मरने से पहले दिया गया बयान केवल इसलिए अविश्वसनीय नहीं होगा क्योंकि इसे कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने दर्ज किया है : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2019-12-18 03:30 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि मरने से पहले दिया गया बयान (dying declaration) केवल इसलिए अविश्वसनीय नहीं होगा, क्योंकि इसे न्यायिक मजिस्ट्रेट के बजाय एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया है।

न्यायमूर्ति आईएस मेहता की एकल पीठ ने उल्लेख किया है कि जैसे ही यह मालूम हो कि मरने से पहले स्वेच्छा से बयान दिया गया है और यह सत्य है तो इसकी प्रासंगिकता इस बात से प्रभावित नहीं होगी कि एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा इस बयान को दर्ज किया गया है।

वर्तमान मामले में आरोपी व्यक्तियों द्वारा कई आपराधिक अपील दायर की गई थीं, जिन्हें दहेज हत्या के लिए निचली अदालत ने IPC की धारा 304B, 302 और 498A के तहत दोषी ठहराया था।

आरोपियों के वकील ने निचली अदालत द्वारा दर्ज दोषसिद्धि के आदेश को चुनौती देने के लिए निम्नलिखित आधार प्रस्तुत किए थे:

1. मरने से पहले दिए गए बयान को स्वेच्छा से दिए गए बयान के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि बयान की रिकॉर्डिंग के चरण में पीड़िता 'फोर्टविन' नामक दवा के प्रभाव में थी, जिसने उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित किया था।

2. मरने से पहले दिए गए बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के बजाय एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के नियमों के अध्याय 13 ए का उल्लंघन है।

अदालत ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, एमएलसी के साथ-साथ मेडिकल प्रैक्टिशनर के बयान पर भरोसा करके अपीलकर्ताओं के पहले दावे को खारिज कर दिया।

मेडिकल प्रैक्टिशनर ने कहा कि बयान की रिकॉर्डिंग के समय पीड़िता बयान देने के लिए फिट थी। इसके अलावा मेडिकल रिपोर्टों से पता चला कि उक्त दवा देने के 24 घंटे से अधिक समय बाद बयान दर्ज किया गया था, इसलिए पीड़िता के उचित मानसिक स्थिति में नहीं होने के तर्क का खंडन किया गया।

मरने से पहले दिए गए बयान को एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज करने पर अदालत ने कहा कि

'मजिस्ट्रेट एक उदासीन गवाह और एक जिम्मेदार अधिकारी है और यह संदेह करने के लिए कोई परिस्थिति या सामग्री नहीं है कि मजिस्ट्रेट की अभियुक्तों के खिलाफ कोई विद्वेषपूर्ण भावना रही होगी या मजिस्ट्रेट ने बयान खुद गढ़ा होगा। मजिस्ट्रेट द्वारा रिकॉर्ड किए गए मरने से पूर्व दिए गए बयान पर संदेह करने का कोई सवाल नहीएं उठता।"    


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