"आलोचना करना एक लोकतांत्रिक अधिकार, स्वतंत्र समाज का हिस्सा": मद्रास हाईकोर्ट ने कमल हासन के खिलाफ 'महाभारत' पर कथित टिप्पणी को लेकर दर्ज मामले को खारिज किया

Update: 2021-06-18 04:38 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने अभिनेता और राजनेता कमल हासन के खिलाफ वर्ष 2017 में 'महाभारत' पर कथित टिप्पणी को लेकर दर्ज आपराधिक मामले को खारिज करते हुए कहा कि आलोचना करना न केवल लोगों का अधिकार है, बल्कि एक लोकतांत्रिक अधिकार भी है, जिस पर लोकतंत्र पनपता है और समाज एक नई वांछित राजनीति के रूप में विकसित होता है।

न्यायमूर्ति जी. इलंगोवन की पीठ ने विशेष रूप से कहा कि आलोचना करना स्वतंत्र समाज का अभिन्न अंग है।

कोर्ट के समक्ष मामला

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसने मार्च 2017 में पुथिया तलैमुरई टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम देखा, जिसमें शो के होस्ट ने भारत में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर विशेष रूप से सिने फील्ड में महिलाओं के खिलाफ को लेकर कमल हासन से सवाल पूछा।

यह आरोप लगाया गया है कि सवाल के जवाब में हासन ने हिंदू महाकाव्य महाभारत को चित्रित करके जानबूझकर टिप्पणी की कि महाभारत में पांचाली को उपभोग की वस्तु के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। भारत ऐसा देश है, जहां ऐसी पुस्तक का सम्मान किया जाता है, जो ऐसे पुरुषों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिन्होंने अपनी स्त्री को सामान की तरह जुए में दांव पर लगा दी गई थी।

आरोप लगाया कि आरोपी द्वारा की गई टिप्पणी ने हिंदू महाकाव्य महाभारत का न केवल हिंदुओं का अपमान किया, बल्कि उनकी व्यक्तिगत धार्मिक भावनाओं को भी आहत किया और आगे आरोप में कहा कि आरोपी (कमल हासन) ने भारतीय दंड सहिंता की धारा 298 के तहत दंडनीय अपराध किया है।

पुलिस निरीक्षक ने आरोपों की जांच की और यह निष्कर्ष निकाला कि आईपीसी की धारा 298 के तहत अपराध आकर्षित नहीं होता है क्योंकि आरोपी द्वारा बोले गए शब्द केवल सामान्य प्रकृति के हैं और विशिष्ट नहीं हैं।

ट्रायल कोर्ट ने हालांकि इसके बावजूद शिकायतकर्ता और एक गवाह की जांच करने का फैसला किया और आईपीसी की धारा 298 के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान लिया और याचिकाकर्ता हासन के खिलाफ समन जारी किया।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने कहा कि एक देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बारे में हासन की टिप्पणियों को जानने के लिए एंकर द्वारा एक विशिष्ट सवाल किया गया और उन्होंने जो टिप्पणी की वह आज की महिलाओं के अपमान से महाभारत के युग से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से टिप्पणी की कि,

"मुझे इसमें किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए कुछ भी अपमानजनक नहीं लगता है। हमें सार्वजनिक मंचों पर, घरों में, साहित्य, महाकाव्यों और अन्य कार्यों में चित्रित घटनाओं पर कई टिप्पणियां सुनने या पढ़ने को मिलती हैं, यह सामान्य-सी बातें हो गई हैं।"

कोर्ट ने कहा कि,

"टिप्पणी करना और विचार रखना सभी लोगों का मूल अधिकार है। इस प्रक्रिया से केवल कला, साहित्य और ललित कला विकसित हो रही है। किसी भी नागरिक को दूसरों के विचार को रोकने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह सोचता है कि यह है गलत। गलत अपने विचार में सही हो सकता है। लेकिन, यह किसी दूसरे को आपराधिक मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं देता है।"

अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 298 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए जानबूझकर अपमान किया जाना चाहिए और हासन के आचरण से पता चलता है कि उन्होंने बस एक प्रश्न का उत्तर दिया और किसी का अपमान करने का कोई इरादा नहीं था।

कोर्ट ने कहा कि,

"अगर ऐसा है तो इसे केवल एंकर और याचिकाकर्ता के बीच सामान्य बातचीत के रूप में लिया जाना चाहिए।"

कोर्ट ने अंत में कहा कि आलोचना, महाकाव्यों या साहित्यिक कार्यों से समानताएं एक स्वतंत्र समाज में असामान्य नहीं हैं और हासन ने बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंधन नहीं किया है। इसके बाद कोर्ट ने शिकायत को खारिज कर दिया।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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