शादी के समय पिता की ओर से अपनी बेटी को दिए जाने वाली सामग्री को दहेज माना जाता है। दहेज की व्यवस्था प्राचीन भारत से ही चली आ रही है। भारत ही नहीं बल्कि एशिया के बहुत सारे भाग में दहेज जैसी व्यवस्था चलती रही है। सभी जगह इसका नाम अलग अलग हो सकता है पर यह व्यवस्था सभी समाजों में देखने को मिलती है।
समय के साथ परिस्थितियां बदलती चली गई, दहेज के अर्थ भी बदल गए। दहेज एक विभत्स और क्रूर व्यवस्था बनकर रह गया, जो महिलाओं के लिए एक अजगर के रूप में सामने आया। दहेज की मांग लड़का पक्ष की ओर से की जाने लगी। लड़के के माता पिता शादी करने की शर्त दहेज के आधार पर तय करने लगे। लड़के के परिवार की ओर से लड़की के परिवार से संपत्ति मांगी जाने लगी। ऐसी संपत्ति सोना, चांदी, रुपया, जमीन, मकान में मांगी जाने लगी।
भारत के कानूनों में दहेज का कानूनी अर्थ सबसे पहले दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है। इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि दहेज क्या होता है। इस अधिनियम के परिभाषा खंड धारा 2 के अनुसार किसी भी ऐसी मूल्यवान संपत्ति या प्रतिभूति को दहेज माना गया है जो विवाह के समय पक्षकारों द्वारा एक दूसरों को दी जाती है और विवाह के बाद भी दी जा सकती है। दहेज की परिभाषा अत्यंत विस्तृत परिभाषा है। इस परिभाषा के अंतर्गत कोई भी चल अचल संपत्ति जिसमें मकान, जमीन, कार, आभूषण, रुपया शामिल है। ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की मांग जब विवाह के किसी भी पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार से विवाह की शर्त के रूप में की जाती है तब वह दहेज माना जाता है।