मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वकील को पेश न होने पर खारिज किए गए मामले की बहाली के लिए एक घंटे की सामुदायिक सेवा करने को कहा
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि वादकारियों को उनके द्वारा नियुक्त वकील की गलती के लिए परेशान नहीं किया जाना चाहिए, साल 2013 में दायर एक आपराधिक मामले की बहाली की अनुमति दी, बशर्ते वकील मर्सी होम में एक घंटे की सामुदायिक सेवा' करे।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के न्यायाधीश जस्टिस आनंद पाठक ने आवेदक के वकील को इस संबंध में 'अनुभव रिपोर्ट' प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।
बेंच ने कहा, "...एक घंटे की यह सामुदायिक सेवा न केवल आत्मा को संतुष्टि देगी बल्कि दिव्यांग बच्चों को यह संदेश भी देगी कि समाज और उसके सदस्य उनकी परवाह करते हैं।
अदालत ने यह भी पाया कि मामले में आवेदक के वकील की अनुपस्थिति के कारण वास्तविक थे।
आवेदक के वकील ने प्रस्तुत किया कि वह अन्य अदालतों में लगी हुई थी जब उक्त तिथि पर पेश न होने के कारण मामला खारिज हो गया। कानून के स्थापित प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए कि वादी को वकील की गलती के लिए पीड़ित नहीं किया जा सकता है, खासकर जब वर्तमान मामले में कारण की प्रकृति और वकील के वास्तविक इरादे पर गौर किया जाए। अदालत ने आदेश दियाअ कि आपराधिक मामला बहाल किया जाए।
हालांकि अदालत ने शुरू में यह स्पष्ट कर दिया कि सामुदायिक सेवा एक मात्र सुझाव है जो दंडात्मक प्रकृति का नहीं है। आवेदक के वकील ने पूरे दिल से 'कुछ खाद्य पदार्थों के साथ' ग्वालियर में 'मर्सी होम' जाने और एक घंटा बिताने पर सहमति व्यक्त की। बच्चों/कैदियों/परिवारों की देखभाल करने वाली यह संस्था वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित है।
अदालत ने आदेश में आगे टिप्पणी की और वकील को 'मर्सी होम' में उसके अनुभव के साथ-साथ संस्था की वर्तमान स्थिति के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया,
“आवेदक के वकील द्वारा इस आशा और विश्वास के साथ दिखाए गए भाव की सराहना करते हुए कि वह आज से 15 दिनों के भीतर उपरोक्त स्थान का दौरा करेगी और बच्चों/कैदियों/परिवारों के साथ एक घंटे का समय बिताएगी, उनके चेहरे पर मुस्कान लाएगी और उनकी आत्मा को संतुष्टि मिलेगी। यह अपेक्षा की जाती है कि कोई सरकारी वकील या अन्य महिला वकील भी इस उद्देश्य के लिए वकील के साथ आ सकती हैं। अन्यथा भी, कुछ अन्य वकील भी उसके साथ जा सकते हैं।”
आवेदक की ओर से एडवोकेट स्मृति शर्मा और प्रतिवादी राज्य की ओर से एडवोकेट सिराज कुरेशी पेश हुए।
केस टाइटल : नरेंद्र उपाध्याय बनाम नरेंद्र सिंह और अन्य।