सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 70: आदेश 14 नियम 3 एवं 4 के प्रावधान

Update: 2024-01-05 10:47 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 14 विवाद्यकों का स्थिरीकरण और विधि विवाद्यकों के आधार पर या उन विवाद्यकों के आधार पर जिन पर रजामन्दी (सहमति) हो गई है वाद का अवधारण से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत इस आदेश के नियम 3 एवं 4 पर विवेचना की जा रही है।

नियम- 3 वह सामग्री जिससे विवाद्यकों की विरचना की जा सकेगी-न्यायालय निम्नलिखित सभी सामग्री से या उसमें से किसी से विवाद्यकों की विरचना कर सकेगा-

(क) पक्षकारों द्वारा या उनकी ओर से उपस्थित किन्हीं व्यक्तियों द्वारा या ऐसे पक्षकारों के प्लीडरों द्वारा शपथ पर किए गए अभिकथनः

(ख) अभिवचनों या वाद में परिदत्त परिप्रश्नों के उत्तरों में किए गए अभिकथनः

(ग) दोनों पक्षकारों में से किसी के द्वारा पेश की गई दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु।

नियम-4 न्यायालय विवाद्यको की विरचना करने के पहले साक्षियों की या दस्तावेजों की परीक्षा कर सकेगा- जहां न्यायालय की यह राय है कि किसी ऐसे व्यक्ति की परीक्षा किए बिना जो न्यायालय के सामने नहीं है, या किसी ऐसी दस्तावेज का निरीक्षण किए बिना जो वाद में पेश नहीं की गई है, विवाद्यकों की ठीक-ठीक विरचना नहीं की जा सकती है, वहां [वह विवाद्यकों की विरचना किसी ऐसे दिन के लिए स्थगित नहीं कर सकेगा जो सात दिन के पश्चात् का न हो और (तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन रहते हुए) समन या अन्य आदेशिका द्वारा विवश करके किसी व्यक्ति की हाजिरी करा सकेगा या उस व्यक्ति द्वारा किसी दस्तावेज को पेश करा सकेगा जिसके कब्जे या शक्ति में वह दस्तावेज है।

अब नियम 4 के अधीन विवाद्यकों की विरचना को स्थगित करने की अवधि अधिकतम सात दिन निश्चित कर दी गई है, जिससे किसी वाद के निपटारे में अधिक विलंब नहीं हो।

विवाद्यकों के लिए सामग्री-

हालांकि नियम 1 में विवाद्यकों का स्वरूप तथा विवाद्यक बनाने का तरीका बताया गया है, फिर भी नियम 3 में वह सामग्री बताई गई है, जो विवाद्यकों की विरचना में उपयोग में लाई जा सकेगी- (क) इसमें पक्षकारों, उनकी ओर से उपस्थित व्यक्तियों द्वारा या उनके वकीलों द्वारा शपथ पर किये गये अभिकथन (आदेश 10) (ख) (ⅰ) अभिवचन (वादपत्र लिखित-कथन) और (ii) परिप्रश्नों के उत्तर (आदेश 11, नियम 8) और (ग) पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज।

नियम 4 के अनुसार, यदि आवश्यकता हो, तो न्यायालय विवाद्यक बनाने से पहले साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा कर सकता है।

विवाद्यकों का स्थिरीकरण - एक वाद में स्पष्ट किया गया है कि जहाँ लिखित-कथन में दिये गये तथ्यों से यह स्पष्ट नही हुआ कि अभिवाक (कथन/प्ली) कपट, प्रपीडन, असम्यक् असर या गलती के बारे में था, तो ऐसी परिस्थिति में न्यायालय का यह कर्तव्य था कि- वह पक्षकारों की परीक्षा कर स्थिति को स्पष्ट करवाता और फिर विवाद्यक स्थिर करता।

विवाद्यक बनाना- पश्चिम बंगाल उच्च न्यायालय के एक वाद में कहा गया है कि आदेश 14, नियम 3 सपठित वेस्ट बंगाल प्रेमिसेज टैनेंसी ऐक्ट (पश्चिमी बंगाल परिसर अभिधृति अधिनियम), 1956 धारा (1) (चच) न्यायालय सिविल प्रक्रिया संहिता के उक्त आदेश 14 के नियम 3 तथा वेस्ट बेंगाल प्रेमिसेज के टैनेंसी एक्ट की उक्त धारा 13 (1) (चच) के आज्ञापक उपबंधों के अनुसार बेदखली के मामले में यह विवाद्यक विरचित कर सकता है कि वादी के पास अपने उपयोग और अधिभोग के लिए पर्याप्त वास सुविधा है या नहीं।

विवाद्यक बनाने से पहले पक्षकारों की परीक्षा-

आदेश 10 नियम 1 व 2 के अधीन अब पक्षकारों की परीक्षा करना अनिवार्य है, ताकि संविवाद का स्पष्टीकरण (विशदीकरण) हो सके। इस प्रकार की परीक्षा के कथनों पर विवाद्यक बनाते समय पूरा ध्यान रखा जावेगा।

विवाद्यक केवल उन्हीं तथ्यों के बारे में बनाये जाते हैं, जो एक पक्ष द्वारा कथित और दूसरे द्वारा अस्वीकार किये गये हों। विवाद्यक विरचित नहीं करना घातक नहीं है, जब कि दोनों पक्षकार एक-दूसरे के मामले को जानते हुए विचारण के लिए जाते हैं।

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