सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 88: आदेश 19 नियम 19 के प्रावधान

Update: 2024-01-17 10:18 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 19 शपथपत्र से संबंधित है। शपथपत्र काफी चर्चित शब्द है एवं अनेकों मामलों में काम आता है। शपथपत्र का उदगम सीपीसी के इस ही आदेश के अंतर्गत हुआ है, यही आदेश शपथपत्र की जननी है।

आपराधिक विधि में भी शपथपत्र का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है, सीपीसी एक सिविल प्रक्रिया कानून है जो शपथपत्र के नियमों को स्पष्ट करती है। इस आदेश के अंतर्गत शपथपत्र की कोई परिभाषा तो नहीं दी गई है किंतु यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी वाद में शपथपत्र का क्या महत्व है और किन अवसरों पर शपथपत्र देना होगा। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 19 के नियम 1 पर प्रकाश डाला जा रहा है।

नियम-1. किसी बात के शपथ-पत्र द्वारा साबित किए जाने के लिए आदेश की शक्ति-कोई भी न्यायालय किसी भी समय पर्याप्त कारण से आदेश दे सकेगा कि किसी भी विशिष्ट तथ्य या किन्हीं भी विशिष्ट तथ्यों को शपथ-पत्र द्वारा साबित किया जाए या किसी साक्षी का शपथ-पत्र सुनवाई में ऐसी शर्तों पर पढ़ा जाए जो न्यायालय युक्तियुक्त समझे :

परन्तु जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि दोनों में से कोई भी पक्षकार सद्भाव से यह चाहता है कि प्रतिपरीक्षा के लिए साक्षी को पेश किया जाए और ऐसा साक्षी पेश किया जा सकता है वहाँ ऐसी साक्षी का साक्ष्य शपथ-पत्र द्वारा दिए जाने का प्राधिकार देने वाला आदेश नहीं किया जाएगा।

शपथपत्र द्वारा साबित करने का आदेश (नियम-1) नियम 1 के विश्लेषण से निम्न तथ्य सामने आते हैं:-

(1) कोई भी न्यायालय - अर्थात्- हरेक सिविल न्यायालय को किसी भी समय ऐसा आदेश देने का विवेकाधिकार है।

(2) पर्याप्त कारण होने पर ही ऐसा आदेश (ⅰ) किसी भी विशिष्ट तथ्य या (ii) किन्हीं भी विशिष्ट तथ्यों को शपथपत्र द्वारा साबित करने के लिए दिया जा सकेगा-अथवा-

(3) किसी साक्षी का शपथपत्र सुनवाई में पढ़ा जा सकेगा, जिसके लिए न्यायालय युक्तियुक्त शर्तें लगा सकेगा।

(4) परन्तुक- (i) यदि न्यायालय को ऐसा प्रतीत हो कि- (ii) कोई भी पक्षकार सद्भाव से प्रतिपरीक्षा के लिए किसी साक्षी को बुलाना चाहता है और (iii) ऐसे साक्षी को पेश किया जा सकता है, तो साक्षी को शपथपत्र द्वारा साक्ष्य देने का उपरोक्त आदेश नहीं दिया जाएगा।

एक वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा कहा गया है कि न्यायालय का विवेकाधिकार शपथपत्र पर साक्ष्य देने का आदेश करने का न्यायालय को विवेकाधिकार है। अतः इस शक्ति का प्रयोग साधारणरूप से न कर सावधानी से न्यायहित में आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिये।

शपथपत्र साक्ष्य के रूप में-शपथपत्र साक्ष्य अधिनियम की धारा के अनुसार साक्ष्य नहीं है, किन्तु आदेश 19 के नियम 1 के अधीन न्यायालय द्वारा शपथपत्र द्वारा साक्ष्य देने का आदेश किया जा सकता है, जो परन्तुक में दी गई शर्तों के अधीन होगा। न्यायालयों के इस बारे में दो मत रहे हैं। एक मत के अनुसार पक्षकारों के सहमत नहीं होने पर यह साक्ष्य नहीं समझी जा सकती। दूसरे मतानुसार यह साक्ष्य है, परन्तु शपथकर्ता को प्रतिपरीक्षा के लिए बुलाने का विपक्षी को अधिकार है।

