माता-पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर शादी करने वाले जोड़े को सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, लड़की के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की कार्यवाही पर लगाई  रोक 

Update: 2020-02-20 06:53 GMT
माता-पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर शादी करने वाले जोड़े को सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, लड़की के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की कार्यवाही पर लगाई  रोक 

माता-पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर प्रेम विवाह करने वाले एक जोड़े को अंतरिम राहत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राजस्थान हाईकोर्ट में पत्नी के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। 

मूल रूप से राजस्थान से संबंध रखने वाला यह जोड़ा शादी के बाद मुंबई में रहने लग गया है।  लड़की के पिता ने राजस्थान हाईकोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, जिसमें उसने आरोप लगाया कि उसकी बेटी का उस व्यक्ति ने अपहरण कर लिया है और वह उसके अवैध कब्जे में है। 

इसके बाद हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह जाकर  महिला से यह पता लगाएं कि क्या वह अपनी सहमति से उस व्यक्ति के साथ रह रही है या नहीं?

महिला ने पुलिस को बताया कि उसने स्वेच्छा से उस व्यक्ति से शादी की है और वह राजस्थान वापस नहीं जाना चाहती है, क्योंकि वहां उसकी जान को खतरा है। 

पुलिस की इस रिपोर्ट से यह  पता चलता है कि महिला उस व्यक्ति की अवैध हिरासत में नहीं थी, उसके बावजूद भी हाईकोर्ट ने महिला को कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दे दिया। 

इसी बीच पति ने सुप्रीम कोर्ट में एक स्थानांतरण अर्जी दायर कर दी और इस मामले को बाॅम्बे हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की। इसके लिए दलील दी गई कि राजस्थान में दंपति को जान का खतरा है। 

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने हाईकोर्ट के उस आग्रह पर नाराजगी व्यक्त की है, जिसमें दंपति को उनके समक्ष पेश करने की बात कही गई  थी।

चूंकि कम से कम दो बार उक्त लड़की ने पुलिस को सूचित किया है कि  उसने स्वेच्छा से अपने पति से शादी की थी। वह राजस्थान जाना नहीं चाहती, क्योंकि उसे कि वहां  उसके जीवन को खतरा हो सकता है। 

याचिकाकर्ता-पति की तरफ से पेश होते  हुए, एडवोकेट ए.वी टंडन ने पीठ को सूचित किया कि इस कपल ने 2018 में स्वेच्छा से शादी की थी और उनका एक बच्चा है।

लड़की के माता-पिता, जो राजस्थान से हैं, उनकी शादी के खिलाफ थे क्योंकि याचिकाकर्ता एक नीची जाति से संबंध रखता है, इसलिए इस जोड़े को मारने की धमकी दी गई थी। 

यह भी दलील दी गई कि महिला के पिता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण का एक झूठा केस दायर किया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी बेटी का अपहरण कर लिया गया था। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, कपल को अपने जीवन के लिए खतरा लगा और उन्होंने मामले को बाॅम्बे हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की है, जहां वह दोनों रहते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष उपस्थित महिला  ने कुछ कागजात पेश करके यह दिखाया कि वह बालिग है और उसने स्पष्ट किया कि उसने स्वेच्छा से शादी करने का निर्णय लिया था और अपने पति के साथ रहना चाहती है।

अदालत को यह भी बताया गया कि राजस्थान हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वह उसकी इच्छा के बारे में पता लगाएं।  जिसके बाद, कम से कम दो बार, उसने राजस्थान जाने के लिए अपनी अनिच्छा या अरूचि के बारे में पुलिस को सूचित किया था। उसने पुलिस को यह भी बताया था कि उसने स्वेच्छा से विवाह किया था और वह अपने पति के साथ रहना चाहती है या उसने पति के साथ रहने का विकल्प चुना है। 

पीठ ने उपरोक्त सूचना को रिकाॅर्ड पर लिया और राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। चूंकि हाईकोर्ट ने उनके समक्ष  रिकाॅर्ड पर आए इन सभी बयानों के  बावजूद भी कपल को पेश करने का आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा था कि  ''इस बयान के बावजूद भी, हाईकोर्ट ने महिला को हाईकोर्ट के समक्ष पेश करने पर जोर दिया।'' 

महिला के बयान को ध्यान में रखते हुए नोटिस जारी किया गया है। दिलचस्प बात यह है कि खंडपीठ ने यह भी संकेत दिया कि वे हाईकोर्ट में सुनवाई की अगली तारीख से पहले कार्यवाही को रद्द के इच्छुक थे। 

केस स्थानांतरण  की याचिका पर सुनवाई करते समय आमतौर पर ऐसा नहीं होता हैै, विषेशकर बंदी प्रत्यक्षीकरण के मामले में। 

(पक्षकारों की पहचान गुमनाम रखी गई है।)

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