वादी अगर सीपीसी की धारा 89 के आह्वान के बिना भी अदालत के बाहर मामला सुलझता है तो कोर्ट फीस की वापसी का हकदार: एमपी हाईकोर्ट

Update: 2022-09-30 05:41 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी कि वादी कोर्ट फीस की वापसी का हकदार होगा यदि पक्षकारों ने सीपीसी की धारा 89 को लागू किए बिना मामला अदालत के बाहर पक्षकारों द्वारा सुलझाया गया।

कानून के सवाल का फैसला करते हुए जस्टिस डी.डी. बंसल ने देखा-

पूर्वोक्त को ध्यान में रखते हुए मेरा विचार है कि भले ही मामला अदालत के बाहर के पक्षकारों द्वारा सीपीसी की धारा 89 के प्रावधानों को लागू किए बिना सुलझा लिया गया हो, अपीलकर्ता अपनी पहली अपील को वापस लेते हुए कोर्ट फीस अधिनियम, 1870 की धारा 16 के तहत प्रदान की गई फीस फुस कोर्ट फीस की वापसी का हकदार है।

मामले के तथ्य यह है कि आक्षेपित डिक्री के निष्पादन के बाद मुकदमे के पक्षकारों ने न्यायालय के बाहर अपने विवाद का निपटारा किया। उसी के परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता/प्रतिवादी प्रथम अपील को वापस लेना चाहता है। ऐसी परिस्थितियों में यह प्रार्थना की गई कि प्रथम अपील में उनके द्वारा भुगतान किया गया 52,750/- का कोर्ट फीस वापस किया जाए, जिसके संबंध में प्रतिवादी को कोई आपत्ति नहीं है।

रिकॉर्ड पर पक्षकारों और दस्तावेजों की प्रस्तुतियों की जांच करते हुए न्यायालय ने कानूनी प्रश्न को यह माना कि क्या वह उपरोक्त परिस्थितियों में कोर्ट फीस अधिनियम, 1870 की धारा 16 के तहत प्रदान की गई अदालती फीस की वापसी के लिए आदेश पारित कर सकता है। विभिन्न उच्च न्यायालयों के निर्णय न्यायालय ने सकारात्मक में प्रश्न का उत्तर दिया।

तद्नुसार, न्यायालय ने रजिस्ट्री को कोर्ट फीस की वापसी के संबंध में 52,750/- रुपये का प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया, जिससे अपीलकर्ता को कलेक्टर से प्रथम अपील के संबंध में भुगतान की गई अदालत शुल्क की पूरी राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत किया गया। उक्त निर्देश के साथ अपील का निस्तारण किया जाता है।

केस टाइटल: दयाराम बनाम लक्ष्मी अग्रवाल

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