महाराष्ट्र सरकार ने समाचार पत्रों की डोर-टू-डोर डिलीवरी पर रोक लगाई, बॉम्बे हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

Update: 2020-04-22 13:01 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने मुख्य सचिव अजोय मेहता द्वारा हस्ताक्षरित एक परिपत्र/अधिसूचना के संबंध में समाचार पत्रों की रिपोर्ट का संज्ञान लिया है, जिसमें प्रिंट मीडिया को लॉकडाउन से छूट दी गई थी, हालांकि पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की डोर-टू-डोर डिलीवरी को प्रतिबंधित किया गया था।

जस्टिस पीबी वरले ने अधिसूचना के संबंध में 'लोकमत' और 'द हिंदू' में प्रकाशित समाचारों और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा ट्विटर पर जारी किए गए बयान का उल्‍लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था- "स्टॉलों/दुकानों पर समाचार पत्रों, पत्रिकाओं की ब‌िक्री की अनुमति है लेकिन मीडिया कंपनियों से हम अनुरोध करते हैं कि वे होम डिलीवरी से परहेज करें। "

कोर्ट ने दुविधाजनक हालात की ओर संकेत करते हुए कहा कि एक ओर मुख्य सचिव ने अधिसूचना में कहा है कि प्रिंट मीडिया को 20 अप्रैल 2020 से लॉकडाउन से छूट दी गई है, जबकि मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा कि समाचार पत्रों, पत्रिकाओं की बिक्री की पहले से स्थापित स्टालों/दुकानों पर अनुमति है, जबकि समाचार पत्रों की डोर-टू-डोर डिलीवरी निषिद्ध है।

बेंच ने कहा-

"यह समझना कठिन है कि जब राज्य सरकार स्टालों और दुकानों पर समाचार पत्रों की खरीद की अनुमति दे रही है तो समाचार पत्रों की डोर-टू-डोर डिलीवरी क्यों निषिद्ध है। क्या राज्य सरकार जनता को अनुमति दे रही है कि वो स्टॉल और दुकानों पर जाकर समाचार पत्र खरीदे, इसका मतलब यह है कि तब जनता के पास लॉकडाउन की अवधि में घरों से बाहर निकलने के लिए एक कारण या बहाना होगा, निश्चित रूप से इससे सड़कों पर चहल-पहल होगी। दूसरी ओर, राज्य सरकार डोर-टू-डोर डिलीवरी पर रोक लगा रही है, जिससे लोग अपने घर पर समाचार पत्र पा सकते हैं और उन्हें घर के बाहर भी नहीं निकलना पड़ेगा।"

कोर्ट ने आगे कहा कि पत्रिकाएं साप्ताहिक या मासिक होती हैं, जबकि समाचार पत्र रोजाना प्रकाशित और वितरित होते हैं।

"राज्य सरकार कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने के ल‌िए निश्चित रूप से विशेष क्षेत्रों में समाचार पत्रों की डोर-टू-डोर डिलीवरी पर रोक लगाने पर विचार कर सकती है। हालांकि यह समझना मुश्किल है कि सरकार ने मीडिया कंपनियों को समाचार पत्र प्रकाशित करने अनुमति दी है लेकिन उन्हें डोर-टू-डोर वितरित करने की अनुमति नहीं है।"

जस्टिस वरले ने कहा कि अधिसूचना से यह भी स्‍पष्ट नहीं है कि यह निर्णय सभी क्षेत्रों या जिलों पर लागू है या राज्य सरकार ने क्षेत्रों और जिलों पर विचार ही नहीं किया है।

कोर्ट ने यह तर्क दिया कि आम जनता तकनीक-प्रेमी नहीं हो सकती है और सभी ई-पेपर नहीं पढ़ सकते हैं।

कोर्ट ने कहा,

"अधिकांश समाचार पत्र ई-पेपर के रूप में उपलब्ध हैं, फिर भी आम जनता के लिए ई-पेपर पढ़ पाना संभव नहीं है। सभी लोग प्रौद्योगिकी से वाकिफ नहीं हैं।"

कोर्ट ने एडवोकेट सत्यजीत बोरा को मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया और महाराष्ट्र सरकार को 24 अप्रैल को नोटिस का जवाब देने को कहा।

सोमवार को नागपुर बेंच ने महाराष्ट्र यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट और नागपुर यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट की दायर याचिका पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था, जिसमें उक्त नोटिस / परिपत्र को चुनौती दी गई थी।

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