इस प्रकार शपथपत्र तभी साक्ष्य के रूप में मानी जावेगी, जब

(1) न्यायालय ने शपथपत्र द्वारा साक्ष्य देने के लिए आदेश 19 के नियम 1 व 2 के अधीन आदेश दिया हो।

(2) नियम 1 के परन्तुक में या नियम : (1) के अनुसार ऐसे शपथकर्ता को किसी पक्षकार की सद्‌भाविक मांग या आवेदन पर प्रतिपरीक्षा का अवसर दे दिया गया हो।

(3) शपथपत्र में सही आधार बताये गए तथा सत्यापित किये गये हों। (नियम 3) यह मत सही नहीं है कि शपथपत्र साक्ष्य के रूप में नहीं लिये जा सकते और साक्ष्य नहीं है।

शपथपत्र द्वारा साक्ष्य देने का आदेश पर्याप्त कारण होने पर ही दिया जा सकेगा और इसके लिए कारण लेखबद्ध करने आवश्यक है। जब मामला संक्षिप्त विचारण का हो और दोनों पक्ष शपथपत्र द्वारा साक्ष्य देने के लिए सहमत हो, तो केवल शपथपत्रों द्वारा मामले का निपटारा कर सकते हैं। जब किसी तथ्य को शपथपत्र से साबित करने का आदेश दिया जाता है, तो वह तथ्य ही उस शपथपत्र द्वारा साबित किया जा सकेगा, न कि सम्पूर्ण मामला। प्रतिशपथ पत्र-शपथपत्र के उत्तर में प्रतिशपथपत्र देकर उसका खण्डन किया जा सकता है।

शपथपत्र पर साक्ष्य देने के लिए नियम की अनुपालना आवश्यक है, अर्थात्-न्यायालय द्वारा शपथपत्र प्रस्तुत करने का आदेश देना पहली शर्त है। जहां किसी आवेदन के समर्थन में शपथपत्र संलग्न कर प्रस्तुत किया जाता है और न्यायालय द्वारा स्वीकार किया जाता है, तो यह स्वीकार करने का आदेश नियम 1 की अनुपालना समझी जाएगी।

एक सिविल वाद में पक्षकारों के अधिकारों का निर्णयन करने के लिए साधारणतया शपथपत्रों को आधार नहीं बनाया जा सकता। शपथपत्रों के द्वारा साक्ष्य को ग्रहण करने के लिए पर्याप्त कारण बताते हुए न्यायालय को ऐसी अनुमति देने का आदेश लेखबद्ध करना होगा।

अन्तर्वर्ती आवेदन में, जिसमें अस्थायी व्यादेश चाहा गया था, प्रार्थी ने एक शपथपत्र अपने कथनों के समर्थन में पेश किया। अभिनिर्धारित कि-न्यायालय केवल शपथपत्र द्वारा उस मामले का विनिश्चय कर सकता है और शपथग्रहीता को विपक्षी के निवेदन पर प्रतिपरीक्षा के लिए समन करने लिए बाध्य नहीं है। आदेश 39 नियम 1 के द्वारा शासित होने वाले अन्तर्वर्ती मामले में आदेश 19, नियम 1 लागू नहीं होता।

एक वाद में परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के अधीन विलम्ब को क्षमा करने के आवेदन के साथ वकील का शपथपत्र पेश किया गया कि-उसकी गलत राय के कारण अपील पेश करने में विलम्ब हुआ। न्यायालय की आज्ञा के बिना पेश किया गया शपथपत्र साक्ष्य नहीं माना गया।

