नियोक्ता 5 वर्ष की अवधि के लिए अतिरिक्त राशि वसूल नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2024-12-30 09:28 GMT

जस्टिस ज्योति सिंह की सदस्यता वाली दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने माना कि 9 लाख रुपये की अतिरिक्त राशि की वसूली न्यायसंगत और उचित नहीं होगी। न्यायालय ने दोहराया कि यद्यपि नियोक्ता को किसी कर्मचारी को गलती से भुगतान की गई अतिरिक्त राशि वसूलने का अधिकार है लेकिन ऐसा उन मामलों में नहीं किया जा सकता, जहां वसूली का आदेश जारी होने से पहले पांच वर्ष से अधिक की अवधि के लिए अतिरिक्त भुगतान किया गया हो और जहां वसूली अन्यायपूर्ण, कठोर या मनमानी हो।

पूरा मामला

याचिकाकर्ता के पति गुरु तेग बहादुर खालसा (शाम) कॉलेज में कर्मचारी थे। उन्होंने गणित विभाग में ज्वाइन किया। COVID-19 से संक्रमित होने के कारण 09.05.2021 को उनकी मृत्यु हो गई।

09.06.2021 को याचिकाकर्ता ने अपने दिवंगत पति के रिटायरमेंट लाभों को जारी करने के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल को अभ्यावेदन दिया। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में सभी आवश्यक दस्तावेज भी प्रस्तुत किए। वह कॉलेज को याद दिलाती रही लेकिन कोई भुगतान नहीं किया गया। जुलाई 2021 में याचिकाकर्ता के भविष्य निधि बकाया जारी कर दिए गए। याचिकाकर्ता को सूचित किया गया कि उनके पति के वेतन के पुनर्निर्धारण के संबंध में उनकी फाइल दिल्ली यूनिवर्सिटी को भेजी गई। पाया गया कि उनसे कुछ बकाया राशि वसूल की जा सकती है। इसलिए कॉलेज तभी आगे बढ़ सकता था, जब यूनिवर्सिटी याचिकाकर्ता के पति के मामले का फैसला कर ले। इसके अलावा कॉलेज ने यह भी दावा किया कि वह ग्रेच्युटी या अवकाश नकदीकरण जारी करने की स्थिति में नहीं है।

याचिकाकर्ता को अगस्त 2021 में सूचित किया गया कि उसके पति को 9 लाख रुपये का अतिरिक्त भुगतान मिला है। यह उसकी छुट्टी नकदीकरण राशि से काट लिया जाएगा।

याचिकाकर्ता ने पंजाब राज्य और अन्य बनाम रफीक मसीह (व्हाइट वॉशर) और अन्य (2015) 4 एससीसी 334 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अधिकारियों से वसूली माफ करने का अनुरोध किया।

इसके बाद यूनिवर्सिटी द्वारा कॉलेज को सूचित किया गया कि यदि व्यय विभाग (DOI) भारत सरकार इस तरह की कार्रवाई को मंजूरी देती है। कॉलेज को तदनुसार, निर्देश देती है तो अतिरिक्त राशि माफ की जा सकती है। कॉलेज ने अतिरिक्त राशि की वसूली माफ करने और याचिकाकर्ता के मामले को वित्त मंत्रालय को भेजने के लिए डीओई से अनुमति मांगी।

इसके बाद याचिकाकर्ता को शिक्षा विभाग ने पत्र के माध्यम से सूचित किया कि उन्हें ऐसा कोई पत्र नहीं मिला, जिसमें उसके पति के मामले को शामिल किया गया हो। इसके बाद उसने कई पत्र भेजे लेकिन उसे बताया गया कि मामला विचाराधीन है। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

पक्षों की दलीलें:

याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के पति की छुट्टी नकदीकरण राशि इसलिए जारी नहीं की गई, क्योंकि यूनिवर्सिटी ने कहा कि वह 19.05.2001 से 14,940/- रुपये के वेतन में वृद्धि के लिए पात्र नहीं थे लेकिन उन्हें इसका भुगतान कर दिया गया। यूनिवर्सिटी ने शिक्षण संकाय के वेतन के पुनर्निर्धारण के लिए अपनी स्वीकृति दी। तदनुसार वसूली शुरू की गई। याचिकाकर्ता के पति भी उन कर्मचारियों के समूह में आते हैं जिनसे वसूली की मांग की गई।

याचिकाकर्ता के पति के मामले में यूनिवर्सिटी ने 16.08.2021 को अपनी स्वीकृति दी, जबकि उनकी मृत्यु हो चुकी थी। वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पति अगर जीवित होते तो वे वसूली को चुनौती देते, क्योंकि यूनिवर्सिटी ने 21 साल बाद कार्रवाई की और यहां तक ​​कि उनकी मृत्यु के बाद स्वीकृति भी दी गई।

