राजस्थान हाईकोर्ट ने 40 साल की देरी का हवाला देते हुए कर्मचारी की याचिका खारिज की

Update: 2022-09-27 06:53 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक कर्मचारी की उस रिट याचिका को खारिज कर दिया, जो 40 साल से अधिक की देरी से दायर की गई। इसमें हेल्पर- I के वेतनमान की अप्रैल 1974 वेतन और बकाया नकद भुगतान के संबंध में सभी परिणामी लाभों के साथ नंबर दो की मांग की गई।

जस्टिस कुलदीप माथुर अदालत ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि अदालत उन लोगों के बचाव में नहीं आती, जो अपने अधिकारों के बारे में सतर्क नहीं हैं।

अदालत ने कहा,

"यहां तक ​​कि इक्विटी का दावा सही समय पर किया जाना चाहिए, न कि उचित समय की समाप्ति के बाद।"

याचिकाकर्ता को प्रारंभ में मई 1971 में जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में नैमित्तिक मजदूर के रूप में नियुक्त किया गया। उसे वर्ष 1974 में हेल्पर-द्वितीय का नियमित दर्जा दिया गया। हेल्पर-II के रूप में 15 वर्षों की निरंतर संतोषजनक सेवाओं के पूरा होने पर याचिकाकर्ता को दिनांक 12.11.1991 के आदेश द्वारा एसएसए-III का पदनाम दिया गया।

इस न्यायालय की एक समन्वय पीठ 1992 में मो. हनीफ बनाम आरएससीबी और अन्य का याचिकाकर्ता से जूनियर व्यक्ति का आयोजन किया, जिसका नाम मो. हनीफ है, जो हेल्पर- I के वेतनमान नंबर दो के लिए 01.01.2015 से हकदार होंगे। 01.04.1974 जैसा कि वेतन निर्धारण समिति द्वारा अनुशंसित किया गया।

इस संबंध में याचिकाकर्ता के वकील ने आग्रह किया कि उपरोक्त कर्मचारी से सीनियर होने के नाते याचिकाकर्ता को सहायक- I के वेतनमान नंबर का लाभ भी 01.01.2015 से बढ़ाया जाना चाहिए।

अदालत ने देखा कि मो. हनीफ, जिसके खिलाफ वर्तमान रिट याचिका में समानता का दावा किया गया, प्रतिवादी विभाग में हेल्पर- I के पद पर कार्यरत था। इसलिए, अदालत ने देखा कि वेतन निर्धारण समिति की सिफारिश के अनुसार, हेल्पर- I का वेतनमान-2 उन्हें प्रदान किया गया। इस प्रकार, यह राय दी गई कि याचिकाकर्ता का मामला मोहम्मद हनीफ के मामले से तुलनीय नहीं है।

एडोवेकट एमएस पुरोहित याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए जबकि एडवोकेट उत्तरदाताओं की ओर से विक्रम चौधरी उपस्थित हुए।

केस टाइटल: आनंद शंकर बनाम जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, जोधपुर प्रबंध निदेशक एवं अन्य के माध्यम से।

साइटेशन: लाइव लॉ (राज) 236/2022

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