हिरासत में मौत का मामलाः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मृतक के परिवार को 20 लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश पर रोक लगाई,सीबीआई जांच जारी रहेगी

Update: 2022-12-14 15:00 GMT

Madhya Pradesh High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में हिरासत में मौत के एक मामले में राज्य की तरफ से दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ के उस आदेश पर रोक लगा दी है,जिसमें राज्य सरकार को पीड़ित के परिवार को मुआवजे के तौर पर 20 लाख रुपये देने का निर्देश दिया गया था।

जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के की खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार ने इस मामले में एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी थी। हालांकि इस मामले में एकल पीठ के उस निर्देश पर रोक नहीं लगाई गई है,जिसमें मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के लिए कहा गया था।

मूल याचिका मृतक के पुत्र द्वारा हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के समक्ष दायर की गई थी। याचिकाकर्ता द्वारा आरोप लगाया गया था कि उनके पिता एफआईआर दर्ज करवाने के लिए बेलगड़ा पुलिस स्टेशन गए थे, हालांकि उन्हें वहां बैठाया गया और एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस कर्मियों द्वारा 20,000 रुपये की मांग की गई थी। इसके बाद, मृतक को 2019 में अवैध हिरासत में ले लिया गया, उसे बेरहमी से पीटा गया और मारपीट की गई, जिससे उसकी मौत हो गई।

उसके बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 306, 342, 34 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

हालांकि, एफआईआर के दर्ज होने और मजिस्ट्रियल जांच के आदेश प्राप्त होने के बावजूद, जांच अधिकारी ने 2.5 साल से अधिक समय तक मामले की जांच नहीं की, जिसके बाद मृतक के बेटे ने हाईकोर्ट का रुख किया।

जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकल पीठ ने केस डायरी, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और थाने के सीसीटीवी फुटेज की स्क्रिप्ट देखने के बाद पाया कि मौत उस समय हुई जब व्यक्ति पुलिस की हिरासत में था, भले ही उसे औपचारिक रूप से गिरफ्तार नहीं किया गया था। तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता को ध्यान में रखते हुए, जस्टिस अहलूवालिया ने जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने के निर्देश दिए थे।

एकल पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों को मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान करें और इस राशि को दोषी पुलिस कर्मियों से वसूला जाए। इसके अतिरिक्त, जांच न करने पर जांच अधिकारी पर 50,000 का जुर्माना भी लगाया गया था।

दो सदस्यीय खंडपीठ ने अब एकल पीठ के आदेश पर उस सीमा तक रोक लगा दी है,जिसमें 20 लाख रुपये के मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था और 50000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

पीठ ने कहा,

''अगले आदेश तक, 20,00,000 रुपये के मुआवजे (बीस लाख रुपये मात्र) और 50,000 रुपये (पचास हजार रुपये मात्र) के जुर्माने के निर्देश पर रोक लगाई जाती है। इसके अलावा,फैसले के पैरा 79 (i) में निर्णायक टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना डी.जी., पुलिस एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश का निष्पक्षता से और पूरी ईमानदारी के साथ पालन करेंगे।''

खंडपीठ ने हालांकि सीबीआई जांच पर रोक नहीं लगाई है, जो इस मामले में जारी रहेगी।

केस टाइटल- मध्य प्रदेश राज्य व अन्य बनाम अशोक रावत व अन्य

साइटेशन- डब्ल्यूए नंबर-1614/2022

कोरम- जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के

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