणतंत्र का प्रधान है। भारत की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के नाम से की जाती है। वह देश के सभी उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करता है जिसे प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों, उच्चतम तथा हाई कोर्ट के न्यायाधीशों, राज्यों के राज्यपालों, भारत के महान्यायवादी, भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य तथा ऑफिशल कमीशन के सदस्य अनुसूचित और आदिम जाति के लिए विशेष अधिकारी अनुसूचित और पिछड़े वर्गों के लिए आयोग तथा अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी आदि की नियुक्ति प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया द्वारा की जाती है परंतु प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया शक्तियों का उपयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करता है।

प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया केंद्रीय विधान मंडल का एक आवश्यक अंग है। उसे बहुत सारी कानूनी शक्तियां प्राप्त हैं किंतु व्यवहार में हुई शक्तियों का प्रयोग वह मंत्रिपरिषद के परामर्श से करता है। प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया संसद के सत्र को आहूत करता है और सत्र खत्म करता है।

आर्टिकल 85 के अनुसार संसद के एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियुक्त तारीख के बीच 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए वरना प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया एक सत्र के अंतिम बैठक के बाद 6 माह के बीच संसद का सत्र बुलाने के लिए बाध्य है। प्रत्येक सत्र के आरंभ में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित करता है जिसमें वह सरकार की सामान्य नीतियों और भावी कार्यवाही कार्यक्रमों का विवरण देता है किंतु अभिभाषण प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया का अभिभाषण नहीं होता।

संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है उसकी अनुमति के बाद ही वह अधिनियम बनता है। यदि कोई विधेयक धन विधेयक नहीं है तो वह उसे अपने सुझाव के साथ पुनर्विचार के लिए लौटा भी सकता है। यदि विधेयक संसद में संसद नहीं पहचाना नहीं पुनः पारित हो जाता है।

प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के अनुमति के लिए आता है तो उस पर अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य है, यदि किसी साधारण विधेयक पर दोनों में कोई असहमति है तो समझाने के लिए प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।

नए राज्यों के निर्माण में वर्तमान राज्यों के बदलने के लिए कोई विधेयक प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता। व्यापार वाणिज्य स्वतंत्रता पर लगाने वाला राज्य का कोई भी विधेयक प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की पूर्व अनुमति के बिना राज्य विधान मंडल में पेश नहीं किया जा सकता है।

अध्यादेश प्रख्यापित करने की शक्ति-

भारत के संविधान के आर्टिकल 123 के अनुसार प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की विधाई शक्तियों में उसके अध्यादेश जारी करने की शक्ति सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है। आर्टिकल 123 उपबंधित करता है इसे संसद के दोनों सदन सत्र में न हो प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया को इस बात का समाधान हो जाएगी ऐसी परिस्थितियां वर्तमान है जिनमें तुरंत कार्यवाही करना आवश्यक हो तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उक्त परिस्थितियों में अपेक्षित हो।

प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया द्वारा जारी किए गए अध्यादेश का वही बल होगा और प्रभाव होगा जो संसद द्वारा पारित अधिनियम का होता है। संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा। 6 सप्ताह होने की तारीख से समाप्त हो जाएगा। प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया किसी समय अपने द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को वापस ले सकता है।

प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के अध्यादेश जारी करने की शक्ति संसद की विधायी शक्तियों की सह विस्तारी अर्थात या उन्हीं विषयों से संबंधित है जिन पर संसद को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त किया है। कोई अध्यादेश ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमित करने का संसद का अधिकार नहीं है तो वह शून्य होगा। इस प्रकार किसी अध्यादेश द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता क्योंकि आर्टिकल 13 के अधीन विधि शब्द के अंतर्गत अध्यादेश भी शामिल है।

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