NRC में नाम शामिल नहीं होने के ख़िलाफ़ अपील की अनुमति तभी जब विदेशी अधिकरण ने राष्ट्रीयता के मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया है : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2019-05-23 12:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विदेशी अधिकरण के समक्ष नेशनल रेजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ेन्स में नाम नहीं होने की शिकायत तभी की जा सकती है अगर अधिकरण ने इस बारे में निर्णय नहीं लिया ही कि संबंधित व्यक्ति भारतीय नागरिक है या विदेशी।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की पीठ ने इस बारे में किसी अपीली मंच के गठन करने के आग्रह को भी ठुकरा दिया ताकि इस बारे में असम के निवासी के बारे में होने वाले किसी विवाद को वहाँ निपटाया जा सके।

पीठ इस संबंध में कई सारे अपीलों पर सुनवाई कर रहा था जिनमें कहा गया था जिस व्यक्ति को NRC में शामिल नहीं किया गया है उसको 2003 के नियम के शेड्यूल के पैरा 8 का लाभ उठाने की अनुमति होनी चाहिए और इसमें पहले से ही निर्णीत मामले के सिद्धांत को लागू नहीं किया जाना चाहिए। पैरा 8 में NRC में शामिलनहीं किए जाने पर विदेशी अधिकरण में अपील की इजाज़त है।

विदेशी अधिकरण के आदेश को यह माना जाएगा कि फ़ैसला हो गया है

कोर्ट ने कहा कि सक्षम अथॉरिटी जिसकी सब-पैरा 2 से पैरा 3 में चर्चा हुई है, वह विदेशी अधिनियम जैसे 1964 के आदेश के तहत गठित ट्रिब्यूनल होगा। अपीलकर्ता की दलील को ठुकराते हुए पीठ ने कहा :

"इस तरह, यह कहना ग़लत होगा कि विदेशी अधिकरण और/या इसके परिणामस्वरूप पंजीकरण अथॉरिटी द्वारा जारी आदेश निर्णीत फ़ैसले के रूप में माना नहीं जाएगा।अधिकरण की राय और पंजीकरण अथॉरिटी के आदेश दोनों से ही पैदा होने वाली दीवानी अपील से क़ानून के तहत अधिकार/स्थिति का निर्धारण होता हैजिसका आधार मेरिट होता है जो आवश्यक रूप से आगे की प्रक्रिया में आवश्यक रूप से उसी अथॉरिटी के समक्ष उसी मुद्दे/प्रश्न के निर्धारण के लिए अवरोध उत्पन्न करता है"

अदालत ने आगे कहा, "यह दलील कि संबंधित व्यक्ति को…विदेशी अधिकरण के समक्ष दूसरा मौक़ा मिलना चाहिए भले ही विदेशी अधिकरण ने पहले कुछ भी राज्य ज़ाहिर की हो…पूरी तरह अस्वीकार्य है। यह दलील ग़लत है और इसमें कोई दम नहीं है। इसलिए इस दलील को अवश्य ही ख़ारिज किया जाना चाहिए।

रिट याचिका दायर कर सकते हैं

पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति पर अधिकरण के मत/आदेश से प्रतिकूल असर पड़ा है तो वह एक रिट याचिका के माध्यम से इसे चुनौती दे सकता है जहाँ हाईकोर्ट को इस मामले पर ग़ौर करने का अधिकार होगा और वह न्यायिक समीक्षा के तहत जिस तरह साक्ष्यों और अन्य बातों की जाँच की जाती है वही इस रिटयाचिका पर भी लागू होगा जो कि "निर्णय लेने की प्रक्रिया में ग़लती" के सिद्धांत पर आधारित है। इस तरह अधिकरण अगर कोई ग़लत आदेश देता है तो उसको सुधारा जा सकता है।

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