दिल्ली सरकार को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के तहत राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन करना है, मौजूदा पैनल जारी नहीं रखा जा सकता: हाईकोर्ट

Update: 2022-10-04 11:10 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस रुख को खारिज करते हुए कि मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 के तहत गठित राज्य मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्राधिकरण मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के तहत काम करना जारी रख सकता है, कहा कि नए अधिनियम की धारा 45 संबंधित आवश्यक है। राज्य सरकारें नौ महीने की अवधि के भीतर नए निकाय - राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण [SMHA] का गठन करेंगी।

जस्टिस यशवंत वर्मा ने 23 सितंबर के आदेश में कहा कि अधिनियम, 2017 के अनुसार दिल्ली सरकार द्वारा एसएमएचए का गठन किया जाना बाकी है। अदालत से यह टिप्पणी राज्य सरकार द्वारा अपने अतिरिक्त हलफनामे में "ईमानदारी से स्वीकार" करने के बाद आई है कि 1987 के निरस्त अधिनियम के संदर्भ में गठित प्राधिकरण 2017 अधिनियम की धारा 126 (2) (बी) के आधार पर जारी रहा।

हालांकि, अदालत ने कहा,

"अधिनियम, 2017 की धारा 45 में निहित वैधानिक आदेश के अनुसार संबंधित राज्य सरकारों को नौ महीने की अवधि के भीतर अपने प्रावधानों के अनुसार एसएमएचए का गठन करने की आवश्यकता है।"

इसमें कहा गया कि प्रथम दृष्टया धारा 126 (2) (बी) को निरस्त अधिनियम के तहत गठित प्राधिकरण को जारी रखने की मंजूरी के रूप में "पढ़ा या व्याख्या" नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह अधिनियम की धारा 45 के आदेश का उल्लंघन होगा।

अधिनियम की धारा 45: प्रत्येक राज्य सरकार इस अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होने की तारीख से नौ महीने की अवधि के भीतर अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राज्य मानसिक स्वास्थ्य के रूप में जाना जाने वाला प्राधिकरण स्थापित करेगी।

इस बीच अदालत ने आदेश में दिल्ली सरकार को अधिनियम, 2017 की धारा 73 के तहत मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्डों के गठन के साथ-साथ उनके द्वारा जांच की गई शिकायतों की संख्या के बारे में विवरण का खुलासा करते हुए हलफनामा दायर करने को भी कहा। अदालत ने उन बैठकों की आवधिकता के बारे में भी विवरण मांगा, जो उनके द्वारा आयोजित की जा सकती हैं।

याचिकाकर्ता ने पिछले साल हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण के पुनर्गठन और नए कानून के तहत मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्डों की स्थापना के लिए निर्देश देने की मांग की गई।

सुनवाई की अगली तारीख से पहले दिल्ली सरकार को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए अदालत ने समान मुद्दों को उठाते हुए समान लंबित जनहित याचिका को सूचीबद्ध किया। उस जनहित याचिका को 2019 में एडवोकेट अमित साहनी ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 को लागू करने की मांग की।

अदालत ने आदेश दिया,

"नतीजतन, इस याचिका को माननीय चीफ जस्टिस के आदेश के अधीन उपयुक्त न्यायालय के समक्ष बुलाए जाने के लिए उपरोक्त मामले के साथ टैग किया जाए।"

केस टाइटल: एबीसी बनाम एनसीटी दिल्ली और अन्य

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