35 साल बीत गए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति से इनकार किया, कहा- संकट खत्म होने के बाद कोई दावा नहीं

Update: 2022-10-06 08:12 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में किसी व्यक्ति को 35 वर्ष बीत जाने के बाद अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति नहीं देने के अपने फैसले को बरकरार रखा, भले ही उसे देरी के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना है।

चीफ जस्टिस रवि मलीमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य शोक संतप्त परिवार को वित्तीय संकट से बचाने में सहायता करना है। हालांकि, अपीलकर्ता के मामले में वह चरण पहले ही बीत चुका है।

खंडपीठ ने कहा,

हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता को देरी की लंबी अवधि के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए, लेकिन तथ्य यह है कि पिछले 35 वर्षों से वह बिना नौकरी के रहा है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के मामले में अपने अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक और अन्य बनाम परडेन उरांव ने 2021 में एससीसी ऑनलाइन एससी 299 के माध्यम से में कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को उस वित्तीय संकट से उबरने में सक्षम बनाना है जिसका सामना अकेले कमाने वाले की मृत्यु के समय होता है। समय की महत्वपूर्ण चूक के बाद और संकट समाप्त होने के बाद उसी का दावा या पेशकश नहीं की जा सकती है।

मामले के तथ्य यह है कि अपीलकर्ता ने इस तथ्य के मद्देनजर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग की कि उसके पिता की मृत्यु वर्ष 1987 में हो गई। वह वर्ष 2003 में प्रमुख हो गया था। इसके तुरंत बाद उन्होंने अधिकारियों के समक्ष आवेदन दायर किया। छत्तीसगढ़ राज्य के पुनर्गठन के बाद संबंधित प्राधिकरण मध्य प्रदेश राज्य के भीतर आ गया। इसके बाद उसका आवेदन खारिज कर दिया गया। इससे व्यथित होकर उसने अपने आवेदन की अस्वीकृति को चुनौती देते हुए न्यायालय का रुख किया।

रिट कोर्ट ने अपीलकर्ता को इस आधार पर राहत देने से इनकार कर दिया कि 35 साल के अंतराल के बाद अनुकंपा नियुक्ति कैसे दी जा सकती है, इसका कोई कारण नहीं है। इसके बाद उसने रिट कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की।

रिकॉर्ड पर पक्षकारों और दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण की जांच करते हुए कोर्ट ने रिट कोर्ट की टिप्पणियों से सहमति व्यक्त की। इस प्रकार, यह माना गया कि चूंकि 35 वर्ष की अवधि बीत चुकी है, इसलिए न्यायालय के लिए आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। तद्नुसार अपील खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: सोमनाथ सोनवानी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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