सरकार की ओर से दिये गये शपथपत्र में की गई अभिस्वीकृतियां सीमित प्रसंग के लिए केवल विचार है, न कि विशेष प्रकार के आश्वासन, जो कि सरकार के विरुद्ध कोई विबन्ध उत्पन्न कर उसको बाध्य नहीं कर सकते। दूसरे शब्दों में सरकारी शपथपत्रों में दी गई बातें उस विषय तक ही सीमित मानी जावेंगी और आगे की किसी कार्यवाही में वे विबन्ध (ऐस्टोपल) के रूप में सरकार के लिए बाध्यकर नहीं होंगी। झूठा शपथपत्र देना अपराध-रिट याचिका के समर्थन में झूठा शपथपत्र देने से धारा 193 भारतीय दंड संहिता के अधीन अपराध बन गया।

एक वाद में, खण्डपीठ ने अभिव्यक्ति किसी भी आवेदन की व्याख्या की है, जो आदेश 19 के नियम 2 में आई है। यह अवलोकन किया गया कि-तात्विक और अन्तर्वर्ती आवेदन का भेद आदेश 19 के दूसरे नियम के शब्द किसी भी आवेदन की परिभाषा करने के लिए निराधार है। यह नियम किसी भी आवेदन को जो न्यायालय को किया जाता है, इसके स्वरूप का कोई ध्यान दिए बिना लागू होता है। संहिता स्वयं न तो शब्द आवेदन की कोई परिभाषा देती है, न एक आवेदन और दूसरे के बीच कोई भेद करती है।

एक अन्य मामले में कहा गया कि इस नियम में कोई संदेह नहीं रह जाता है कि- न्यायालय को यह छूट है कि पर्याप्त आधारों पर वह शपथपत्र द्वारा तथ्यों के प्रमाण की अनुमति दे, परन्तु यदि शपथकर्ता की उपस्थिति स‌द्भाव उसकी प्रतिपरीक्षा करने के लिए किसी पक्षकार द्वारा चाही जाए, तो न्यायालय शपथकर्ता को पेश किये बिना उस शपथपत्र में दिये गये तथ्यों को स्वीकार नहीं करेगा। आदेश 19 का नियम 2 इसे संदेह से दूर कर देता है। इस नियम का प्रभाव यह है कि-किसी भी आवेदन पर शपथपत्र द्वारा साक्ष्य दी जा सकती है, परन्तु न्यायालय दूसरे पक्षकार की प्रेरणा पर, शपथकर्ता की प्रतिपरीक्षा के लिए उपस्थिति का आदेश दे सकता है।

प्रतिवादी ने कोई प्रति-शपथपत्र (काउन्टर एफिडेविट) फाइल नहीं किया। ऐसी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता कि वाद की पुनः स्थापना के आवेदन में दिए गये कथनों के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है।

इस संबंध में एक अन्य वाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि आदेश 39 के अधीन अस्थाई व्यादेश के लिए दिए गए आवेदन को आदेश 19 के उपबंध आकर्षित होते हैं। न्यायालय को शपथपत्र पर मामले को निपटाने की पर्याप्त शक्ति है और शपथकर्ता को प्रतिपरीक्षा के लिए स्वयमेव या पक्षकार की प्रेरणा पर बुलाने की भी पर्याप्त शक्ति है।

बरेली सप्लाई कं. लि. बनाम वर्कमैन को प्रसंग दिया गया, जो औद्योगिक विवाद अधिनियम के अधीन का मामला है, जिसमें यह कहा गया है कि यदि कोई पत्र या अन्य दस्तावेज किसी संगत तथ्य को जांच में साबित करने के लिए पेश किया जाता है, तो उसके लेखक को प्रस्तुत करना होगा या इस बारे में उसका शपथपत्र देना होगा और विपक्षी को, जो उस तथ्य को प्रश्नगत करता है, अवसर देना होगा। यह नैसर्गिक न्याय तथा आदेश 19 सीपीसी तथा साक्ष्य अधिनियन दोनों के अनुसार है, जो कि सामान्य सिद्धान्तों का समावेश करते हैं।

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