पंजाब राज्य और अन्य बनाम रफीक मसीह (व्हाइट वॉशर) और अन्य के मामले का हवाला देते हुए वकील ने तर्क दिया कि भले ही अतिरिक्त भुगतान गलती से दिया गया हो, लेकिन वसूली के आदेश जारी होने से पहले पांच साल से अधिक की अवधि के लिए इसकी वसूली नहीं की जा सकती।

यह तर्क दिया गया कि इतने सालों के बाद अतिरिक्त राशि काटना याचिकाकर्ता के लिए मनमाना और अन्यायपूर्ण होगा, क्योंकि उसने कम उम्र में अपने पति को खो दिया और अपने बेटे को भी खो दिया था। दोनों ही कम समय में जिससे उसे बहुत मानसिक आघात पहुंचा।

दूसरी ओर प्रतिवादियों के वकील ने कहा कि कॉलेज याचिकाकर्ता के समर्थन में है। उसने पहले ही यूनिवर्सिटी से वसूली माफ करने का अनुरोध किया। यह कहते हुए कि कॉलेज ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के डीन ऑफ कॉलेज के माध्यम से वसूली माफ करने के लिए शिक्षा विभाग भारत सरकार को पत्र भेजा था, वकील ने तर्क दिया कि शिक्षा मंत्रालय से निर्णय अभी तक नहीं बताया गया। इसलिए कॉलेज अपने आप छुट्टी नकदीकरण राशि जारी नहीं कर सकता।

इस बीच मंत्रालय के वकील ने तर्क दिया कि उन्होंने लगातार यूनिवर्सिटी से कॉलेज के परामर्श से अधिक भुगतान की वसूली माफ करने के लिए समेकित प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए कहा। हालांकि, कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई।

न्यायालय के निष्कर्ष:

पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के अवलोकन के पश्चात न्यायालय ने माना कि कोई कार्रवाई नहीं की गई तथा फाइलें केवल एक विभाग से दूसरे विभाग में जाती रहीं। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि पति की मृत्यु के कारण सदमे में आई याचिकाकर्ता को अपने पति को देय अवकाश नकदीकरण की मांग करने के लिए इधर-उधर भागना पड़ा।

कॉलेज यूनिवर्सिटी शिक्षा विभाग तथा शिक्षा मंत्रालय के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के पश्चात न्यायालय ने माना कि यह केवल दोषारोपण का खेल बन गया तथा कोई वास्तविक समाधान नहीं किया गया।

न्यायालय ने पंजाब राज्य तथा अन्य बनाम रफीक मसीह (व्हाइट वॉशर) तथा अन्य में लिए गए निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नियोक्ता किसी कर्मचारी को भुगतान की गई अतिरिक्त राशि को कम समय में वसूल सकता है लेकिन यदि उस समय के दौरान भुगतान की गई अतिरिक्त राशि की वसूली लंबे समय के पश्चात की जाती है तो उसकी वसूली की मांग करना गलत होगा। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसी स्थिति में जहां राशि का भुगतान लंबे समय से किया जा रहा हो, कर्मचारी के लिए ऐसी राशि की वसूली करना असंभव होगा।

यह माना गया,

'यदि गलत भुगतान करने की गलती 05 वर्षों के भीतर पकड़ी जाती है तो नियोक्ता इसे वसूलने का हकदार होगा। हालांकि, यदि भुगतान 05 वर्षों से अधिक अवधि के लिए किया जाता है, भले ही नियोक्ता के लिए गलती को ठीक करना खुला होगा, कर्मचारी को गलती से किए गए भुगतान की वापसी की मांग करना बेहद अन्यायपूर्ण और मनमाना होगा।'

न्यायालय ने श्याम बाबू वर्मा और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, (1994) 2 एससीसी 521 में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें एक व्यक्ति को उच्च वेतनमान का भुगतान किया गया और ग्यारह साल की अवधि के बाद इसे वसूलने की मांग की गई। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसे मामले में वसूली की मांग करना न्यायसंगत और उचित नहीं था।

न्यायालय ने एमएमटीसी लिमिटेड बनाम पी.के. दास और अन्य, 2024 एससीसी ऑनलाइन दिल्ली 7314 तथा महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एम.टी.एन.एल.) अपने उप प्रबंधक (पी एंड ए) के माध्यम से बनाम सत्य नारायण शहनी, 2023 एससीसी ऑनलाइन दिल्ली 4819 में दिए गए निर्णयों का भी संदर्भ दिया।

इन टिप्पणियों को करते हुए न्यायालय ने प्रतिवादियों को आदेश की प्राप्ति की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को छुट्टी नकदीकरण बकाया जारी करने का निर्देश दिया। साथ ही छुट्टी नकदीकरण की तारीख से वास्तविक भुगतान की तारीख तक 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी देना होगा।

केस टाइटल: द्रौपती देवी बनाम भारत संघ और अन्य

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