प्रो राटा पेंशन और पेंशन के बीच कोई अंतर नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने योग्यता सेवा में कमी के लिए देरी को माफ किया

Update: 2024-12-07 08:09 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ जिसमें जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर शामिल थे, ने भारतीय वायु सेना में स्वेच्छा से सेवा से मुक्त होने के बाद प्रो राटा पेंशन की मांग करने वाली याचिका पर टिप्पणी की। न्यायालय ने माना कि 10 वर्ष की योग्यता सेवा में कमी को माफ करने की शर्तों को सामने रखने वाले आदेश में उल्लिखित पेंशन और प्रो राटा पेंशन में कोई स्पष्ट अंतर नहीं था। इसलिए यह माना गया कि याचिकाकर्ता प्रो राटा पेंशन का हकदार था।

पूरा मामला

15.07.1997 को याचिकाकर्ता को भारतीय वायु सेना में रडार फिटर के पद पर नियुक्त किया गया।

03.07.2006 को अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद वह इंडियन एयरलाइंस लिमिटेड में एयरक्राफ्ट टेक्नीशियन (रेडियो) के पद के लिए इंटरव्यू में उपस्थित हुआ और उसका चयन हो गया।

18.10.2006 को भारतीय वायुसेना ने याचिकाकर्ता को डिस्चार्ज ऑर्डर जारी किया। 9 वर्ष और 108 दिनों की नियमित सेवा के बाद याचिकाकर्ता को अंततः 02.11.2006 को सेवा से मुक्त कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने प्रति-अनुपात पेंशन का दावा करते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। पेंशन के लिए हकदारी का दावा करते हुए उन्होंने गोविंद कुमार श्रीवास्तव बनाम भारत संघ एवं अन्य के फैसले पर भरोसा किया।

उपर्युक्त फैसले पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि वायुसेना का एक कर्मचारी 10 साल की सेवा के बाद आनुपातिक पेंशन के अनुदान का हकदार था।

इसके अलावा 14.08.2001 के कार्यालय आदेश का हवाला देते हुए वकील ने तर्क दिया कि पेंशन पात्रता के लिए 6 से 12 महीने के बीच की सेवा के अंतराल को नजरअंदाज किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में भारत संघ और अन्य बनाम सुरेन्द्र सिंह परमार, (2015) 3 एससीसी 404, वकील ने कहा कि 6 से 12 की देरी के साथ आनुपातिक पेंशन देने के संबंध में निर्धारित नियम आनुपातिक पेंशन के मामले में भी लागू था।

इस बीच प्रतिवादियों के वकील ने कहा कि चूंकि कर्मचारी ने भारतीय वायु सेना से स्वैच्छिक रिटायरमेंट ली थी। इसलिए वह आनुपातिक पेंशन का हकदार नहीं था। यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता 14.08.2001 के कार्यालय आदेश के अनुसार सेवा में कमी की माफी का लाभ नहीं ले सकता, क्योंकि उसने 10 साल की सेवा पूरी नहीं की थी। सेवाओं से उसकी बर्खास्तगी स्वैच्छिक थी।

कोर्ट के निष्कर्ष:

गोविंद कुमार श्रीवास्तव के मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी दिनांक 04.11.2022 के आदेश के साथ दिनांक 19.02.1987 की अधिसूचना के अनुसार आनुपातिक पेंशन पाने के हकदार थे

न्यायालय ने पाया कि यद्यपि याचिकाकर्ता ने इंडियन एयरलाइंस लिमिटेड में शामिल होने के लिए प्रतिवादियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किया, लेकिन उन्होंने 10 वर्ष की अर्हक सेवा पूरी नहीं की थी, जो आनुपातिक पेंशन का दावा करने के लिए आवश्यक थी। इसके अलावा, याचिकाकर्ता 10 वर्ष की सेवा पूरी करने में 12 महीने से भी कम समय से पीछे था।

न्यायालय ने दिनांक 14.08.2001 के कार्यालय आदेश का अवलोकन किया, जिसमें कहा गया कि छह महीने से अधिक और 12 महीने तक की कमी वाले व्यक्ति पेंशन अनुदान के लिए माफी का लाभ उठा सकते हैं।

यह देखा गया कि आदेश के अनुसार पेंशन' और 'प्रति अनुपात पेंशन शब्दों को स्पष्ट रूप से नहीं समझाया गया और कोई असमानता व्यक्त नहीं की गई। न्यायालय ने माना कि आदेश केवल सक्षम प्राधिकारी को पेंशन प्रदान करने के लिए अर्हक सेवा में कमी को माफ करने के लिए अधिकृत करता है, चाहे वह नियमित पेंशन हो या आनुपातिक पेंशन, 6 महीने से 12 महीने तक की अवधि के लिए।

न्यायालय ने सुरेंद्र सिंह परमार में दिए गए फैसले का हवाला दिया और कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने सेवाओं से स्वैच्छिक बर्खास्तगी मांगी थी। उसे यह मंजूर कर लिया गया। हालांकि वह अभी भी अर्हक सेवा में कमी को माफ करने के लाभ का हकदार होगा।

तदनुसार, न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को आनुपातिक पेंशन देने से इनकार करने वाले आदेश खारिज कर दिया। भारत संघ और अन्य बनाम तरसेम सिंह (2008) 8 एससीसी 648 यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता आनुपातिक पेंशन के अनुदान का हकदार था, लेकिन उसे याचिका दायर करने की तारीख से 3 साल पहले की अवधि से पेंशन दी जानी थी।

तदनुसार, याचिका का निपटारा किया गया।

केस टाइटल: संतोष कुमार साहू बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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