दंड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 61 से लेकर 70 तक में समन संबंधी प्रावधान किए गए हैं। इन प्रावधानों में समन का जारी किया जाना और समन की तामील से संबंधित समस्त प्रावधान रख दिए गए।
किसी भी स्वस्थ विचारण के लिए यह आवश्यक है कि उससे संबंधित सभी कार्यवाही अभियुक्त की उपस्थिति में हो। इसका कारण यह है कि अभियुक्त को प्रतिरक्षा का पूर्ण अवसर प्रदान करना ही आपराधिक न्याय प्रशासन का प्रमुख उद्देश्य है। मामले के विचारण के समय यदि अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है तो उसकी उपस्थिति समन के द्वारा सुनिश्चित की जाती है।
संहिता की धारा 61 में समन के प्रारूप के बारे में आवश्यक उल्लेख है। इस धारा के अनुसार दंड प्रक्रिया सहिंता के अधीन जारी किया गया प्रत्येक समन लिखित रूप में दो प्रतियों में होगा तथा उस न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा या अन्य ऐसे अधिकारी द्वारा जिससे कि उच्च न्यायालय समय-समय पर निर्दिष्ट करें हस्ताक्षरित होगा तथा उस पर न्यायालय की मुहर भी अंकित होगी।
लाइव लॉ के इस वीडियो में जानते हैं कि समन क्या है और इसका कानूनी प्रभाव कितना है?
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